आलू बैंगन, बैंगन आलू—(अध्याय—चौवनवां)
भारत एक विशाल देश है। यहां बोली—चाली, रहन—सहन, खान—पान हर तरह की इतनी विविधता है कि जब आप इन सबका अनुभव करते हैं तो पता चलता है कि इस विविधता के अपने मजे हैं और अपनी चुनौतियां भी। हर तरह के मौसम और जलवायु का तो अपना अनुभव है ही लेकिन खान—पान पर एक अनूठा अनुभव यहां आपके लिए।
गुजरात के मित्रों ने जामनगर में शिविर किया। पहले दिन मैंने पूछा, ‘दोपहर के भोजन में क्या बना है। तो बोले ‘बैगन आलू की सब्जी।’ रात को बोले, ‘आलू बैंगन की सब्जी।’ मेरे को यह समझ में ना आए कि इन दोनों सब्जियों में फर्क क्या है तो मैंने आयोजकों से पूछा, ‘इसमें फर्क क्या होता है?’ तो बोले, ‘बैगन आलू में बैगन ज्यादा आलू कम, और आलू बैंगन में आलू ज्यादा बैगन कम।’
तीन दिन तक वहां पर तरह—तरह से आलू और बैंगन की ही सब्जी बनती रही। मैं जिन आयोजक के यहां ठहरा था उन्हें कहा, ‘क्या बात है, तीन दिन तक आप आलू बैंगन ही खिलाते रहे, क्या यहां कोई दूसरी सब्जी नहीं मिलती है, एक ही सब्जी खाते— खाते मेरा तो पेट ही बिगड़ गया है।’ तो वे बोले, ‘अरे क्या बात करते हैं आप, यहां तो हर तरह की सब्जी मिलती है, यह तो शिविर के आयोजकों का मामला था, आप जो कहें वह सब्जी बना सकते हैं।’ तो मैंने उन्हें कहा, ‘आलू गोभी बनाओ।’ जब खाने बैठे तो मैंने देखा कि आलू तो दिखे लेकिन गोभी को ढूंढना भी मुश्किल। मैंने कहा, ‘इसमें गोभी तो है ही नहीं।’ वे बोले, ‘आपको फिर गोभी आलू बोलना चाहिए।’ जिस सब्जी का आपने पहले नाम लिया उसी कि अधिकता होगी न!
अब हर जगह का मामला ही अलग तरह का होता है। मुझे ऐसे में याद आता कि कैसे ओशो ने इस विशाल देश में लगभग बीस सालों तक सतत यात्राएं की होंगी, कितनी कठिनाई और मुश्किलें उन्होंने देखीं.. .सिर्फ इसलिये कि सोया मनुष्य अपनी तंद्रा को तोड़ कर थोड़ा होश से भर जाए ताकि जीवन अधिक सुंदर हो, स्वस्थ हो। मैं मन ही मन ओशो का प्रणाम कर लेता।
आज इति।
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