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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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महावीर मेरी दृष्‍टी में–(प्रवचन–25)

महावीर: मेरी दृष्टि में—(प्रवचन—पच्‍चीसवां)  महावीर पर इतने दिनों तक बात करनी अत्यंत आनंदपूर्ण थी। यह ऐसे ही था, जैसे मैं अपने संबंध में ही बात कर रहा हूं। पराए के संबंध में बात की भी नहीं जा सकती।...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–27)

मैं मृत्यु सिखाता हूं—(प्रवचन—सत्‍ताईसवा) ‘मै कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966 — 67 मैं प्रकाश की बात नहीं करता है वह कोई प्रश्‍न ही नहीं है। प्रश्‍न वस्तुत: आंख का है। वह है, तो प्रकाश है। वह...

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मन ही पूजा मन ही धूप–(संत–रैदास)

मन ही पूजा मन ही धूप—(संत—रैदास) ओशो (रैदास वाणी पर प्रश्‍नोत्‍तर सहित पुणे में ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत प्रवचनो का अनुपन संकलन) आमुख: आदमी को क्या हो गया है? आदमी के इस बगीचे में फूल खिलने बंद हो गए!...

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मै कहता आंखन देखी–(प्रवचन–28)

यह मन क्‍या है?—(प्रवचन—अट्ठाईसवां) ‘अमृत वाणी’ से संकलित सुधा—बिन्दु 1970—71 एक आकाश, एक स्पेस बाहर है, जिसमें हम चलते हैं, उठते हैं, बैठते हैं—जहां भवन निर्मित होते हैं और खंडहर हो जाते हैं। जहां...

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मैं कहता अांखन देखी–(प्रवचन–29)

जो बोएंगे बीज वही काटेंगे फसल—(प्रवचन—उन्नतीसवां) ‘अमृत वाणी’ से संकलित सुधा—बिंदु 1970—71 किसे हम कहें कि अपना मित्र है और किसे हम कहें कि अपना शत्रु है। एक छोटी—सी परिभाषा निर्मित की जा सकती है। हम...

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मन ही पूजा मन ही धूप–(प्रवचन–1)

आग के फूल—(पहला प्रवचन) सूत्र: बिनु देखे उपजै नहि आसा। जो दीसै सो होई बिनासा।। बरन सहित जो जापै नामु। सो जोगी केवस निहकामु।। परचै राम रवै जो कोई। पारसु परसै ना दुबिधा होई।। सो मुनि मन की दुबिधा खाइ।...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–30)

मृत्यु और परलोक—(प्रवचन—तीसवां) ‘अमृत—वाणी’ से संकलित सुधा—बिंदु 1970—1971 इस जगत में अज्ञान के अतिरिक्त और कोई मृत्यु नहीं है। अज्ञान ही मृत्यु है, ‘इग्रोरेन्स इज़ डेथ’। क्या अर्थ हुआ इसका कि अज्ञान ही...

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मन ही पूजा मन ही धूप–(प्रवचन–2)

जीवन एक रहस्‍य है—(प्रवचन—दूसरा) प्रश्न—सार: 1— ओशो, मैंने उन्‍हें देखा था खिले फूल की तरह अस्‍तित्‍व की हवा के संग डोलत हुए आनंद की सुगंध लुटाते हुए सदा सब के दिलों में प्रेम का रस घोलत हुए लवलीन हो...

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गीता दर्शन–(भाग–7)

गीता—दर्शन—(भाग सात) ओशो (ओशो द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय चौदह ‘गुणत्रय—विभाग—योग’, अध्याय पंद्रह ‘पुरुषोत्तम—योग’ एवं अध्याय सोलह ‘दैव— असुर—संपद—विभाग—योग’ पर दिए गए पच्चीस अमृत प्रवचनों का...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–31)

भगवत—प्रेम—(प्रवचन—इक्कतीसवां) ‘अमृत—वाणी’ से संकलित सुधा—बिंदु 1970—1971 जगत में तीन प्रकार के प्रेम हैं—एक : वस्तुओं का प्रेम, जिससे हम सब परिचित हैं। अधिकतर हम वस्तुओं के प्रेम से ही परिचित हैं।...

