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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–05)

      पद घुंघरू बांध—(प्रवचन—पांचवां)   पद घुंघरू बांध मीरा नाची रे सूत्र:  माई री मैं तो लियो गोबिन्दो मोल। कोई कहै छाने कोई कहै चौड़े लियो री वजंता ढोल। कोई कहै मुंहगो कोई कहै सुंहगो लियो री तराजू...

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पद घूंघरू बांध–(प्रवचन–06)

पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—छठवां) श्रद्धा है द्वार प्रभु का  प्रश्न—सार:    1—श्रद्धा क्या है? 2—जाने क्या पिलाया तूने, बड़ा मजा आया! 3—प्रवचन में आपका प्यार बरस रहा है; उससे भी कहीं अधिक मार पड़ रही है। अब...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–07)

पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—सातवां) मैंने राम रतन धन पायो सूत्र:  मैंने राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि करिपा अपनायो। जनम—जनम की पूंजी पाई, जग में समय खोवायो। खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–08)

पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—आठवां ) दमन नहीं—ऊर्ध्वगमन  प्रश्न—सार: 1—आमतौर से समझा जाता है कि धार्मिक बनने के लिए इंद्रियों को वश में रखना अनिवार्य है। आप कहते हैं कि इंद्रिय—दमन भक्ति का लक्षण नहीं।…?...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–09)

पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—नौवां) राम नाम रस पीजै मनुआं सूत्र:  कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की, मनभावन की। आप न आवै लिख नहिं भेजै, बांण पड़ी ललचावन की। ए दोइ नैन कह्यौ नहिं मानै, नदिया बहै जैसे सावन की।...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–10)

पद घुंघरू बांध—(प्रवचन—दसवां)  फूल खिलता है—अपनी निजता से प्रश्न—सार 1—परंपरा में भी फूल खिलते हैं और परंपरा के कारण भी फूल खिलते हैं। व्यवस्था या परंपरा तो मिटेगी नहीं; इसलिए उसमें कभी—कभी जान डालनी...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–11)

पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—ग्यारहवां) भक्ति: एक विराट प्यास  सूत्र:  म्हारो जनम—मरन को साथी, थानें नहिं बिसरूं दिन—राती। तुम देख्यां बिन कल न पड़त है, जानत मेरी छाती। ऊंची चढ़—चढ़ पंथ निहारूं, रोवै अखियां...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–12)

पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—बारहवां) मनुष्य: अनखिला परमात्मा  प्रश्न—सार:  1—आपने कहा कि संसार से विमुख होते ही परमात्मा से सन्मुखता हो जाती है। आखिर संसार कहां खत्म होता है और कहां परमात्मा शुरू होता है?...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–13)

पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—तेरहवां) मीरा से पुकारना सीखो सूत्र:  सखी, मेरी नींद नसानी हो। पिय को पंथ निहारत सिगरी, रैन विहानी हो। सब सखियन मिलि सीख दई, मन एक न मानी हो। बिन देख्या कल नांहि पड़त, जिय ऐसी...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–14)

पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—चौदहवां) समन्वय नहीं—साधना करो प्रश्न—सार: 1—आप कहते हैं कि मनुष्य अपने लिए पूरी तरह जिम्मेवार है। और दूसरी ओर आप कहते हैं कि “समस्त‘ सब करता है। इन दो वक्तव्यों के बीच समन्वय...

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फिर अमृत की बूंद पड़ी—ओशो

फिर अमृत की बूंद पड़ी—ओशो (ओशो द्वारा मनाली ओर मुम्बई में दिये गये आठ अमृत प्रवचनो का संग्रह। जिसमें उन्होंने अमरीकी सरकार द्वारा दिये गये अत्याचारों की चर्चा है) दुनिया में आज घोर निराशा की स्थिति है।...

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फिर अमृत की बूंद पड़ी–(प्रवचन–01)

मैं स्वतंत्र आदमी हूं—(पहला—प्रवचन) 31 जुलाई 1986 प्रातः सुमिला, जुहू बंबई बड़े दुख भरे हृदय से मुझे आपको बताना है कि आज हमारे पास जो आदमी है, वह इस योग्य नहीं है कि उसके लिए लड़ा जाए। टूटे हुए सपनों,...

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पद घुंघरू बांध–(प्रवचन–15)

 पद घुंघरू बांध—(प्रवचन—पंद्रहवां) हेरी! मैं तो दरद दिवानी सूत्र:  हेरी! मैं तो दरद दिवानी, मेरो दरद न जाणे कोइ। घायल की गति घायल जाणे, की जिन लाई होइ। जौहरि की गति जौहरि जाणे, की जिन जौहर होइ। सूली...

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फिर अमृत की बूंद पड़ी–(प्रवचन–02)

मैं जीवन सिखाता हूं—(प्रवचन—दूसरा)       दिनांक 1 अगस्त 1986;       प्रात: सुमिला, जुहू बंबई। मैंने आज के लिए भेजे गए प्रश्न देखे; और उन्हें देखकर मुझे बड़ी शर्म आई। शर्म इस बात की कि भारत की प्रतिभा...

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फिर अमृत की बूंद पड़ी–(प्रवचन–03)

एक नया ध्रुवतारा—(प्रवचन—तीसरा) दिनांक 4 अगस्त, सन् 1986; सुमिला, जुहू, बंबई। मैं अभी—अभी आपके प्रश्नों को देख रहा था। यह जानकर दुखा होता है कि भारत की प्रतिभा ऐसी कीचड़ में गिरी है कि प्रश्न भी नहीं...

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पद घूंघरू बांध–(प्रवचन–16)

संन्यास है—दृष्टि का उपचार—(प्रवचन—सोलहवां)  प्रश्न—सार:  1—आप कहते हैं—संन्यासी को संसार छोड़ना आवश्यक नहीं। क्यों? 2—आप अपने संन्यासियों को संसार से अलग नहीं होने की सलाह देते हैं। फिर आपके प्रवचनों...

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फिर अमरित की बूंद पड़ी–(प्रवचन–04)

मेरी दृष्टि सृजनात्मक है—(प्रवचन—चौथा) दिनांक 4 अगस्त, सन् 1986; प्रात: सुमिला, जुहू, बंबई। मोरारजी सरकार से लेकर राजीव सरकार तक के आप केवल आलोचक ही बने रहे है। किंतु इस देश की समस्याओं को सुलझाने के...

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पद घूंघरू बांध–(प्रवचन–17)

भक्ति का प्राण: प्रार्थना—(प्रवचन—सत्रहवां)  सूत्र :  झुक आई बदरिया सावन की, सावन की मनभावन की। सावन में उमग्यो मेरा मनवा, भनक सुनी हरि आवन की। उमड़—घुमड़ चहुं दिस से आए, दामण दमक झर लावन की।...

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पद घूंघरू बांध–(प्रवचन–18)

जीवन का रहस्य—मृत्यु में—(प्रवचन—अठारहवां)  प्रश्न—सार: 1—मैं असहाय हूं, मैं बेबस हूं! मैं क्या करूं? 2—मंसूर और सरमद के अफसाने पुराने हो गए। 3—ऐ रजनीश! मेरे लिए किस्सा नया तजवीज कर। क्या मेरी...

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फिर अमरित की बूंद पड़ी–(प्रवचन–05)

जीवन बहती गंगा है—(प्रवचन—पांचवां) दिनांक 6 अगस्त, सन् 1986; प्रात: सुमिला, जुहू, बंबई। मेरे प्रणाम को आप स्वीकार करें। मेरा प्रश्न ज्योतिष के संबंध में है। ज्योतिष के संबंध में आपके विचार क्या है?...

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