जिन सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–25
माया अर्थात सम्मोहन—(अध्याय-5) प्रवचन—पच्चीसवां न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः। न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।। 14।। और परमेश्वर भी भूतप्राणियों के न कर्तापन को और न कर्मों को तथा न...
View Articleअष्टावक्र महागीता–(भाग–4) प्रवचन–13
संन्यास—सहज होने की प्रक्रिया—प्रवचन—तैरहवां दिनांक 8 दिसंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्नसार: पहला प्रश्न : आपने संन्यास देते ही मुक्त करने की बात कही, लेकिन मुक्त होते ही संन्यासी का जीवन...
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ज्ञान है परमयोग—प्रवचन—तीसरा सूत्र: जेण तच्चं विवुज्झेज्ज, जेण चितं णिरूज्झदि। जेण अत्ता विसुज्झेज्ज, तं णाणं जिणसासणे।। 85।। जेण रागा विरज्जेज्ज, जेण सेए सु रज्जदि। जेण मित्ती पभावेज्ज, तं...
View Articleगीता दर्शन (भाग–3) प्रवचन–4
ज्ञान विजय है (अध्याय-6) प्रवचन—चौथा जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः। शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।। 7।। और हे अर्जुन, सर्दी-गर्मी और सुख-दुखादिकों में तथा मान और अपमान में जिसके अंतःकरण की...
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जीवन तैयारी है, मृत्यु परीक्षा है—प्रवचन—चौदहवां प्रश्नसार: 1—भगवान श्री की आंखों से निरंतर आशीर्वाद की वर्षा। उनके दृष्टि पात मित्र से शरीर में कंपन व अंतर्तम में बर्छी की चुभन। मृत्यु घटित...
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हृदय की अंतर-गुफा (अध्याय-6) प्रवचन—पांचवां सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु। साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते।। 9।। और जो पुरुष सुहृद, मित्र, बैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेषी और बंधुगणों...
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त्वरा से जीना ध्यान है—प्रवचन—पंद्रहवां सूत्र: सीसं जहा सरीरस्स, जहा मूलस दुमस्स य। सव्वस्स साधुधम्मस्स, तहा झाणं विधीयते।। 117।। लवण व्व सलिजजोए, झाणे चितं विलीयए जस्स। तस्स सुहासुहडहणो,...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार (ब्लावट्स्की) प्रवचन–6
क्षांति—प्रवचन—छठवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; प्रातः 12 फरवरी, 1973 ओम शिष्य, भय संकल्प का हनन करता है और प्रयासों का स्थगन। यदि शील गुण का अभाव हो, तो यात्री के पांव लड़खड़ाते हैं और चट्टानी पथ...
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अंतर्यात्रा का विज्ञान (अध्याय—6) प्रवचन—छठवां शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः। नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्।। 11।। तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः। उपविश्यासने...
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गुरु है द्वार—प्रवचन—सोलहवां प्रश्न सार: 1—नानकदेव भी जाग्रतपुरूष थे, लेकिन उन्होंने स्वयं को भगवान नहीं कहा। आप……..? 2—ध्यान के एक गहन अनुभव पर भगवान से मार्ग दर्शन की प्रार्थाना। 3—अफसोस, दिल का...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार (ब्लावट्स्की) प्रवचन–7
घातक छाया—प्रवचन—सातवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; रात्रि 12 फरवरी,1973 हे शिष्य, उस घातक छाया से सावधान रह। उस समय तक कोई भी उच्चस्थ आत्मा का प्रकाश निम्नस्थ आत्मा के अंधकार को नहीं मिटा सकता,...
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योगाभ्यास–गलत को काटने के लिए (अध्याय-6) प्रवचन—आठवां नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः। न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।। 16।। युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।...
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ध्यान है आत्मरमण—प्रवचन—सत्रहवां जे इंदियाणं विसया मणुण्णा, न तेसु भावं निसिरे कयाई। न याउमणुण्णेसु मणं पि कुज्जा,समाहिकामें समणे तवस्सी।। 123।। सुविदियजगस्सभावो, निस्संगो निब्भओ निराओ य।...
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मूक्ति द्वंद्वातीत है—प्रवचन—अठारहवां प्रश्न सार: 1—राग और द्वेष के दो पहिये से संसार निर्मित होता है। क्या मोक्ष के भी ऐसे ही दो पहिये होते है? 2—गुरु मृत्यु है या ब्रह्म है, या एक साथ दोनों है?...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार (ब्लावट्स्की) प्रवचन–8
अस्तित्व से तादात्म्य—प्रवचन—आठवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; रात्रि 13 फरवरी, 1973 चौथे मार्ग विराग पर वासना या इच्छा का हल्का सा झोंका भी आत्मा की शुभ्र दीवारों पर पड़ने वाले स्थिर प्रकाश को...
View Articleगीता दर्शन(भाग–3) प्रवचन–9
योग का अंतर्विज्ञान (अध्याय—6) प्रवचन—नौवां प्रश्न: भगवान श्री, योग के अभ्यास और उसकी आवश्यकता पर बात चल रही थी। आपने समझाया था कि धर्म और आत्मा तो हमारा स्वभाव ही है। उसे उपलब्ध नहीं करना है, वह मिला...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार-(ब्लावट्स्की) प्रवचन–9
स्वामी बन—प्रवचन—नौवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; रात्रि 13 फरवरी, 1973 मनुष्य में आलय अर्थात विश्वात्मा या परमात्मा के शुद्ध और उजजवल सत्व को छोड़ कर सब कुछ मृण्मय है। मनुष्य उसकी स्फटिक किरण है,...
View Articleगीता दर्शन–(भाग–3) प्रवचन-7
अपरिग्रही चित्त—(अध्याय—6) प्रवचन—सातवां युग्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः। शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति।। 15।। इस प्रकार आत्मा को निरंतर परमेश्वर के स्वरूप में लगाता हुआ, स्वाधीन मन वाला...
View Articleजिन सूत्र (भाग–2) प्रवचन–19
ध्यानाग्नि से कर्म भस्मिभूत—प्रवचन—उन्नीसवां सूत्र: जह चिरसंचयमिंधण—मनलो पवणसहिओ दुयं दहइ। तह कम्मेंधममियं, खणेण झाणानलो डहइ।। 131।। झाणोवरमेउवि मुणी, णिच्वमणिच्चइभावणापरमो। होइ सुभावियचित्तो,...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार (ब्लावट्स्की) प्रवचन–10
आगे बढ़—प्रवचन—दसवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; 14 फरवरी, 1973 अब तू उस खाई को पार कर चुका है, जो मानवीय वासनाओं के द्वार को घेर कर खड़ी है। अब तू “काम’ और उसकी दुदात सेना पर विजय पा चुका है। तूने...
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