दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–20)
(अध्याय—बीसवां) इस अपार्टमेंट में एक ही साझा बाथरूम है, और उसमें भी गर्म पानी नहीं आता। मैं सुबह जल्दी उठकर पानी गर्म करती हूं और ओशो के लिए दो बाल्टियां भरकर बाथरूम में रख देती हूं। वे अपने कमरे से...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–53)
पहलगांव में आफत—(अध्याय—त्ररेपनवां) न जाने कितनी बार मित्रों की लापरवाही और बेपरवाही के कड़वे अनुभव मुझे हुए हैं। मुझे यह देखकर आश्चर्य होता कि कैसे लोग छोटी—छोटी बातों को लेकर इतने लापरवाह हो सकते हैं...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–54)
आलू बैंगन, बैंगन आलू—(अध्याय—चौवनवां) भारत एक विशाल देश है। यहां बोली—चाली, रहन—सहन, खान—पान हर तरह की इतनी विविधता है कि जब आप इन सबका अनुभव करते हैं तो पता चलता है कि इस विविधता के अपने मजे हैं और...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–55)
सुपारी किलर—(अध्याय—पच्चपनवां) ओशो की दुनिया अजीब दुनिया है। ओशो कहते भी हैं कि सभी तरह के मस्त—मौला लोग तुम मेरे पास पाओगे। ओशो के साथ आने वाले लोग एक तरह से सम में हट कर जीने वाले होते हैं।...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–21)
(अध्याय—इक्कीसवां) सुबह नहाने के बाद, ओशो नाश्ते में चाय व टोस्ट लेना पसंद करते हैं। वे सोफे पर बैठे हुए हैं और एक छोटी सी मेज उनके सामने रखी है। उन्होंने सफेद लुंगी पहनी हुई है और शरीर के ऊपर के...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–22)
(अध्याय—बाईसवां) दोपहर का समय है। ओशो बालकनी में एक कुर्सी पर बठॅ हैं। वसंत का मौसम है। पास ही एक बड़ा सा आम का वृक्ष है, और एक कोयल लगातार अक रही है। उसका मधुर गान मौन को और भी गहरा रहा है। ओशो मुझसे...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–23)
(अध्याय—तैइसवां) हम अहमदाबाद में एक बड़े कट्टर जैन परिवार में ठहरे हुए हैं। ओशो प्रवचन में जाने के पहले शाम 6 बजे ही भोजन कर लेते हैं। आजकल वे देर रात गए तक पढ़ते रहते हैं, इसलिए मैं उनसे कहती हूं ‘ओशो...
View Articleसुन भई साधो–(प्रवचन–10)
मन मस्त हुआ तब क्यों बोले—(प्रवचन—दसवां) दिनांक: 20 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना सूत्र: मस्त हुआ तब क्यों बोले। हीरा पायो गांठ गठियायो, बारबार बाको क्यों खोले। हलकी थी तब चढ़ी तराजू, पूरी भई तब...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–56)
सौंदर्य की पारखी नजर—(अध्याय—छप्पनवां) ओशो सौंदर्य के बड़े गहरे पारखी हैं। वे हर चीज को इतना सुंदर से सुंदर बना देते हैं कि कोई सोच भी नहीं सकता। वे जीवन में सत्यम, शिवम, सुंदरम के पक्षधर रहे हैं। हर...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–57)
ध्यान के लिए स्थल, जगह, आश्रम, केंद्र……कम्यून—(अध्याय—सत्तावनवां) पूरे देश में ध्यान शिविर लेते—लेते मुझे यह तो बहुत ही स्पष्ट हो गया कि शिविर के दौरान तीन दिन निश्चित ही मित्र पूरी त्वरा और लगन...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–58)
ओशो मेरी नजर में—(अध्याय—अठावनवां) ओशो के साथ एक युग जीया है, लौटकर देखूं तो यूं लगता है कि पता नहीं कितने सालों से, सदियों से, युगों से ओशो के साथ हूं। जिस पल ओशो मिले वहां से लेकर इस पल तक सिवाय ओशो...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–59)
सेक्स पर ओशो का नजरिया—(अध्याय—उन्नष्ठवां) सेक्स, सेक्स, सेक्स.. .इस शब्द में कैसा जादू है कि पढ़ते, सुनते कहीं न कहीं चोट जरूर पड़ती है। क्या कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो इस शब्द को सिर्फ शब्द की तरह...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–60)
विरोधाभास का आभास क्यों?—(अध्याय—छाठवां) ओशो के बारे में अक्सर यह भी कहा जाता है कि वे बहुत विरोधाभासी हैं। पहली तो बात यह समझने की है कि ओशो ने हर देश, हर जाति, हर विषय पर बोला है। शायद ही ऐसा कोई...
View Articleसुन भई साधो–(प्रवचन–12)
धर्म कला है—मृत्यु की, अमृत की—(प्रवचन—बारहवां) दिनांक: 12 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना सूत्र: जग सूं प्रीत न कीजिए,समझि मन मेरा। स्वाद हेत लपटाइए, को निकसै सूरा।। एक कनक अरु कामिनी, जग में दोइ...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–24)
(अध्याय—चौबीसवां) ओशो बाथरूम में हैं। घर का रसोइया किसी हरे जूस से आधा भरा हुआ एक कप लेकर आता है। वह कहता है, यह नीम का जूस है और ओशो सुबह उठते ही यह पीते हैं।’ वह कप को मेज पर रखकर चला जाता है। जब...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–25)
अध्याय—(पच्चीसवां) आज रात मुझे छोड्कर बाकी सब लोग बाहर भोजन पर गए हैं। ओशो अपने कमरे में आराम कर रहे हैं और मैं बराबर के कमरे में ही अपने बिस्तर पर लेटी हुई हूं तथा कुछ अस्वस्थ हूं। मेरे बाएं स्तन...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–61)
उसकी अनुकंपा अपार है……(अध्याय—इक्ष्ठवां) हमारे देश में गुटखा और तंबाखू का खूब चलन है। पान की लाली रचाकर, हर कहीं उस लाली के निशान छोडना आम बात है। जिन लोगों को यह लत नहीं होती शायद वे कभी भी नहीं...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–62)
अतित से भविष्य की और—(अध्याय—बाष्ठवां) आज हम ठहर कर देख सकते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व ओशो जैसे मनीषी ने अपने कार्य की शुरुआत की, भारत भर में घूम—घूम कर प्रवचन दिये, नव—संन्यास आदोंलन से दुनिया को...
View Articleसुन भई साधो–(प्रवचन–13)
मन के जाल हजार—(प्रवचन—तैरहवां) सूत्र: चलत कत टेढ़ौ रे। नऊं दुवार नरक धरि मूंदै, तू दुरगंधि कौ बेढ़ौ रे।। जे जारै तौ होइ भसम तन, रहित किरम उहिं खाई। सूकर स्वान काग को भाखिन, तामै कहा भलाई।। फूटै नैन...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–26)
(अध्याय—छब्बीस) इस बार, मैं ओशो के साथ अहमदाबाद आई हूं जहां वे गीता पर प्रवचन दे रहे हैं। सुबह प्रवचन के बाद वे 11 —3० बजे भोजन लेते हैं और फिर कुछ घंटे के लिए आराम करते हैं। मैं बाहर दरवाजे के पास...
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