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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें–(अध्‍याय–20)

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भ्रमित होना—(अध्‍याय—बीसवां)

ब ओशो जैसे बुद्ध के संपर्क में आते हैं। जब ध्यान के द्वारा अपने ही अंधेरे अचेतन में प्रवेश होता है तो जीवन में हर तल पर बदलाव आता है। हमारी समझ, हमारी सोच, हमारे जीने का ढंग, लोगों से संबंधित होने के तरीके…..हर चीज में बदलाव आता है। इसी के साथ यह भी होता है कि कई बार हम अपने में हो रहे बदलावों को खुद ही नहीं समझ पाते हैं। जिस तरह से हम सोचते रहें हैं, विचारते रहें हैं, वह जब बदलता है, तो स्वाभाविक ही प्रश्न उठने लगता है कि कुछ गलत तो नहीं हो रहा।

ओशो के संपर्क में आने के बाद मेरे जीवन में जैसे एक नया ही मोड़ आ गया। जहां एक तरफ मैं संसार की महत्वाकांक्षा की दौड़ में भागा जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ रात—दिन बहुत कुछ करने के बाद भी हाथ खाली के खाली हैं का भाव भी बना ही रहता था।

एक खालीपन हमेशा महसूस होता। ओशो के पास आने पर यूं लगने लगा कि ये प्रश्न स्वत: ही विदा होने लगे। अब जीवन अधिक शांत, सृजनात्मक व प्रेम से भरा था। इतना होने पर भी कभी—कभी यूं लगता कि मैं आलसी होता जा रहा हूं मेरे मन की स्थिति ठीक नहीं है। कभी लगता कि श्रद्धा भी महसूस नहीं होती। यह सब कुछ दिन चलता रहा तब मैंने यह बात ओशो से पूछी। ओशो ने ‘योगा दि अल्फा एंड दि ओमेगा’ प्रवचन माला पर बोलते हुए मेरे सारे संदेहों को दूर कर दिया। आप भी पढ़िये

प्रश्न :

 

आपने मुझे पूरी तरह से अमित और सुस्त बना दिया है। मैं पागल की तरह हूं। इस क्षण में मैं कोई श्रद्धा भी महसूस नहीं करता। अब मुझे बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए? मुझे कहां जाना चाहिए?

शो यह स्वभाव से आया है। निश्चित ही तुम्हारा भी उसके पागल पन से पाला पड़ा होगा। अब, वह स्वयं उसके बारे में जान गया है—यह एक सुंदर क्षण है। यदि तुम भ्रमित हो सकते हो, यह सिद्ध करता है कि तुम बुद्धिमान हो। सिर्फ मूर्ख भ्रमित नहीं हो सकता; सिर्फ बेवकूफ व्यक्ति भ्रमित नहीं हो सकता। यदि तुम में जरा भी बुद्धिमानी है तुम भ्रमित हो सकते हो। एक बुद्धिमान व्यक्ति सिर्फ भ्रमित हो सकता है, तो भ्रम की तरफ मत देखो। निश्चित ही तुम में कुछ बुद्धिमानी होगी, यही कारण है। अब बुद्धिमत्ता अपने से आ रही है। अवस्था आ रही है। भ्रम हमेशा वहां था, लेकिन तुम सचेत नहीं थे, इस कारण तुम उसे देख नहीं पाए। अब तुम सचेत हो और तुम देख सकते हो। यह इसी तरह से है तुम अंधेरे कमरे में रहते हो। मकडी के जाले वहां हैं, चूहे इधर—उधर दौड़ते हैं, कोने में धूल की तह जमी है। और अचानक मैं तुम्हारे कमरे में दीए के साथ आऊं। तुम मुझे कहते हो, ‘अपने दीए को बुझाओ क्योंकि आप मेरे कमरे को गंदा कर रहे हैं। ऐसा वह पहले कभी नहीं था; अंधेरे में हर चीज इतनी सुंदर थी।’

