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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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गीता दर्शन (भाग–2) प्रवचन–18

संशयात्मा विनश्यति—(अध्याय—4) प्रवचन—अठारहवां अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति । नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।। 40।। और हे अर्जुन भगवत विषय को न जानने वाला तथा श्रद्धारहित और संशययुक्त...

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गीता दर्शन–(भाग–2) प्रवचन–19

संन्यास की घोषणा (अध्याय—5) प्रवचन—पहला श्रीमद्भगवद्गीता (अथ पंचमोऽध्यायः) अर्जुन उवाच संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि। यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्।। 1।। हे कृष्ण! आप कर्मों के...

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जिन सूत्र–(भाग–1) प्रवचन–25

दर्शन, ज्ञान, चरित्र—और मोक्ष—प्रवचन—पच्‍चीसवां सूत्र: नाणेण जाणई भावे, दंसणेण या सद्दहे। चरित्‍तेणे निगिण्‍हाई, तवेण परिसुज्‍झई।। 62।। नादंसणिस्‍स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरण गुणा। अगुणिस्‍स नत्‍थि...

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जिन सूत्र–(भाग–1) प्रवचन–26

तुम्‍हारी संपदा—तुम हो—प्रवचन—छब्‍बीसवां प्रश्‍नसार: 1— न मालूम खोपड़ी में कहां से कहां चला गया! चाहता था योग से शक्ति, यहां समझने को मिली शांति। चाहता था धर्म से प्रभुता, यहां समझने को मिली शून्यता।...

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गीता दर्शन–(भाग–2) प्रवचन–20

निष्काम कर्म (अध्याय—5) प्रवचन—बीसवां ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति। निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।। 3।। हे अर्जुन! जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है, और न किसी की...

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गीता दर्शन–(भाग-2) प्रवचन–21

सम्यक दृष्टि (अध्याय—5) प्रवचन—21 यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते। एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति।। 5।। तथा ज्ञानयोगियों द्वारा जो परमधर्म प्राप्त किया जाता है, निष्काम...

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जिनसूत्र–(भाग–1) प्रवचन–27

साधु का सेवन: आत्‍मसेवन—प्रवचन—सत्‍ताईसवां सूत्र: सम्‍मदंसणणाणं, एसोलहदि त्‍ति णवरिववदेसं। सव्‍वणयपक्‍खरहिदो, भणिदोजोसोसमयसारो।। 66।। दंसणाणचरित्‍तणि, सेविदव्‍वाणि साहुणा णिच्‍चं। ताणि पुण जाण तिणिण...

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जिनसूत्र–(भाग–1) प्रवचन–28

जीवन का ऋत्: भाव, प्रेम, भक्‍ति—प्रवचन—अट्ठाईसवां प्रश्‍नसार: 1— आप कहते हैं कि पुण्य भी बांधता है और पाप भी बांधता है। तो तीर्थंकरों को उनका करुणाजन्य कर्म क्यों नहीं बांधता? 2—पहली बार मैं किसी के...

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गीात दर्शन–(भाग–2) प्रवचन–22

वासना अशुद्धि है (अध्याय—5) प्रवचन—बाईसवां योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः। सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।। 7।। तथा वश में किया हुआ है शरीर जिसके, ऐसा जितेंद्रिय और विशुद्ध...

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जिन सूत्र–(भाग–1) प्रवचन–29

मोक्ष का द्वार: सम्‍यक दृष्‍टि—प्रवचन—उनतीसवां सूत्र: दंसणभट्ठा भट्ठ, दंसणभट्ठस्‍स नत्‍थि निव्‍वाणं। सिज्झंति चरियभट्ठा, दंसणभट्ठा ण सिज्झंति।। 71।। सम्‍मत्‍तस्‍स य लंभो, तलोक्‍कस्‍स य हवेज्‍ज जो लंभो।...

