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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय–21)

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(अध्‍याय—इक्‍कीसवां)

सुबह नहाने के बाद, ओशो नाश्ते में चाय व टोस्ट लेना पसंद करते हैं। वे सोफे पर बैठे हुए हैं और एक छोटी सी मेज उनके सामने रखी है। उन्होंने सफेद लुंगी पहनी हुई है और शरीर के ऊपर के हिस्से पर कुछ नहीं पहना है। ऊपर वे शाल तभी लपेटते हैं, जब कहीं बाहर जाते हैं। इस क्षण वे इतने तरोताजा व सुंदर लग रहे हैं—जैसे कोई पूरा खिला हुआ खूबसूरत गुलाब का फूल हो। मैं टोस्ट और चाय एक ट्रे पर रखकर लाती हूं और ट्रे को मेज पर रखने के बाद उनके सामने ही फर्श पर बैठ जाती हूं। मैं उनके कप में चाय उड़ेलती हूं तो वे पूछते हैं, तेरा कप कहां है?’

मैं कहती हूं ‘ओशो, मैं चाय नहीं पीती।’

वे हंसते हैं और कहते हैं, चाय पिए बिना ध्यान संभव नहीं है। चाय ध्‍यानियों को जगाए रखती है’, और मुझे बोधिधर्म की कहानी सुनाते हैं जिसने अपनी आंखों की पलकें काटकर फेंक दीं क्योंकि ध्यान करते हुए उसे नींद सता रही थी। पहली बार चाय की पत्तियां उन्हीं पलकों से ही उगी थीं।

चाय पीने के लिए मेरी अनिच्छा को देखकर ओशो स्वयं दूसरा कप भरते हैं और मुझ से कहते हैं कि मैं इसे पीकर देखूं। कप लेकर धीरे—धीरे मैं चाय पीती हूं और यह मुझे अच्छी लगती है। मैं ओशो से खुश हरेकर कहती हूं कि इसका स्वाद तो सच में ही अच्छा लगता है। वे एक कप और भरकर मुझे दे देते हैं और कहते हैं, एक कप से नहीं चलेगा। तुम्‍हें हर रोज सुबह दो कप पीने पड़ेंगे।’

मैं उनसे पूछती हूं यदि कप बड़ा हो तो भी?’

वे कहते हैं, कप के साइज से कोई फर्क नहीं पड़ता हर रोज सुबह दो कप तो पीने ही पडेंगे।’

मैं उनसे पूछती हूं यह दो कप का क्या राजू है?’

वे कहते हैं, यह तेरे लिए झेन कोआन है।’

अगले दिन, नाश्ते के समय वे मुझसे पूछते हैं, तुझे लेन कोआन का जवाब मिल गया?’

मैं कहती हूं शायद एक कप मेरे लिए, और एक मेरे प्यारे के नाम पर।’

वे कहते हैं, तू जवाब के बहुत करीब आ गई है, लेकिन अभी ठीक वहां तक नहीं पहुंची।’

वहां उपस्थित सभी लोग हंसी के साथ चाय के उत्सव का आनन्द लेते हैं।


Filed under: दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(मा धर्मज्‍योति) Tagged: अदविता नियति, ओशो, बोधि उन्‍मनी, मनसा, स्‍वामी आनंद प्रसाद

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