मैं कैसे तुम्हें भ्रमित कर सकता हूं? मैं यहां तुम्हारे सारे भ्रमों को विदा करने के लिए हूं। लेकिन विदा होने की सारी प्रक्रिया में, पहला चरण यह होगा ही कि तुम अपने भ्रम के बारे में सजग होओगे। यदि तुम्हारे कमरे को साफ करना है, तो पहला चरण यह है कि कमरे को जैसा है वैसा देखना; वर्ना तुम कैसे साफ करोगे? यदि तुम सोचते हो कि यह पहले ही साफ है— और अंधेरे में तुम कभी नहीं जान पाए कि धूल की पर्तें जमी हैं और मकडिया तुम्हारे कमरे में क्या चमत्कार करती रही हैं और कितने बिच्छुओं और सांपों ने वहां अपना निवास बना लिया है—यदि अंधेरे में तुम गहरी नींद में सोये रहो, तब वहां कोई समस्या नहीं है। समस्या सिर्फ उस व्यक्ति के लिए होती है जिसकी बुद्धिमत्ता विकसित हो रही है।

तो जब कभी तुम मेरे पास आते हो, पहली बात, पहला प्रभाव यदि तुम मुझे समझे तो भ्रम हो जाएगा। यह शुभ चिह्न है। तुम सही राह पर हो, चलते चलो। डरो मत। यदि भ्रम वहां है, तब अ—भ्रम संभव है। यदि तुम भ्रम को नहीं देख सकते, तब वहां स्पष्टता की कोई संभावना नहीं है। बस इसे देखो : कौन कह रहा है कि तुम भ्रमित हो। भ्रमित मन यह भी नहीं कह सकता ‘ मैं अमित हूं।’ पक्का तुम एक तरफ थोड़ा देखने वाले हुए हो—तुम अपने आसपास भ्रम को धुंए की तरह देखते हो। लेकिन कौन है वह जो इस भ्रम के बारे में सचेत हुआ कि वहां भ्रम है? सारी आशा इस घटना में निहित है कि तुम्हारा एक हिस्सा—निश्चित ही एक बहुत छोटा हिस्सा, लेकिन शुरुआत में वह भी बहुत अधिक है—तुम्हें अपने को सौभाग्यशाली मानना चाहिए कि तुम्हारा एक हिस्सा जांच सकता है और सारे भ्रम को देख सकता है। अब इस हिस्से को और अधिक विकसित होने दो। भ्रम से डरो मत : वर्ना तुम इस हिस्से को फिर से नींद में डालने के लिए धक्का दोगे ताकि तुम फिर सुरक्षित महसूस कर सको।

मैं स्वभाव को उसके बहुत शुरू से जानता हूं। वह भ्रमित नहीं था, यह सत्य है—क्योंकि वह पूरी तरह से बेवकूफ था। वह हठी, जिद्दी था। वह बिना जाने, लगभग हर चीज जानता था। अब, पहली बार उसकी चेतना का एक हिस्सा बुद्धिमान हो रहा है, सचेत, सजग और वह हिस्सा चारों तरफ उलझन पैदा कर रहा है : वहां केवल भ्रम की स्थिति है।

यह सुंदर है। अब वहां दो संभावाएं हैं : या तो तुम इस हिस्से की सुनो जो कह रहा है कि यह भ्रम है, और तुम इसका विकास करो—यह प्रकाश स्तंभ बने और उस प्रकाश में सभी भ्रम विदा हो जाएंगे या तुम भयभीत और डर जाओ—तुम इस हिस्से जो कि सजग हुआ है से भागना शुरू कर दो, तुम उसे वापस अंधेरे में डुबा दो। तब तुम फिर से जानने वाले हो जाओगे हठी, जानकारी से भरे, हर चीज साफ—कोई भ्रम नहीं। सिर्फ वह व्यक्ति जो अधिक नहीं जानता, सिर्फ वह व्यक्ति जो सचेत नहीं है, भ्रम के बिना रह सकता है।

एक सच में सचेत व्यक्ति महसूस करेगा, संकोच करेगा—हर कदम वह उठायेगा और संकोच करेगा—क्योंकि सारी निश्चितता खो गई है। लाउत्सु कहता है, ‘बुद्धिमान व्यक्ति इतना सावधानी से चलता है, जैसे कि हर कदम पर वह मृत्यु से डरता है।’ एक बुद्धिमान व्यक्ति भ्रम के बारे में सचेत होता है; यह पहला चरण है।

