महावीर मेरी दृष्टी में–(प्रवचन–8)
तीर्थंकर महावीर: अनुभूति और अभिव्यक्ति—(प्रवचन—आठवां) प्रश्न: महावीर के पहले जो तेईस तीर्थंकर रहे तो महावीर के फेमिली वाले या तो किसी के अनुयायी रहे होंगे–महावीर तो किसी के अनुयायी थे नहीं–तो वे...
View Articleएक विश्वव्यापी खतरा—(प्रवचन—6)
एक विश्वव्यापी खतरा—(प्रवचन—छ:) हिमालय में बसने के ख्याल से भगवान ने मध्य—नवम्बर में अमरीका छोड़ा। लेकिन लगा कि। भारत सरकार के इरादे कुछ और ही थे। तीन ही दिनों में, भगवान के साथ—साथ आए और आठ से पंद्रह...
View Articleमैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–5)
मंदिर के आंतरिक अर्थ—(प्रवचन—पांचवां) ”मैं कहता आंखन देखी’’ : अंतरंग भेंट वार्ता बुडलैड़, बम्बई दिनांक 12 मार्च 1971 मंदिर तीर्थ तिलक—टीके मूर्ति—पूजा माला मंत्र—तंत्र शाख—पुराण हवन—यज्ञ अनुष्ठान...
View Articleमहावीर मेरी दृष्टी में–(प्रवचन–9)
प्रतिक्रमण: महावीर-सूत्र—(प्रवचन—नौवां) महावीर ने जो जाना, उसे जीवन के भिन्न-भिन्न तलों तक पहुंचाने की अथक चेष्टा की है। कल हम सोचते थे कि मनुष्य से नीचे जो मूक जगत है, उस तक महावीर ने कैसे संवाद किया,...
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तीर्थ : परम की गुह्म यात्रा—(प्रवचन—छठवां) ‘गहरे पानी पैठ : (अंतरंग चर्चा, बुडलैण्ड) बम्बई दिनांक 26 अप्रैल 1971 प्रशांत महासागर में एक छोटे—से द्वीप पर, ईस्टर आईलैंड में एक हजार विशाल मूर्तियां है...
View Articleमहावीर मेरी दृष्टी में–(प्रवचन–10)
अप्रमाद: महावीर-धर्म—(प्रवचन—दसवां) प्रश्न: वह कल जो आपने बताया कि तिब्बत में कुछ ऐसी धारणा मौजूद है जो कि तीसरा नेत्र खुलने वाली और उसके द्वारा भविष्य का ज्ञान हो जाने वाली बात, और वह भी कई सौ वर्ष...
View Articleमैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–7)
तिलक—टीके : तृतीय नेत्र की अभिव्यंजना–(प्रवचन–सातवां) गहरे पानी पैठ: (अंतरंग चर्चा वुडलैण्ड) बम्बई, 12 जून 1971 तिलक—टीके के संबंध में समझने के पहले दो छोटी—सी घटनाएं आपसे कहूं फिर आसान हो सकेगी बात।...
View Articleमहावीर मेरी दृष्टी मैं–(प्रवचन–11)
सामायिक: महावीर-साधना—(प्रवचन—ग्यारहवां) महावीर की साधना-पद्धति में केंद्रीय है सामायिक। यह शब्द बना है समय से और पहले इस शब्द को थोड़ा सा समझ लेना बड़ा उपयोगी होगा। पदार्थ का अस्तित्व है तीन आयाम में,...
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मूर्ति—पूजा : से अमूर्त की और—(प्रवचन—आठवां) ‘गहरे पानी पैठ’. अंतरंग चर्चा , बम्बई दिनांक 16 जून 1971 डाक्टर फ्रेंक रोडाल्फ ने अपना पूरा जीवन एक बहुत ही अनूठी प्रक्रिया की खोज में लगाया। उस प्रक्रिया...
View Articleमहावीर मेरी दृष्टी में–(प्रवचन–12)
कर्म-सिद्धांत: महावीर-व्याख्या—(प्रवचन—बारहवां) पहली बात तो टंडन जी पूछते हैं, उसे थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। सामायिक के लिए मैंने जो कहा और वीतरागता के लिए जो कहा, वह बिलकुल समान प्रतीत होगा। क्योंकि...