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गीता दर्शन–(भाग–2) प्रवचन–23

मन का ढांचा– जन्मों-जन्मों का (अध्याय—5) प्रवचन–तैईसवां नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित्। पश्यग्शृण्वस्पृशग्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपग्श्वसन्।। 8।। प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि।...

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जीवन का सिंगार—(कविता)

कुछ अंबर की बात करे, कुछ धरती का साथ धरे। कुछ तारों की गूथे माला,फिर जीवन का सिंगार करे। उलझे सपनों की रुनकझुनक, तारा मंडल की अभिलाषा सी। कुछ मौन थिरकते शब्दों को, पढ़ने की है अस्मिता सी। है...

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कठोरत्मद—हे मृत्यु. तुल्यु (कविता)

है देव—तरू की कोमलता, कांटे की कठोरता, में भी वह पस्फुेटित नही होता, क्या वहीं जीवन नहीं परिवर्तित, क्या उस कठोर कंटक में भी नहीं बहती वही सरस सुकोमल धारा। पर क्याी उस कठोरता में दंभ नहीं है मैं का, और...

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जिन सूत्र–(भाग–1) प्रवचन–30

प्रेम है आत्‍यंतिक मुक्‍ति–प्रवचन—तीसवां प्रश्‍न सार: 1—नरहरि कैसे भगति करूं मैं तोरी, चंचल है मति मोरी। 2—आपने कहा कि जहां उत्‍कट प्‍यास होगी वहां पानी को आना ही पड़ेगा। अब पानी तो आ गया है; लेकिन...

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कौन हो तुम—(कविता)

है सृष्टि के लबों पर, फैलती मुस्काटन हो तुम। गीत गाते भ्रमरों के, गुंज का गुंजान हो तुम।। गा रहा है गीत कोई, थी कभी नीरवता सोई। बैठ की अकुलाहटों में, दूर तनहाई भी रोई। कौन सुर में आ गुनगुनाता, विहंगम...

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हे निर्दय अशोक—(कविता)

है निर्दय अशोक, तुझे होता नहीं क्यों शोक। जब सारी बगिया, पतझड़ मना रही होती है। तू निर्झर सा अडिग खड़ा, कैसे झूमता,मुस्कराता रहता है। तेरी मंजरी जब फूलती है। कैसे गमक जाता है उपवन सारा। कोयल के गीत,...

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जिन सूत्र–(भाग–1) प्रवचन–31

सम्‍यक दर्शन के आठ अंग—प्रवचन—इकतीसवां सूत्र: निस्‍संकिय निक्‍कंखिय निव्‍वितिगिच्‍छा अमूढ़दिट्ठी य। उवबूह थिरीकरणे, वच्‍छल पभावणे अट्ठ।। 78।। जत्‍थेव पासे कई दुप्‍पउत्‍तं, काएण वाया अदु माणसेण। तत्‍थेव...

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गीता दर्शन–(भाग–2) प्रवचन–24

अहंकार की छाया है ममत्व— (अध्याय-5) प्रवचन—चौबीसवां कायेन मनसा बुद्धया केवलैरिन्द्रियैरपि। योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये।। 11।। इसलिए निष्काम कर्मयोगी ममत्व बुद्धिरहित केवल इंद्रिय,...

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जिन सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–1

जिन सूत्र (महावीर)—(भाग—2) ओशो सत्‍य के द्वार की कुंजी: सम्‍यक—श्रवण—प्रवचन—पहला सोच्‍चा जाणइ कल्‍लाणं, सोच्‍चा जाणइ पावणं। उभयं पि जाणए सोच्‍चा, जं छेपं तं सम्‍मायरे।। 81।। णाणाssणत्‍तीए पुणो,...

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जिन सूत्र-(भाग–2) प्रवचन–2

यात्रा का प्रारंभ आपने ही घर से—प्रवचन—दूसरा प्रश्‍न सार: 1—संन्‍यास लेकर साधना करना, संन्‍यास न लेकर साधना करना—दोनों स्‍थितियों में आपके मार्ग का ही अनुसरण है। फिर संन्‍यास से विशेष फर्क क्‍या है?...

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