और तब वहां दूसरा चरण है जब बुद्धिमान व्यक्ति इतना बुद्धिमान हो जाता है कि सारी ऊर्जा प्रकाश बन जाती है। तो वही ऊर्जा जो भ्रम पैदा कर रही थी और भ्रम में जा रही थी वह वहां नहीं; वह अवशोषित हो गई। सारे भ्रम विदा हो गए; अचानक वहां सुबह हो गई। और जब अंधेरा बहुत ज्यादा होता है—याद रखो कि सुबह करीब है। लेकिन तुम भाग सकते हो।

‘आपने मुझे पूरी तरह से भ्रमित कर दिया है…’बिलकुल सच, यही मैं करता आया हूं। इसके लिए तुम्हें मेरे प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।

‘… और सुस्त।’ हां, यह भी सच है.. .क्योंकि, मैं स्वभाव को जानता हूं। वह रजस टाइप का व्यक्ति है—बहुत अधिक गतिविधि। जब वह पहली बार मुझे देखने आया वह ऊर्जा से पूरी तरह से भरा था, बहुत अधिक गतिविधि—रजस टाइप का। अब, ध्यान, समझ, उसकी गतिविधि को निम्न तल, एक संतुलित दशा में ला रही है। रजस वाला व्यक्ति हमेशा महसूस करेगा, जब वह संतुलित है, कि वह सुस्त हो रहा है। यह उसका रवैया है। वह हमेशा महसूस करेगा कि ‘ उसकी ऊर्जा कहां चली गई; ‘वह सुस्त हो गया है। उसको क्या हो रहा है? वह यहां महान योद्धा बनने के लिए आया था और जाकर सारा संसार जीत लेगा, और सब जो मैं उसके साथ करता रहा हूं वह है उसे बहुत अधिक गतिविधि, बहुत अधिक नासमझी से पुन: पीछे लाया हूं।

पश्चिम में तुम कहते हो कि खाली दिमाग शैतान का घर है। वह रजस लोगों द्वारा बनाया गया है। यह सत्य नहीं है, क्योंकि खाली दिमाग परमात्मा का घर है। शैतान वहां काम नहीं कर सकता, क्योंकि खाली मन में शैतान कतई प्रवेश नहीं कर सकता है। शैतान सिर्फ सक्रिय मन में ही प्रवेश कर सकता है। तो इसे याद रखो : रजस मन शैतान का घर है। बहुत अधिक गतिविधि, तब तुम्हारी गतिविधि पर शैतान लिख सकता है।

तुमने दो विश्व युद्ध देखे हैं। वे रजस लोगों से आए हैं। यूरोप में, जर्मनी रजस टाइप के लोगों का देश है—बहुत अधिक गतिविधि। पूर्व में, जापान रजस लोगों का है—बहुत अधिक गतिविधि। और ये दो मूर्खतापूर्ण देश दूसरे विश्व युद्ध के स्रोत बने। बहुत अधिक गतिविधि। जरा सोचो, जर्मनी तमस लोगों को, सुस्त लोगों का देश होता—हिटलकर क्या कर सकता? तुम उन्हें दाए घुमने को कहो, और वे खड़े हैं। तुम उन्हें कहो कि बाए घूमो; और वे खड़े हैं। सच तो यह है कि वे बैठ जाएंगे और उस समय तक वे सो चुके होंगे। अडोल्फ हिटलर तमस लोगों के बीच मूर्ख लगेगा। सात्विक सम में वह पूरी तरह से मूर्ख लगेगा—विक्षिप्त। सात्विक समाज में लोग उसे पकड़ लेंगे और उसका इलाज करेंगे। तमस समाज में वह बस बेवकूफ लगेगा, एक उपद्रवी। हूं?

