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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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तंत्र-सूत्र–(भाग-4) प्रवचन–58

अपनी नियति अपने हाथ में लो—(प्रवचन—अट्ठावनवां) प्रश्‍नसार: 1—क्‍या त्‍वरित विधियां स्‍वभाव के, ताओ के विपरीत नहीं है? 2—हम अब तक बुद्धत्‍व को प्राप्‍त क्‍यों नहीं हुए? 3—यदि समग्र बोध और समग्र...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सूमधुर यादें–(अध्‍याय–17)

सरदार गुरूदयाल सिंह एक अनूठा व्‍यक्‍ति—(अध्‍याय—सत्‍तरहवां) हम सभी के बीच सरदार गुरुदयाल सिंह बहुत प्रसिद्ध हैं। वे अपने आपमें अनूठे सज्जन थे। उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। ओशो ने अपने प्रवचनों में...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सूमधुर यादें–(अध्‍याय–18)

मेरे और गुरूदयाल सि पर चुटकुला—(अध्‍याय—अट्टारहवां) एक दफा ओशो ने एक चुटकुला सुनाया, स्वामी स्वभाव, स्वामी गुरुदयाल सिंह जंगल में भटक गए। सात दिन के भूखे प्यासे थे। जंगल में एक रेस्टोरेंट मिला, जहां...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सूमधुर यादें–(अध्‍याय–19)

ओशो के मुखारबिंद से मेरी कविता—(अध्‍याय—उन्‍नीसवां) सद्गुरु के प्रेम में होना, ध्यान और भक्ति का आनंद लेते श्रद्धा के शिखर का अनुभव करना, अपने आपमें अनूठा अनुभव होता है। एक बार ओशो के कारवां में शामिल...

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सपना यह संसार–(प्रवचन–13)

राग का अंतिम चरण है वैराग्य—(प्रवचन—तेरहवां) दिनांक; सोमवार, 23 जुलाई 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना सूत्र: जीवन है दिन चार, भजन करि लीजिए। तन मन धन सब वारि संत पर दीजिए।। संतहिं से सब होइ, जो चाहै सो...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–20)

भ्रमित होना—(अध्‍याय—बीसवां) जब ओशो जैसे बुद्ध के संपर्क में आते हैं। जब ध्यान के द्वारा अपने ही अंधेरे अचेतन में प्रवेश होता है तो जीवन में हर तल पर बदलाव आता है। हमारी समझ, हमारी सोच, हमारे जीने का...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–21)

ओशो के कार्य को समर्पित होना—(अध्‍याय—इक्‍कीसवां) ओशो के साथ रहते, उनको सुनते, ध्यान करते, धीरे— धीरे दिखाई देने लगा था कि अब मेरे लिए व्यवसाय की दुनिया में बने रहना मुश्किल होता जा रहा है। जोड़—तोड़,...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–22)

अपराध बोध के पार—(अध्‍याय—बाईसवां) जब शुरू में कोरेगांव पार्क, पुणे में आश्रम स्थापना हुई तो ओशो लाओत्सु भवन के खुले प्रागणन में प्रवचन देते थे। कुछ समय पश्चात वहां पर छत बनवाई गई। ओशो ने ही डिजाईन...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–4) प्रवचन–59

स्‍वयं को असीमत: अनुभव करो—(प्रवचन—उन्‍नसठवां) सूत्र: 86—भाव करो कि मैं किसी ऐसी चीज की चिंतना करता हूं, जो दृष्‍टि के परे है, जो पकड़ के परे है, जो अनास्तिव के, न होने के परे है—मैं।       87—मैं हूं,...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–23)

ओशो का बोलना—(अध्‍याय—तैइसवां) ओशो एक बार आकर अपनी कुर्सी पर विराजमान होते तो बिना रुके बिना किसी तरह के विश्राम या ब्रेक के लगातार बोलते जाते। लगभग चालीस सालों तक यह सिलसिला अनवरत चलता रहा। इस सूरज...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–24)

ओशो के कार्य करने के निराले ढंग—(अध्‍याय—चौबीसवां) अध्यात्म की यात्रा, ध्यान की राह, भक्ति की डगर.. .इतनी आसान भी नहीं होती है। जहां संसार में बहुसंख्य एक दिशा में सदियों से चला जा रहा है, वहां अचानक...

