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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय–96)

अध्‍याय—(छियानवां) कुछ दिन बाद मैं बाथरूम से सफाई करने के बाद बाहर निकलती ही हूं कि वहां बड़े जोर का धमाका होता है। मुझे कुछ समझ नहीं आता कि क्या हुआ। मैं ओशो के कमरे में झांकती हूं तो ओशो अपनी कुर्सी...

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दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय–97)

अध्‍याय—(सत्‍तानवां) मेरी वह माला जो गई है जो ओशो ने मुझे दी थी और एक नई माला मैंने बनवाई है। जिस दिन मुझे नई माला मिलती है, इसे पर्स में डालकर मैं ‘सुमिला ले आती हूं। मेरी आकांक्षा है कि यह माला मैं...

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दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय–98)

अध्‍याय—(अट्ठानवां) ओशो का शरीर स्वस्थ नहीं चल रहा और वे कछ दिन के लिए बोलना बंद कर देते हैं। इस बीच बंबई के कुछ मित्र उनके लिए कोई नई जगह भी खोज रहे हैं। ओशो की मौजूदगी चुंबकीय मशाल जैसी है। वे जहां...

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दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय–99)

अध्‍याय—(नीन्‍यानवां) नौ दिसंबर 1989 को निर्वाणो की मृत्यु की खबर सुनकर मैं स्तब्ध रह जाती हूं। मुझे याद आता है कि एक पुराने प्रवचन में मैंने उन्हें यह कहते सुना था कि जब सदगुरू देह त्याग करता है तो वे...

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दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय–100)

अध्‍याय—(सौवां) 17 जनवरी 1990 को मैं बंबई रजिस्ट्रार के ऑफिस में कुछ कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए जाती हूं। किसी कारणवश कागजात अभी तैयार नहीं हैं और मुझे 20 जनवरी का समय मिलता है। मैं 18 जनवरी की...

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जीवन रहस्‍य–(अध्‍याय–06)

उधार ज्ञान से मुक्‍ति—(प्रवचन—छट्ठवां) एक बड़े राज्य का मुख्यमंत्री मर गया था। उस राज्य का नियम था कि मुख्यमंत्री का चुनाव, देश में जो सर्वाधिक बुद्धिमान आदमी हो, उसकी खोज करके किया जाता था। सारे देश...

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किताबे–ए–मीरदाद–(अध्‍याय–15)

अध्‍याय—पंद्रह शमदाम मीरदाद को नौका से बाहर निकाल देने का प्रयत्न करता है मुर्शिद अपमान करने, अपमानित होने और ससार को दिव्य ज्ञान के द्वारा अपनाने के बारे में बात करता है  नरौंदा : मुर्शिद ने अभी अपनी...

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किताबे–ए–मीरदाद–(अध्‍याय–16)

अध्याय–सोलह लेनदार और देनदार धन क्या है? रस्तिदियन को नौका के ऋण से मुक्त किया जाता है  नरौंदा : एक दिन जब सातों साथी और मुर्शिद नीड से नौका की ओर लौट रहे थे तो उन्होंने द्वार पर खड़े शमदाम को अपने...

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किताबे–ए–मीरदाद–(अध्‍याय–17)

अध्याय—सत्रह मीरदाद के विरुद्ध अपने संघर्ष में शमदाम रिश्वत का सहारा लेता है। नरौंदा : कई दिन तक रस्तिदियन का मामला नौका में चर्चा का मुख्य विषय बना रहा। मिकेयन, मिकास्तर तथा जमील ने जोश के साथ मुर्शिद...

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जीवन रहस्‍य–(प्रवचन–07)

पिछले जन्‍मों का स्‍मरण—(प्रवचन—सातवां) ओशो बंदर से आदमी का विकास हुआ यह तो समझ में आता है। लेकिन आप जो आत्मा के विकास की बात कहते है, वह जरा समझ में नहीं आता। इसमें समझने की बात ही बहुत ज्यादा नहीं...