लोग आराम कर रहे हैं और तुम झंडों और नारों के साथ नाहक दौड़ रहे हो, और कोई तुम्हारा अनुसरण नहीं करता— अकेले। लेकिन जर्मनी में वह नेता बन गया। नेता, महानतम नेता जो जर्मनी ने कभी जाना हो, क्योंकि लोग रजस थे।

स्वभाव रजस टाइप का था, क्षत्रिय जैसा, लड़ पड़ने को तैयार, हमेशा क्रोध की कगार पर, अब वह मंदा हो गया है, वह सौ किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से दौड रहा था, और मैं उसे दस किमी. प्रति घंटे की रफ्तार पर ले आया निश्चित वह सुस्त महसूस करेगा। यह सुस्ती नहीं है; यह बस तुम्हारी गतिविधि की सनक को सामान्य दशा में ले आना है क्योंकि सिर्फ वहां से सत्य होना संभव होगा, वर्ना वह संभव नहीं होगा। तुम्हें तमस और रजस के बीच संतुलन पाना होगा, सुस्ती और गतिविधि के बीच। तुम यह जानो कि कैसे आराम करना है और कैसे काम करना है।

यह हमेशा आसान है कि पूरी तरह से आराम करो, यह भी आसान है कि पूरी तरह से काम करो। लेकिन इन दो विपरीतताओ को जानना और उनमें जाना और उनके बीच लयबद्धता पैदा करना मुश्किल है— और वह लयबद्धता सत्व है।

‘आपने मुझे पूरी तरह से भ्रमित और सुस्त बना दिया है।’ सच है।

‘मैं पागल की तरह हूं।’ पूरी तरह से सच। तुम हमेशा से थे। अब इसे तुम जानते हो— और यह परिभाषा है जो पागल नहीं है।

पागल आदमी कभी नहीं जान सकता कि वह पागल है। पागलखाने में जाओ, पूछताछ करो। कोई भी पागल आदमी नहीं कह सकता, ‘मैं पागल हूं।’ हर पागल आदमी सोचता है कि सिवाय उसके सारी दुनिया पागल है—पागलपन की यह परिभाषा है। तुम कभी भी ऐसा पागल नहीं पा सकते हो जो कहे, ‘मैं पागल हूं।’ यदि उसके पास इतनी बुद्धिमत्ता है कि वह कह सके कि वह पागल है, वह पहले ही बुद्धिमान व्यक्ति है; वह पागल नहीं रहा। पागलपन कभी नहीं स्वीकारता। पागल लोग बहुत, बहुत झिझकते हैं। डॉक्टर के पास जाने में भी वे झिझकते हैं वे कहते हैं, ‘क्यों? किस बात के लिए? क्या मैं पागल हूं? उसकी कोई जरूरत नहीं है—मैं पूरी तरह से ठीक हूं। आप जा सकते हैं।’

मुल्ला नसरुद्दीन मनसचिकत्सक के पास गया और वह बोला, ‘अब कुछ करना ही पड़ेगा—चीजें मेरी पहुंच से पार हो गई हैं। मेरी पत्नी पूरी तरह से पागल हो गई है, और वह सोचती है कि वह रेफ्रीजरेटर बन गई है।’

मनसचिकित्सक भी सजग हो गया। वह स्वयं कभी इस तरह के मामले के संपर्क में नहीं आया था। वह बोला, ‘यह गंभीर है। मुझे इसके बारे में और अधिक बताओ।’

वह बोला, ‘आह, इसके बारे में अधिक नहीं है। वह रेफ्रीजरेटर बन गई है; वह सोचती है कि वह रेफ़ीजरेटर है।

मनसचिकित्सक बोला, ‘लेकिन, यदि यह सिर्फ विश्वास मात्र है, उसमें कोई नुकसान नहीं है। यह भोलापन है। उसे मान लेने दो। वह कोई दूसरी तकलीफ पैदा नहीं कर रही है?’

नसरुद्दीन बोला, ‘तकलीफ? मैं कतई सो नहीं सकता क्योंकि रात में वह मुंह खुला रख कर सोती है— और रेफ्रीजरेटर की लाइट के कारण मैं सो नहीं सकता!’