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सपना यह संसार–(प्रवचन–15)

करामाति यह खेल अंत पछितायगा—(प्रवचन—पंद्रहवां) दिनांक; बुधवार, 25 जुलाई 1979; श्री रजनीश आश्रम, पूना सूत्र: करामाति यह खेल अंत पछितायगा। चटक—भटक दिन चारि, नरक में जायगा।। भीर—भार से संत भागि के लुकत...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–4) प्रवचन–60

डरने से मत डरो—(प्रवचन—साठवां) प्रश्‍नसार:       1—क्‍या स्‍वतंत्रता और समर्पण परस्‍पर विरोधी नहीं है?       2—सूत्र का सिर्फ ‘यह यह है’ पर इतना जोर क्‍यों है?       3—क्‍या भगवता या परमात्‍मा संसार का...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–4) प्रवचन–61

तुम्‍हारा घर जल रहा है—(प्रवचन—इकसठवां) सूत्र: 88—प्रत्‍येक वस्‍तु ज्ञान के द्वारा ही देखी जाती है। ज्ञान के द्वारा ही आत्‍मा क्षेत्र में प्रकाशित होती है। उस एक को ज्ञाता और ज्ञेय की भांति देखो। 89—है...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–25)

हर कृत्‍य में सत्‍य के लिए तैयारी—(अध्‍याय—पच्‍चीसवां) ओशो के रहने, खाने—पीने, चलने—उठने, बैठने हर बात में एक निराला अंदाज है। वह हर काम को इतनी सफाई व सुंदरता से करते कि बस देखते ही रह जाओ। उनका...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–26)

भारतीय संस्कारो पर चोट—(अध्‍याय—छब्‍बीसवां) ओशो हम सभी पर जमी संस्कारों की धूल को हटाने का काम करते हैं। वे हमें हर तरह के बंधन से मुक्त करते हैं ताकि हम पूरी तरह से मुक्त होकर अपने जीवन को परम दशा में...

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सपना यह संसार–(प्रवचन–16)

गहन से भी गहन प्रेम है सत्संग—(प्रवचन—सोलहवां) दिनांक; गुरुवार, 26 जुलाई 1979; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्‍नसार: 1—भगवान, बुद्ध कहते हैं: अप्प दीपो भव। अपने दीए स्वयं बनो। और आपकी देशना है: रसमय होओ,...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–27)

दद्दा जी की सेवा—(अध्‍याय—सत्‍ताईसवां) ओशो ने प्रारंभ से एक बात अक्सर की है वह यह है कि उनके काम में जो भी सहभागी होता है, उस व्यक्ति का एक काम पक्का नहीं रहता है। हर थोड़े समय में बदलाव हो जाता। कभी भी...

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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–28)

मेरा सिर मुंडवानामुंडवाना—(अध्‍याय—अट्ठाइसवां) ओशो के पास रहते हृदय में हमेशा एक जुनून बना रहता है। एक मस्‍ती सी छाई रहती, यूं लगता कि बस नशे में हों। ओशो के वचन सुनते तो सीधे हृदय में उतरते जाते हैं।...

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सपना यह संसार–(प्रवचन–17)

ज्ञान ध्यान के पार ठिकाना मिलैगा—(प्रवचन—सत्रहवां) दिनांक; शुक्रवार, 27 जुलाई 1979; श्री रजनीश आश्रम, पूना। सूत्र— टोप—टोप रस आनि मक्खी मधु लाइया। इक लै गया निकारि सबै दुख पाइया।। मोको भा बैराग ओहि को...

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