स्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–44)
असली प्रश्नों को तो छूते भी नहीं—(अध्याय—चव्वालीस) ओशो से पूरी दुनिया से आने वाले सब तरह के लोगों ने हर तरह के प्रश्न पूछे और ओशो ने हर प्रश्न का जवाब दिया। अनेक बार जब हम प्रश्न सुनते हैं तो लगता...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(45)
ओशो का नाम, चिंगारी की तरह—(अध्याय—पैतालीसवां) दिल्ली में बिरला मंदिर के पास आर्य समाज का बहुत बड़ा मंच है। वहां के एक प्रमुख स्वामी जो अपनी उम्र 113 की बताते थे, मैं उनसे मिलने के लिए मेरे एक मित्र...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(46)
साहस कहां—(अध्याय—छियालीसवां) ओशो भर में यात्राओं के दौरान पता नहीं कितने संतों—महंतों से मिलना हुआ है। ऐसे कितने ही साधुओं से मिलना हुआ जिनके पूरी दुनिया में नाम हैं। लाखों उनके शिष्य हैं। लेकिन एक...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–12)
(अध्याय—बारहवां) ओशो पूना में सोहन के घर ठहरे हैं और संघवी टिफिन फैक्ट्री के ग्राउंड में उनके प्रवचन चल रहे हैं। संघवी टिफिन फैक्ट्री सोहन के घर से काफी दूर है। आज शाम प्रवचन के लिए जाने का .समय हो...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–13)
(अध्याय—तैरहवां) ओशो जबलपुर से आ पहुंचे हैं। उन्हें प्लेन से उदयपुर जाना है। इंडियन एयरलाइंस की कई दिनों से हड़ताल चल रही है और हम आशा कर रहे हैं कि हड़ताल कभी भी समाप्त हो सकती है, लेकिन हड़ताल जारी है।...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–14)
(अध्याय—चौहदवां) शाम सात बजे तक हम उदयपुर पहुंच जाते हैं। वहां हम यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि ओशो और हम सबके लिए एक ही कमरे का प्रबंध किया गया है, वह भी ऐसी बिल्डिंग में जिसके निर्माण का काम अभी चल...
View Articleसुनो भई साधो–(प्रवचन–07)
घूंघट के पट खोल रे—(प्रवचन—सातवां) दिनांक: 17 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना सूत्र: घूंघट का पट खोल रे, तो को पीव मिलेंगे। घट घट में वह साईं रमता, कटुक वचन मत बोल रे।। धन जोवन को गरब न कीजै, झूठा...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–47)
मोरारी बापू ऐ प्यारे इंसान—(अध्याय—सैतालिसवां) एकबार हम कुछ मित्र मोरारी बापू से मिलने गए। मैंने उनसे पूछा, ‘ आप रामायण की कथा करते हैं, मुझे एक प्रश्न पूछना है।’ वे मुस्कराकर बोले, ‘ स्वामी जी हमारे...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–48)
वेशभूषा ही नहीं, सब कुछ बदल गया—(अध्याय—अड़तालीसवां) आज कितने ही साधु—संत झेन की बात करते हैं, मनोविज्ञान की बात करते हैं, चेतन—अचेतन मन की बात करते हैं, सामान्यतया ये सब बातें वे ओशो की पुस्तकों से...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–49)
तिहाड़ जेल, कैदी और करामात—(अध्याय—उन्नचासवां) दिल्ली की तिहाड जेल, जहां हर तरह के खतरनाक से खतरनाक अपराधी बसते हैं। एक बार ऐसा हुआ कि वहां पर टाडा के अंतर्गत गिरफ्तार कैदियों को ध्यान करवाने का अवसर...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–15)
(अध्याय—पंद्रहवां) दोपहर के भोजन का समय है, और हम सब ओशो के साथ मेज के चारों ओर बैठे हुए हैं। ऐसा लगता है कि जिन मित्रों ने इस शिविर का आयोजन किया है वे लोग बहुत निर्धन हैं। जो भोजन वे दे रहे हैं, वह...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–16)
(अध्याय—सौहलवां) तपती हुई दोपहर है और ओशो भोजन के बाद अपनी चारपाई पर आराम कर रहे हैं, बाकी सब लोग बाहर गए हुए हैं। मैं दरवाजे की सिटकनी लगाकर चारपाइ के पास ही फर्श पर बैठ जाती हूं और उन्हें पंखा करने...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–17)
(अध्याय—सत्रहवां) सुबह के प्रवचन में मैं उनके बहुत पास बैठी हुई अपने छोटे से टेप रिकार्डर पर उनका प्रवचन रिकार्ड कर रही हूं। मुझे एक्कटेंशन कॉर्ड्स की कोई जानकारी नहीं है। हमेशा की तरह उनके माइक पर ही...
View Articleसुन भई साधो–(प्रवचन–08)
सुनो भाई साधो—(प्रवचन—आठवां) दिनांक: 18 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना सूत्र: संतों जागत नींद न कीजै। काल न खाय कलप नहि व्यापै, देह जरा नहि छीजै।। उलट गंग समुद्र ही सौखे, ससिं ओ सूरहि ग्रासै। नवग्रह...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–50)
नहीं चमत्कार नहीं……पर है तो….(पचासवां) ओशो का नजरिया इतना मौलिक और अनूठा होता है कि किसी भी विषय पर जब वे अपनी दृष्टि डालते हैं तो हम चकित रह जाते हैं कि अरे वाह, इस बात को इस तरह से भी देखा जा सकता...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–51)
बस में सफर…….या अंतिम सफर—(अध्याय–इक्यावनवां) एक बार मैं हरियाणा में रोहतक में शिविर पूरा कर बस से पानीपत जा रहा था। दोपहर का समय रहा होगा। टूटी—फूटी सड़क पर हिचकोले खाती बस चली जा रही थी। कोई नींद...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–52)
चंदनगढ़ में लोग मरते नहीं, मारे जाते है—(अध्याय—बावनवां) राजस्थान में एक जगह है, चंदनगढ़। वहां के विद्यालय के एक मास्टर साहब ने पुणे आकर मेरे से ध्यान शिविर की तारीख ली, मैंने उन्हें तारीख दे दी। नियत...
View Articleसुन भई साधो–(प्रवचन–09)
रस गगन गुफा में गजर झरै—(प्रवचन—नौवां) दिनांक: 19 नवंबर 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना सूत्र: रस गगन गुफा में अगर झरै। बिन बाजा झनकार उठे जहां, समुझि परै जब ध्यान धरै।। बिना ताल जहं कंवल फुलाने, तेहि चढ़ि...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–18)
(अध्याय—अट्ठारहवां) इंडियन द्म्परलाइंस की हड़ताल समाप्त हो गई है और हम प्लेन द्वारा ही उदयपुर से अहमदाबाद जाते हैं। प्लेन में यात्रा करने का यह मेरा पहला अनुभव है। ओशो प्लेन में चढ़ जाते हैं और मैं भी...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–19)
(अध्याय—उन्नीसवां) अहमदाबाद में ओशो के ठहरने की व्यवस्था एक खाली अपार्टमेंट में की गयी है, जो अतिथियों के लिए ही है। यह पहली मंजिल पर चपकभाई के अपार्टमेंट के सामने ही है। इसमें दो बैडरूम हैं। जिनमें...
View Article