अब कौन पागल है? पागल कभी नहीं सोचते कि वे पागल हैं।

स्वभाव, यह आशीष है कि तुम सोच सकते हो, ‘मैं पागल हूं।’ यह तुम्हारे भीतर का स्वस्थ हिस्सा है जिसने इसे पहचाना। सभी पागल हैं। जितना जल्दी तुम इसे जान लो, उतना ही अच्छा।

‘इस पल में मुझे लगता है कि मेरे में श्रद्धा भी नहीं है।’ अच्छा है। क्योंकि जब तुम सचमुच सजग होते हो श्रद्धा को महसूस करना मुश्किल हो जाता है। वहां कई तल हैं। एक तल, लोग संदेह महसूस करते हैं। फिर वे संदेह को दबा लेते हैं क्योंकि श्रद्धा बड़ी भरोसा देने वाली लगती है ‘समर्पण, और तुम हर चीज पा लोगे।’ मैं तुम्हें भरोसा दिलाये चला जाता हूं ‘समर्पण करो, और तुम्हारा बुद्धत्व तय है।’ श्रद्धा बडी भरोसे लायक लगती है। तुम्हारा लोभ जग जाता है—तुम कहते हो, ‘ ठीक है। हम श्रद्धा करेंगे और समर्पित हो जाएंगे।’ लेकिन यह श्रद्धा नहीं है, यह लोभ है— और गहरे में तुम संदेह को छिपाए हो। तुम एक तरफ संदेह किये चले जाते हो। तुम सचेत रहते हो कि श्रद्धा ठीक है लेकिन बहुत अधिक श्रद्धा मत करो क्योंकि, कौन जानता है, यह आदमी किसी चीज के पीछे हो, या सिर्फ मूर्ख बना रहा हो, धोखा दे रहा हो। तो तुम श्रद्धा करते हो, लेकिन तुम्हारी श्रद्धा आधे मन से होती है। और गहरे में संदेह है।

जब तुम ध्यान करते हो, जब तुम थोड़े और अधिक समझदार होते हो, जब तुम मुझे लगातार सुनते हो और मैं कितने ही बिंदुओं से चोट करता रहता हूं अनेक तरफ से—मै तुम्हारी चेतना में छेद कर देता हूं। मैं चोट किये चले जाता हूं तुम्हें तोड़ता जाता हूं। मुझे तुम्‍हारे सारे ढांचे को तोड़ना पड़ता है। मैं तुम्‍हारे ढ़ांचेको तोड़ता हूं;सिर्फ तब ही तुम्‍हें फिर से बनाया जा सकता है। वहां कोई और रास्‍ता नहीं है। मैं तुम्‍हें पूरी तरह से ध्‍वस्‍त करता हूं; सिर्फ तब ही नया ढांचा संभव है।

मैं लगातार तोड़ता जाता हूं; तब, समझ पैदा होती है—समझ की झलकें। उन झलकों में तुम देखोगे कि तुम श्रद्धा भी नहीं करते; वहां संदेह छिपा है। पहले, तुम संदेह करते हो। दूसरा, गहरे में संदेह छिपे होते है। तुम श्रद्धा करते जो। तीसरा तुम छिपे संदेह और श्रद्धा के प्रति सजग होते हो—और कैसे तुम श्रद्धा और संदेह कर सकते हो। तुम झिझकते हो। तुम भ्रमित महसूस करते हो।

अब इस बिंदू से दो संभावनाएं खुलती है: या तो तुम वापस संदेह में पीछे गिर जाओ, वह पहला चरण है जैसे तुम मेरे पास आते हो, तो श्रद्धा का विकास हो सकता है। और सारे संदेह गिरा देते हो। यह बहुत, बहुत तरल दशा है। यह दो तरह से दृढ़ हो सकतीहै:या तो निचली सीढ़ी पर जाहां तुम फिर से पूरे संदेह से भरे हो—झूठी श्रद्धा भी विदा हो गई; या तुम श्रद्धा में विकसित होते हो और श्रद्धा स्‍पष्‍ट हो जाती है। संदेह का दमित हिस्‍सा विदा हो गया। तो यह दशा बहु,बहुत नाजुक है और तुम्‍हें बहुत ही सावधानीपूर्वक और सजगता से चलना चाहिए।