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मैं कहता अांखन देखी–(प्रवचन–32)

जागते—जागते…..(प्रवचन—बत्‍तीसवां) ‘अमृत—वाणी’ से संकलित सुधा—बिंदु 1970—71  1—परमात्मा की चाह नहीं हो सकती मन मांगता रहता है संसार को, वासनाएं दौड़ती रहती हैं वस्तुओं की तरफ, शरीर आतुर होता है शरीरों के...

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मन ही पूजा मन ही धूप–(प्रवचन–3)

क्‍या तू सोया जाग अयाना—(प्रवचन—तीसरा) सूत्र: जो दिन आवहि सो दिन जाही। करना कूच रहन थिरू नाही।। संगु चलत है हम भी चलना। दूरि गवनु सिर ऊपरि मरना।। क्‍या तू सोया जाब अयाना। तै जीवन जगि सचु करि जाना।।...

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गीता दर्शन–(भाग-7) प्रवचन–163

चाह है संसार और अचाह हे परम सिद्धि—(प्रवचन—पहला) अध्‍याय—14 सूत्र: श्रीमद्भगवद्गली अथ चतर्दशोऽध्याय — श्रीभगवानवाच: परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्। यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां...

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अष्‍टावक्र: महागीता–(भाग–2) प्रवचन–1

अष्‍टावक्र महागीता—(भाग—2) ओशो इन सूत्रों पर खूब मनन करना—बार—बार; जैसे कोई जूगाली करता है। फिर—फिर,       क्‍योंकि इनमें बहुतरस है। जितना तुम चबाओगे, उतना ही अमृत झरेगा।       वे कुछ सूत्र ऐसे नहीं है...

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अष्‍टावक्र महागीता–(भाग–2) प्रवचन–2

परीक्षा के गहन सोपान—प्रवचन—दूसरा दिनांक: 27 सितंबर, 1976 श्री रजनीश आश्रम, पूना।  सूत्र: इहामुत्र विरक्तस्थ नित्यानित्यविवेकिन:। आश्चर्य मोक्षकामस्य मोक्षादेव विभीषिका।। 53।। धीरस्तु भोज्यमानोउयि...

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अष्‍टावक्र महागीता–(भाग–2) प्रवचन–3

विस्‍मय है द्वार प्रभु का—प्रवचन–तीसरा दिनांक: 28, सितंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्‍न सार: पहला प्रश्न:  मनोवैज्ञानिक विक्टर ई. फ्रैंकल ने ‘अहा—अनुभव’ (Aha-Experience) एवं ‘शिखर—अनुभव’...

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अष्‍टावक्र महागीता–(भाग–2) प्रवचन–4

संन्यास का अनुशासन : सहजता—प्रवचन—चौथा दिनांक: 29 सितंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना।  सूत्र: हंतात्मज्ञस्य धीरस्थ खेलतो भोगलीलया। न हि संसारवाहीकैर्मूढ़ै सह समानता।।60।। यत्यदं प्रेम्मवो दीना:...

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अष्‍टावक्र महागीता–(भाग–2) प्रवचन–5

क्रांति: निजी और वैयक्‍तिक—प्रवचन—पांचवां दिनांक: 30 सितंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना।  प्रश्‍न सार: पहला प्रश्न :  आप आज मौजूद हैं, तो भी मनुष्य नीचे और नीचे की ओर जा रहा है; जबकि बद्धों के आगमन...

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मन ही पूजा मन ही धूप–(संत रैदास) प्रवचन–9

संगति के परताप महातम—(प्रवचन—नौंवां) सूत्र:  अब कैसे छूटै नामरट लागी। प्रभुजी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग—अंग बास समानी। प्रभुजी तुम घनबन हम मोरा। जैसे चितवन चंद चकोरा।। प्रभुजी तुम दीपक हम बाती। जाकी...

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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–41)

की पूरब श्रेष्ठतम देन : संन्यास—(प्रवचन—इक्‍कतालिसवां) ‘नव— संन्यास क्या?': से संकलित ‘संन्यास: मेरी दृष्टि में’ : रेडिओ—वार्ता आकाशवाणी बम्बई से प्रसारित दिनांक 3 जुलाई 1971  मनुष्‍य है एक बीज—अनन्त...

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