दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–05)
(अध्याय—पांचवां) इस ध्यान शिविर के बाद जब मैं वापस बंबई लौटती हूँ तो खुद को लोगों की भीड़ में खोया हुआ पाती हूं। उनसे फिर से मिलने की गहन. अभीप्सा ने मेरी रातों की नींद चुरा ली है। करीब—करीब हर रात मैं...
View Articleतंत्र–सूत्र–(भाग–4) प्रवचन–64
आनंद है अचुनाव में—(प्रवचन—चौसठवां) प्रश्नसार: 1—अधिक लोग दुःख और पीड़ा का जीवन ही क्यों चुनते है? 2—हम एक प्रबुद्ध की आशा कैसे कर सकते है? पहला प्रश्न : आनंद है क्या मनुष्य के सामने दो ही विकल्प...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–35)
मनाली में ओशो से मिलन—(अध्याय—पैतीसवां) मैं अमरीका से आकर पुणे आश्रम के काम में हाथ बंटाने लगा था। अब उतना काम तो रहा नहीं था और आश्रम की गतिविधियां भी बहुत कम हो चुकी थीं। सिर्फ उत्सव के दौरान भारत...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–36)
ओशो का पुन: पुणे आगमन—(अध्याय—छत्तीसवां) कितने आश्चर्य की बात है कि ओशो जैसे रहस्यदर्शी को इस विशाल पृथ्वी ग्रह पर अपने लिये एक छोटा—सा स्थान बनाना कठिन हो रहा था। मनुष्यता की बेहोशी पर कभी आश्चर्य...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–37)
ओशो सक्रिय ध्यानव कोरेगांव पार्क—(अध्याय—सैतीसवां) ओशो का पुणे आना हो गया। और आश्रम में ही सक्रिय ध्यान शुरू हो गया। पुणे का कोरेगांव पार्क इलाका पुराने जमाने के राजा महाराजाओं और धनिक लोगों का इलाका...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–06)
(अध्याय—छट्ठवां) शाम के 8 बजकर 55 मिनट हो चुके हैं। मैं उस बिल्डिंग के प्रवेशद्वार से भीतर जा रही हूं उसी वक्त वहां से बाहर आती हुई एक कार मेरे पास आकर रुक जाती है। मैं अपने विचारों में इतनी लीन हूं...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–07)
(अध्याय—सातवां) ओशो यूनिवर्सिटी से अपने प्राध्यापक पद का त्याग कर चुके हैं। वे भारत—भर में ध्यान शिविर लेते हुए और, जनसभाओं में, खुले मैदानों में पंद्रह—पंद्रह, बीस—बीस हजार लोगों को संबोधित करते हुए...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–08)
(अध्याय—आठवां) ओशो ट्रेन द्वारा बंबई से जबलपुर के लिए रवाना हो रहे हैं। प्लेटफार्म पर बहुत भीड़ और शोर है और हम कोई पचास लोग हैं, जो उन्हें विदा देने आए हुए हैं। कुछ उनसे हाथ मिला रहे हैं, कुछ उनके...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–38)
ओशो पर देश भर में मुकदमें—(अध्याय—अड़तीसवां) ओेशो सत्य को बोलने वाले निर्भय व्यक्ति थे। हर प्रकार के स्थापित मूल्य जो मानव जाति को परेशान करते हैं, दुखी करते हैं, उसे रुग्ण और अपाहिज बनाया हुआ है उस...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–39)
ओशो कार्य, ओशो धर्मदूत…….(अध्याय—उन्नतालीसवां) मैं पुणे कम्यून का ईंचार्ज होते हुए, सभी तरह के कामों में व्यस्त रहता था। धीरे—धीरे मुझे लगने लगा कि अब यह काम मैं और नहीं कर सकता। कुछ भी हो मै बदलाव...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–40)
ओशो के आसपास रूपांतरण—(अध्याय—चालीसवां) ऐसे न जाने कितने किस्से मिल जाएंगे कि कोई ओशो के विरोध में था और ओशो की किताब पढ़ी या प्रवचन सुना और सारा विरोध विदा हो गया। एक बार इस्कान के एक स्वामी दास आश्रम...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–41)
प्रवचन सुनना है तो कुछ देना ही होगा—(अध्याय—इक्कतालीसवां) धर्म को हमने सालों से यूं लिया हुआ है मानो वह कोई ऐसी बात हो कि जो वृद्ध हो गये हैं, या जिनके पास कुछ न करने को रहा, वे धर्म में रुचि लेने...
View Articleसुन भई साधो–(प्रवचन–04)
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है—(प्रवचन—चौथा) दिनांक: 14 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना सूत्र: गुरु मानुष करि जानते, ते नर कहिए अंध। महादुखी संसार में, आगे जम के बंध।। तीन लोक नौ खंड में, गुरु ते बड़ा न...
View Articleसुन भई साधो–(प्रवचन–05)
झीनी झीनी बिनी चदरिया—(प्रवचन—पांचवां) दिनांक: 15 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना सूत्र: झीनी झीनी बिनी चदरिया काहे के ताना काहे के भरनी, कौन तार से बिनी चदरिया। इंगला पिंगला ताना भरनी, सुषमन तार से...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–43)
बात को समझना जरूरी है—(अध्याय—बयालीसवां) ओशो के बारे में जितने विरोधाभास चलते, जितनी तरह—तरह की बातें चलती उतना शायद कभी किसी के बारे में नहीं हुआ होगा। दुनिया भर में ओशो नित— नई बातों से चर्चा में...
View Articleस्वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्याय–44)
सत्य साई बाबा से मुलाकात—(अध्याय—तेरालिसवां) लोगों का मूल्यांकन करना बडी आसान बात है। कोई भी बात को देख कर उस व्यक्ति के बारे में कोई विचारधारा बना लेना, धारणा बना लेना बड़ा आसान होता है। ओशो ने कहा...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–09)
(अध्याय—नौवां) मैं वीटी स्टेशन के प्लेटफार्म पर खड़ी ओशो का इंतजार कर रही हूं वे जबलपुर से आने वाले हैं। मैं हैरान हूं कि अन्य कोई मित्र नजर नहीं आ रहे हैं और सोचने लगती .हूं कि कहीं शे उक्तके आने की...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–10)
(अध्याय—दसवां) हम ओशो के साथ वीटी स्टेशन आए हैं, वे जबलपुर जा रहे हैं। 1969 में गर्मियों की तपती हुई दोपहर है। मैं उनके पीछे खड़ी हुई यह देख रही हूं कि उनके पीठ से पसीना कैसे पानी की छोटी सी धार की तरह...
View Articleदस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय–11)
(अध्याय—ग्याहरवां) आज मूसलाधार वर्षा हो रही है और ओशो को शाम की फ्लाइट से पूना जाना है। वे बंबई में चचाटि स्टेशन के नजदीक सी. सी. आई. चेंबर्स’ में ठहरे हुए हैं और वहां से एयरपोर्ट पहुंचने में कम से...
View Articleसुन भई साधो–(प्रवचन–06)
भक्ति का मारग झीनी रे—(प्रवचन—छठवां) दिनांक: 16 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना। सूत्र: भक्ति का मारग झीना रे। नहिं अचाह नहिं चाहना, चरनन लौ लीना रे। साधन के रसधार में रहै, निसदिन भीना रे।। राम में...
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