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किताबे–ए–मीरदाद–(अध्‍याय–18)

अध्याय—अठारह हिम्बल के पिता की मृत्यु तथा जिन परिस्थितियों में उसकी मृत्‍यु उन्हें मीरदाद दिव्य शक्ति के द्वारा जान है वह मृत्यु की बात करता है समय सबसे बड़ा मदारी है समय का चक्र, उसकी हाल और उसकी धुरी...

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किताबे–ए–मीरदाद–(अध्‍याय–19)

अध्याय—उन्नीस तर्क और विश्वास अहं को नकारना अहं को उभारना है समय के पहिये को कैसे रोका जाये रोना और हँसना  बैबून : क्षमा करें, मुर्शिद। आपका तर्क अपनी तर्कहीनता से मुझे उलझन में डाल देता है। मीरदाद :...

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किताबे–ए–मीरदाद–(अध्‍याय–20)

अध्याय—बीस मरने के बाद हम कआं जाते हैं? पश्चात्ताप मिकास्तर : मुर्शिद, मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं? मीरदाद : इस समय तुम कहाँ हो, मिकास्तर? मिकास्तर : नीड़ में। मीरदाद : तुम समझते हो कि यह नीड़ तुम्हें...

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चक्रा साउंड ध्‍यान–(कैसे करे)

चक्रा साऊंड ध्‍यान–ओर रंग ओशो चक्रा साउंड ध्‍यान— भारतीय अध्‍यात्‍म जगत में जो भी खोज हुई है। वह अमुल्‍य है। ध्‍यानियों ने अपने अंतस में उतर कर संगीत, नृत्‍य, योग, और आर्युवेद, मुर्ति कला जाना है।...

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जीवन रहस्‍य–(प्रवचन–08)

नये वर्ष का नया दिन—(प्रवचन—आठवां) मेरे प्रियआत्‍मन! नये वर्ष के नये दि पर पहली बात तो यह कहना : चाहूंगा कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नये दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में कभी-कभी नये...

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संतो मगन भया मन मेरा–(ओशो)

संतों मगन भया मन मेरा (रज्‍जब—वाणी)  मेरे पास आयु हो तो मैं तुम्हें परमात्मा नहीं देना चाहता, मैं तुम्हें जीवन देना चाहता हूँ। और जिसके पास भी जीवन हो, उसे परमात्मा मिल जाता है। जीवन परमात्मा का पहला...

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जीवन रहस्‍य–(प्रवचन–09)

मैं कोई विचारक नहीं हूं—(प्रवचन—नौवां) मेरे प्रिय आत्मन्! ऐसा लगता है कि कहीं कुछ भूल हो गई है। मैं कोई : विचारक नहीं हूं। और ऐसा भी नहीं मैं मानता हूं कि विचारकों से जगत का कोई लाभ हुआ है। मनुष्य के...

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संतो मगन भया मन मेरा–(प्रवचन–01)

सदगुरू चरण ही शरण है—(प्रवचन—पहला) दिनांक 12 मई 1979, श्री रजनीश आश्रम पूना। सूत्र: रामराय, महा कठिन यहु मया। जिन मोहि सकल जग खाया।। यहु माया बह्मा—सा मोह्या, संकर—सा अटकाया। महाबली सिध, साधक मारे, छिन...

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किताबे–ए–मीरदाद–(अध्‍याय–21)

अध्याय—इक्कीस पवित्र प्रभु — इच्छा घटनाएँ जैसे और जब घटती हैं वैसे और तब क्यो घटती हैं? मीरदाद : कैसी विचित्र बात है कि तुम, जो समय और स्थान के बालक हो, अभी तक यह नहीं जानते कि समय स्थान की शिलाओं पर...

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किताबे–ए–मीरदाद–(अध्‍याय–22)

अध्याय—बाईस मीरदाद जमोरा को उसके रहस्य के भार से मुक्त करता है और पुरुष तथा स्त्री की, विवाह की, ब्रह्मचर्य की तथा आत्म— विजेता की बात करता है मीरदाद : नरौंदा मेरी विश्वसनीय स्मृति। क्या कहते हैं तुमसे...

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