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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–15)

विचार के जन्म के लिए : विचारों से मुक्ति—(प्रवचन—पंद्रहवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966— 67 विचार—शक्ति के संबंध में आप जानना चाहते हैं? निश्‍चय ही विचार से बड़ी और कोई शक्ति नहीं। विचार...

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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–17)

महावीर के मौलिक योगदान—(प्रवचन—सत्रहवां) प्रश्न: महावीर के सामने लाखों विरोधी थे, क्या उनके विरोध की चिंता महावीर को नहीं थी? अहिंसक व्यक्ति के भी विरोधी पैदा होना अहिंसा के विषय में संदेह पैदा करता...

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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–18)

वासना-चक्र के बाहर महावीर-छलांग—(प्रवचन—अट्ठारहवां) प्रश्न:  महावीर के पूर्व-जन्म की स्थिति मोक्ष की स्थिति थी और आपका कहना है कि मोक्ष से लौटना नहीं होता, तो फिर उनका लौटना कृपया स्पष्ट करें। महायान...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–16)

जीये और जानें—(प्रवचन—सोलहवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966—67 मैं मनुष्य को जड़ता में डूबा हुआ देखता हूं। उसका जीवन बिलकुल यांत्रिक बन गया है। गुरजिएफ ने ठीक ही उसके लिए मानव यंत्र का...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–17)

शिक्षा का लक्ष्‍य—(प्रवचन—सतरहवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र मैं आपकी आंखों में देखता हूं और उनमें घिरे विषाद और निराशा को देखकर मेरा हृदय रोने लगता है। मनुष्य ने स्वयं अपने साथ यह क्या कर...

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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–19)

महावीर: सत्य अनेकांत—(प्रवचन—उन्‍नीसवां) प्रश्न:  भगवान महावीर ने इंद्र को स्पष्ट कहा कि मुझे स्वयं कर्मों से युद्ध करना है, तो भी वह एक देवता को देख-रेख के लिए नियुक्त कर गया! इस घटना में क्या कोई...

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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–20)

महावीर: परम-स्वातंत्र्य की उदघोषणा—(प्रवचन—बीसवां)  प्रश्न:  कस्तूर भाई ने पूछा है कि महावीर प्राकृत भाषा में क्यों बोले, संस्कृत में क्यों नहीं? यह प्रश्न सच में गहरा है। संस्कृत कभी भी लोक-भाषा नहीं...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–18)

जीवन—संपदा का अधिकार—(प्रवचन—अठरहवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966—67 मैं क्या देखता हूं? देखता हूं कि मनुष्य सोया हुआ है। आप सोए हुए हैं। प्रत्येक मनुष्य सोया हुआ है। रात्रि ही नहीं,...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–19)

समाधि योग—(प्रवचन—उन्‍नीसवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966—67 सत्य की खोज की दो दिशाएं हैं—एक विचार की, एक दर्शन की। विचार—मार्ग चक्रीय है। उसमें गति तो बहुत होती है, पर गन्तव्य कभी भी...

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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–21)

अनेकांत: महावीर का दर्शन-आकाश—(प्रवचन—इक्‍कीसवां) प्रश्न:  आपने पिछले दिनों भगवान महावीर के संबंध में एकांत वाली बात कही थी। वह क्या रियलाइजेशन जो भगवान महावीर का था–वह भी एकांत ही था? क्या वह संपूर्ण...

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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–22)

जागा सो महावीर: सोया सो अमहावीर—(प्रवचन—बाईसवां)  प्रश्न:  अगर मन ही जागरण है, तो इसकी मूर्च्छा का क्या कारण है? यह मूर्च्छा कहां से पैदा हुई?  महावीर से किसी ने पूछा, साधु कौन है? स्वभावतः अपेक्षा रही...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–20)

जीवन की अदृश्य जड़ें—(प्रवचन—बीसवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966—67 किस संबंध में आपसे बातें करूं—जीवन के संबंध में? शायद यही उचित होगा, क्योंकि जीवित होते हुए भी जीवन से हमारा संबंध नहीं...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–21)

अहिंसा क्या है?—(प्रवचन—इक्किसवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966—67 मैं अहिंसा पर बहुत विचार करता था। जो कुछ उस संबंध में सुनता था, उससे तृप्ति नहीं होती थी। वे बातें बहुत ऊपरी होती थीं।...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–22)

आनंद की दिशा—(प्रवचन—बाईसवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र, 1966—67 यह क्या हो गया है? मनुष्य को यह क्या हो गया है? मैं आश्रर्य में हूं कि इतनी आत्म विपन्नता, इतनी अर्थहीनता और इतनी घनी ऊब के...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–23)

मांगो और मिलेगा—(प्रवचन—तेइसवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966 — 67 यह क्या देख रहा हूं? यह कैसी निराशा तुम्हारी आंखों में है? और क्या तुम्हें शात नहीं है कि जब आंखें निराश होती हैं, तब...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–24)

प्रेम ही प्रभु है—(प्रवचन—चौबीसवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966—67 मैं मनुष्य को रोज विकृति से विकृति की ओर जाते देख रहा हूं उसके भीतर कोई आधार टूट गया है। कोई बहुत अनिवार्य जीवन—स्नायु...

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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–23)

महावीर: आत्यंतिक स्वतंत्रता के प्रतीक—(प्रवचन—तेईसवां) प्रश्न:  यह सच है कि आत्मा अमर है, ज्ञानस्वरूप है, फिर कैसे अज्ञान में गिरती है? कैसे बंधन में गिरती है? कैसे शरीर ग्रहण करती है–जब कि शरीर छोड़ना...

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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–24)

दुख, सुख और महावीर-आनंद—(प्रवचन—चौबीसवां) दुख, सुख और आनंद, इन तीन शब्दों को समझना बहुत उपयोगी है। दुख और सुख भिन्न चीजें नहीं हैं, बल्कि उन दोनों के बीच जो भेद है, वह ज्यादा से ज्यादा मात्रा का,...

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मैं कहता हूं अांखन देखी–(प्रवचन–25)

नीति, भय और प्रेम—(प्रवचन—पच्‍चीसवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966—67 मैं सोचता हूं कि क्या बोलूं? मनुष्य के संबंध में विचार करते ही मुझे उन हजार आंखों का स्मरण आता है, जिन्हें देखने और...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–26)

अहिंसा का अर्थ—(प्रवचन—छब्‍बीसवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966—67 मैं उन दिनों का स्मरण करता हूं जब चित्त पर घना अंधकार था और स्वयं के भीतर कोई मार्ग दिखाई नहीं पड़ता था। तब की एक बात...

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