View Articleमहावीर मेरी दृष्टी में–(प्रवचन–13)
जाति-स्मरण: महावीर-उपाय—(प्रवचन—तेरहवां) पहले थोड़ी सी बातें प्रश्नों के संबंध में ही लें। यह जरूर पूछा जा सकता है कि यदि पता हो, एक दुर्घटना होने वाली है, तो रुक जाना चाहिए, क्यों जाना? मैंने जो...
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ज्योतिष : अद्वैत का विज्ञान—(प्रवचन—नौवां) ‘ज्योतिष : अद्वैत का विज्ञान’ : (प्रश्नोतर चर्चा) बुडलैंड बम्बई, दिनांक 9 जूलाई 1971 प्रश्न– मैं भगवान श्री के चरणों में निवेदन करूंगा कि हम एक नये विषय पर...
View Articleमहावीर मेरी दृष्टी में–(प्रवचन–14)
महावीर: परम समर्पित व्यक्तित्व—(प्रवचन—चौदहवां) प्रश्न: महावीर को ऐसा कोई गुरु अथवा पंथ क्यों नहीं मिल सका, जिनके चरणों में महावीर अपना आत्मसमर्पण कर सकें? महावीर ऐसा क्या चाहते थे? जीवन में बहुत कुछ...
View Articleमहावीर मेरी दृष्टी में–(प्रवचन–15)
महावीर: अस्तित्व की गहराइयों में—(प्रवचन—पंद्रहवां) महावीर ने न तो नियंता को स्वीकार किया, न किसी समर्पण को, न किसी गुरु को, न शास्त्र को, न परंपरा को, तो यह प्रश्न बिलकुल ही स्वाभाविक उठ सकता है कि...
View Articleमहावीर मेरी दृष्टी में–(प्रवचन–16)
महावीर: अनादि, अनीश्वर और स्वयंभू अस्तित्व—(प्रवचन—सोलहवां) प्रश्न : कपिल ने पूछा है कि इस जगत का, इस जीवन का प्रारंभ कब हुआ? कैसे हुआ? यह महावीर के प्रसंग में भी बात बड़ी महत्वपूर्ण है। इसलिए...
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ज्योतिष अर्थात अध्यात्म–(प्रवचन—दसवां) ‘ज्योतिष अर्थात अध्यात्म : (प्रश्रोत्तर चर्चा) बुडलैण्ड बम्बई दिनांक 9 जुलाई 1971 कुछ बातें जान लेनी जरूरी हैं। सबसे पहले तो यह बात जान लेनी जरूरी है कि...
View Articleमैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–11)
मैं कौन हूं?—(प्रवचन—ग्यारहवां) मैं कौन हूं? से संकलित क्रांति—सूत्र 1966—67 एक रात्रि की बात है। पूर्णिमा थी, मैं नदी तट पर था, अकेला आकाश को देखता था। दूर—दूर तक सन्नाटा था। फिर किसी के पैरो की आहट...
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धर्म क्या है?—(प्रवचन—बारहवां) ‘मैं कौन हूं’ से संकलित क्रांति?सूत्र 1966—67 मैं धर्म पर क्या कहूं? जो कहा जा सकता है, वह धर्म नहीं होगा। जो विचार के परे है, वह वाणी के अंतर्गत नहीं हो सकता है।...
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विज्ञान की अग्नि में धर्म और विश्वास—(प्रवचन—तेहरवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966 — 67 मैं स्मरण करता हूं मनुष्य के इतिहास की सबसे पहली घटना को। कहा जाता है कि जब आदम और ईव स्वर्ग के...
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मनुष्य का विज्ञान—(प्रवचन—चौदहवां) ‘मैं कौन हूं?’ से संकलित क्रांतिसूत्र 1966 — 67 मैं सुनता हूं कि मनुष्य का मार्ग खो गया है। यह सत्य है। मनुष्य का मार्ग उसी दिन खो गया, जिस दिन उसने स्वयं को खोजने से...
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