‘अब मुझे बताओ मुझे क्‍या करना चाहिए?’ मुझे कहां जाना चाहिए? जब तुम मेरे पास आ गये तो अब कहीं और जानेको नहीं है। अब तुम कहीं जा सकते हो, लेकिन तुम्‍हें मेरे पास आना होगा। मेरे पास आना खतरनाक है: तब तुम कहीं भी जा सकते हो, लेकिन हर तरफ मैं तुम्‍हारा पीछा करूंगा। वहां कहीं जाने को नहीं है।

और कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। बस सारी स्‍थिति के प्रति सजग होओ क्‍योंकि यदि तुम कुछ करना शुरू कर देते हो, यदि तुम कुछ करने की लालसा रखते हो, तो तुम हर चीज को गड़बड कर दोगे। उसे वैसाही रहने दो। भ्रम वहां है: पागलपन वहां है, श्रद्धा जा चुकी है। बस प्रतीक्षा करो और देखो और किनारे बैठ जाओ और नदी को स्‍वयं सुव्‍यवस्‍थित हो जाने दो। वह अपने सक व्‍यवस्‍थित हो जाती है। तुम्‍हें कुछ करने की जरूरत नहीं है। तुमने पर्याप्‍त कर लिया—अब विश्राम करो। बस ध्‍यान दो और देखो कैसे नदी व्‍यवस्‍थित होती है। उसमें कीचड़ हो गया है। उसमें कीचड़ है और सतह पर हो ताकि पानी को साफ किया जा सके—जो कुछ भी तुम करोगे वह उसे और अधिक कीचड़मय कद देगा। कृपया इस उत्‍तेजना को रोको। किनारे बने रहो, नदी में मत उतरो। और बस साक्षी बने रहो।

यदि तुम बिना कुछ किये बस साक्षी हो सको… और वह मन का महानतम प्रलोभन है—मन कहता है, ‘कुछ करो. वर्ना कैसे चीजें बदलने जा रही हैं?’ मन कहता है कि सिर्फ प्रयास के साथ, करने के साथ, कुछ बदला जा सकता है। और वह तर्क संगत, आकर्षक, यकीन करने जैसा लगता है— और वह पूरी तरह से गलत है। तुम कुछ भी नहीं कर सकते। तुम समस्या हो। और जितना अधिक तुम करते हो, उतना ही तुम महसूस करते हो कि तुम हो; ‘ मैं’ मजबूत होता है; अहंकार मजबूत होता है। कुछ मत करो, बस साक्षी होओ। साक्षी होने से, अहंकार विदा हो जाता है। करने से, अहंकार मजबूत होता है। साक्षी होओ।

इसे स्वीकारो—कतई संघर्ष मत करो। यदि भ्रम वहां है तो उसमें गलत क्या है? बस बादलों से भरी शाम, आसमान में बादल हैं—क्या गलत है? इसका आनंद लो। बहुत अधिक सूरज भी ठीक नहीं है; कभी बादलों की जरूरत होती है। उसमें गलत क्या है? सुबह धुंध से भरी है और तुम भ्रमित महसूस करते हो। उसमें गलत क्या है? धुंध का भी मजा लो। जो भी मामला हो, तुम बस देखो। इंतजार करो, और आनंदित होओ। स्वीकार। यदि तुम इसे स्वीकार सको, स्वीकार ही बदल देता है, स्वीकार ही रुपांतरण कर देता है।

शीघ्र ही तुम देखोगे तुम वहां बैठे हो, नदी विदा हो गई—सिर्फ कीचड़ ही नहीं, बल्कि सारी नदी— धुंध वहां नहीं रही, बादल छंट चुके, और खुला आसमान, विशाल आकाश उपलब्ध है।

लेकिन धैर्य की जरूरत है। तो यदि तुम हठ करते हो, ‘अब मुझे बताओ क्या करना है, ‘मैं कहूंगा, ‘धैर्य करो।’ यदि तुम जिद्द करो, ‘मुझे कहां जाना चाहिए?’ मैं तुमसे कहूंगा, ‘मेरे और करीब आओ।’

योगा दि अल्फा एंड दि ओमेगा

आज इति।

 


Filed under: स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें--(आनंद स्‍वभाव्)

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