जिन सुत्र (भाग–2) प्रवचन–20
गोशालक: एक अस्वीकृत तीर्थंकर—प्रवचन—बीसवां प्रश्न सार: 1—मक्खनी गोशालक के जीवन पर प्रकाश डालने की कृपा करें। 2—महावीर का अशरण—उपदेश और उनका शिष्यों को दीक्षा देना—इनमें क्या अंतर्विरोध नहीं है?...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार–(ब्लावट्स्की) प्रवचन–11
मन के पार— प्रवचन—ग्यारहवां ध्यान शिविर, आनंद शिला, अंबरनाथ रात्रि 14 फरवरी, 1973 जब तू विराग की उस अवस्था को प्राप्त कर चुकेगा, तब वे द्वार, जिन्हें तुझे मार्ग पर चल कर जीतना है, तुझे अपने भीतर लेने...
View Articleगीाता दर्शन–(भाग–3) प्रवचन–10
चित्त वृत्ति निरोध (अध्याय—6) प्रवचन—दसवां यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया। यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।। 20।। और हे अर्जुन, जिस अवस्था में योग के अभ्यास से निरुद्ध हुआ चित्त उपराम...
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दुखों में अचलायमान—(अध्याय-6) प्रवचन—ग्यारहवां यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः। यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते।। 22।। और परमेश्वर की प्राप्तिरूप जिस लाभ को प्राप्त होकर, उससे अधिक...
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छह पथिक और छह लेश्याएं—प्रवचन—इक्कीसवां कीण्हा णीला काऊ, तेऊ पम्मा या सुक्कलेस्सा य। लेस्साणं णिद्देसा, छच्चेव हवंति णियमेण।। 134।। कीण्हा णीला काऊ, तिण्णि वि एयाओ अहम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार–(ब्लावट्स्की) प्रवचन–12
सावधान!—प्रवचन—बारहवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; प्रातः 15 फरवरी, 1973 और तब, ओ सत्य के संधानी, तेरे मन, आत्मा जंगल में दौड़ते-फिरने वाले पागल हाथी की तरह हो जाएंगे। जंगल के वृक्षों को जीवित...
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पिया का गांव—प्रवचन—बाईसवां प्रश्न सार: 1— न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे चली रे चली रे मेरी नाव चली रे कोई कहे यहां चली, कोई कहे वहां चली मैंने कहा पिया के गांव चली रे 2—जैन दर्शन कहता है कि इस आरे...
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मन साधन बन जाए—(अध्याय-6) प्रवचन—बारहवां यतो यतो निश्चरति मनश्चंचलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।। 26।। परंतु जिसका मन वश में नहीं हुआ हो, उसको चाहिए कि यह स्थिर न रहने वाला और चंचल मन...
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षट पर्दों की ओट में—प्रवचन—तेईसवां सूत्र: चंडो ण मुंचइ बेरं, भंडणसीलो य धरमदयरहिओ। दुट्ठो ण य एदि वसं, लक्खणमेयं तु किणहस्स।। 138।। मंदो बुद्धिविहीणो, णिव्विणाणी य विसयलोलो य। लक्खणमेयं भणियं,...
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पदार्थ से प्रतिक्रमण–परमात्मा पर—(अध्याय-6) प्रवचन—तेरहवां युग्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः। सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते।। 28।। और वह पापरहित योगी इस प्रकार निरंतर आत्मा को परमात्मा...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार–(ब्लावट्स्की) प्रवचन–13
समय और तू—प्रवचन—तेरहवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; रात्रि, 15 फरवरी,1973 तैयार रह और समय रहते चेत जा। यदि तूने प्रयत्न किया और विफल हो गया, अदम्य लड़ाके, तो भी साहस न छोड़। लड़े जा और बारबार युद्ध...
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आज लहरों में निमंत्रण—प्रवचन—चौबीसवां प्रश्नसार: 1— जैन मानते हैं कि जिन-शासन के अतिरिक्त सभी शासन मिथ्या हैं, जाग्रत व सिद्ध पुरुषों के बाबत बताए जाने पर भी वे उनकी ओर उन्मुख नहीं होते। क्या उन्हें...
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अहंकार खोने के दो ढंग— (अध्याय-6) प्रवचन—चौदहवां सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि। ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः।। 29।। यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। तस्याहं न प्रणश्यामि स च...
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तितिक्षा—प्रवचन—चौदहवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; रात्रि, 16 फरवरी, 1973 ध्यान-द्वार संगमरमर के कलश जैसा है–सफेद और पारदर्शी। उसके भीतर एक स्वर्णाग्नि जलती है, वह प्रज्ञा की शिखा है, जो आत्मा से...
View Articleसमाधि के सप्त द्वार-(ब्लावट्स्की) प्रवचन–15
बोधिसत्व बन!—प्रवचन—पंद्रहवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; रात्रि, 16 फरवरी, 1973 हां, वह शक्तिशाली है। वह जीवंत शक्ति, जो उसमें मुक्त हुई है और जो शक्ति वह स्वयं है, माया के मंडप को देवताओं के भी...
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सर्व भूतों में प्रभु का स्मरण—(अध्याय—6) प्रवचन—पंद्रहवां सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः। सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते।। 31।। इस प्रकार जो पुरुष एकीभाव में स्थित हुआ संपूर्ण भूतों में...
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चौदह गुणस्थान—प्रवचन—पच्चीसवां सूत्र: जेहिं दु लक्खिज्जंते, उदयादिसुसंभवेहिं भावेहिं। जीवा ते गुणसण्णा, णिद्दिट्ठा, सव्वदरिसीहिं।। 144।। मिच्छो सासण मिस्सो, अविरदसम्मो य देसविरदो य। विरदो...
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प्रेम के कोई गुणस्थान नहीं—प्रवचन छब्बीसवां प्रश्नसार: 1— बारहवें और तेरहवें गुणस्थान: क्षीणमोह और सयोगिकेवलीजिन में क्या भिन्नता है इसे स्पष्ट करने की कृपा करें। 2—क्या तेरहवें गुणस्थान को उपलब्ध...
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ऐसा है आर्य मार्ग—प्रवचन—सोलहवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; प्रातः, 17 फरवरी, 1973 और यदि तू सातवां द्वार भी पार कर गया, तो क्या तुझे अपने भविष्य का पता है? आनेवाले कल्पों में स्वेच्छा से जीने के...
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मन का रूपांतरण—(अध्याय-6) प्रवचन—सोलहवां अर्जुन उवाच योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन। एतस्याहं न पश्यामि चंचलत्वात्स्थितिं स्थिराम्।। 33।। चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्। तस्याहं...
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