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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–185

ऊर्ध्‍वगमन और अधोगमन—(प्रवचन—छठवां) अध्‍याय—16 सूत्र— इदमद्य मया लब्‍धमिमं प्राप्‍स्‍ये मनोरथम् । इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्।। 13।। असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्‍ये चापरानपि। ईश्वरोऽहम्हं भोगी...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–186

जीवन की दिशा—(प्रवचन—सातवां) अध्‍याय—16 सूत्र: अत्मसंभाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता:। यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्।। 17।। अहंकारं बलं दर्प कामं क्रोध च संश्रता:। मामत्‍मपरहेहेषु...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–7)

मूर्च्छा में मृत्यु है—और जागृति में जीवन—(प्रवचन—सातवां)  बिना विचारे कुछ करने की प्रवृत्ति पहली चीज है जिसको तोड़ डालना है। विचार करने की प्रवृत्ति पैदा करनी है और बिना विचार किए मान लेने की प्रवृत्ति...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–187

नरक के द्वार: काम, क्रोध, लोभ—(प्रवचन—आठवां) अध्‍याय—16 सूत्र— त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:। काम: क्रोधस्तथा लौभस्तस्मादैतन्त्रयं त्यजेत्।। 21।। एतैर्विमुक्त: कौन्तेय तमद्धोरैस्प्रिभिर्नर:।...

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गीता दर्शन–(भाग–8)

गीता दर्शन—(भाग—आठ) ओशो (ओशो द्वारा श्रीमदभगवद्गीता के अध्‍याय सत्रह ‘श्रद्धात्रय—विभाग—योग’ एवं अध्‍याय अठारह ‘मोक्ष—संन्‍यास—योग’ पर दिए गये बत्‍तीस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।)  भूमिका: (ओशो...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–8)

विचार नहीं, वरन् मृत्‍यु के तथ्‍य का दर्शन—(प्रवचन—आठवां) मृत्यु के तथ्य का दर्शन करना है विचार नहीं। मृत्यु अज्ञान का अनुभव है अमरत्व ज्ञान का अनुभव है। मेरे प्रिय आत्मन्! एक मित्र ने पूछा है कि...

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गीता दर्शन–(भाग–8) प्रवचन–188

सत्‍य की खोज और त्रिगुण का गणित—(प्रवचन—पहला) अध्‍याय—17 सूत्र— (श्रीमद्भगवद्गीता अथ सप्तदशोऽध्याय) अर्जन उवाच: ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धायान्विता। तेषां निष्ठा तु का कृष्ण तत्त्वमाहो...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–9)

मैं मृत्‍यु सिखाता हूं—(प्रवचन—नौवां) आने वाले भविष्य में अगर मनुष्य को विक्षिप्त होने से पागल होने से बचाना हो तो पूरी जिंदगी को स्वीकार करना पड़ेगा। को के को। उसमें कोई खंड काटकर विरोध में खड़े नहीं...

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जिन खोजा तिन पाइयां–ओशो

जिन खोजा तिन पाइयां ओशो (कुंडलिनी—योग पर साधना—शिविर, नारगोल में ध्‍यान—प्रयोगों के साथ प्रवचन एवं मुंबई में प्रश्‍नोत्‍तर चर्चाओं सहित उन्‍नीस ओशो—प्रवचनों का अपूर्व संकलन।)  भूमिका: (मनुष्य का...

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जिन खोजा तिन पाइयां–(प्रवचन–1)

यात्रा कुंडलिनी की (साधना शिविर)—(प्रवचन—पहला) मेरे प्रिय आत्मन्, मुझे पता नहीं कि आप किस लिए यहां आए हैं। शायद आपको भी ठीक से पता न हो, क्योंकि हम सारे लोग जिंदगी में इस भांति ही जीते हैं कि हमें यह...

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जिन खोजा तिन पाइयां–(प्रवचन–2)

बुंद समानी समुंद में—(प्रवचन—दूसरा) (कुंडलिनी—योग साधना शिविर) नारगोल  मेरे प्रिय आत्मन्! ऊर्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–10)

अंधकार से आलोक और मूर्च्छा से परम जागरण की और—(प्रवचन—दसवां) ( ध्यान मूल तत्व जिसकी तरलता जिसकी सघनता विरलता जिसका ठोसपन तय करता है कि आपको जाग्रत कहें या आपको सोया हुआ कहें। जागरण और मूर्च्छा के बीच...

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गीता दर्शन–(भाग–8) प्रवचन–189

भक्‍ति और भगवान—(प्रवचन—दूसरा) अध्‍याय—17 सूत्र— सत्‍वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत। श्रद्धामयोऽयं पुरुषो वो यव्छुद्ध: स एव सः।। 3।। यजन्ते सात्‍विका देवान्यक्षरक्षांति राजसाः।...

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जिन खोजा तिन पाइयां–(प्रवचन–3)

ध्यान है महामृत्यु—(प्रवचन—तीसरा) (कुंडलिनी—योग साधना शिविर) नारगोल महामृत्यु : द्वार अमृत का: प्रश्‍न:  एक मित्र पूछ रहे हैं कि ओशो कुंडलिनी जागरण में खतरा है तो कौन सा खतरा है? और यदि खतरा है तो फिर...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–11)

संकल्यवान—हो जाता है आत्‍मवान—(प्रवचन—ग्‍याहरवां) (वापस लौटना सदा आसान मालूम पड़ता है। क्यों? क्योंकि जहां हम लौट रहे हैं वह परिचित भूमि है। आगे बढ़ना हमेशा खतरनाक मालूम पड़ता है क्योंकि जहां हम जा रहे...

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जिन खोजा तिन पाइयां–(प्रवचन–4)

ध्‍यान पंथ ऐसो कठिन—(प्रवचन—चौथा) प्रभु—कृपा और साधक का प्रयास मेरे प्रिय आत्मन्! एक मित्र ने पूछा है कि ओशो क्या ध्यान प्रभु की कृपा से उपलब्ध होता है? इस बात को थोड़ा समझना उपयोगी है। इस बात से बहुत...

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गीता दर्शन–(भाग–8) प्रवचन–190

सुख नहीं, शांति खोजो—(प्रवचन—तीसरा) अध्‍याय—17 सूत्र: अशास्‍त्रविहितं धीरं तप्यन्ते ये तपो जना:। दम्भाहंकारसंयुक्‍ता: कामरागबलान्त्तिता:।। 5।। कर्शयन्त: शरीरस्थं भूतग्राममचेतस:। मां चैवान्त:शरीरस्थं...

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गीता दर्शन–(भाग–8) प्रवचन–191

संदेह और श्रद्धा—(प्रवचन—चौथा) अध्‍याय—17 सूत्र— आहारस्थ्यपि सर्वस्य प्रिविधो भवति प्रिय:। यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदीममं श्रृणु।। 7।। और है अर्जुन, जैसे श्रृद्धा तीन प्रकार की होती है, वैसे ही भोजन...

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जिन खोजा तिन पाइयां–(प्रवचन–5)

कुंडलिनी, शक्तिपात व प्रभु प्रसाद—(प्रवचन—पांचवां) अंतिम ध्यान प्रयोग मेरे प्रिय आत्मन्! बहुत आशा और संकल्प से भर कर आज का प्रयोग करें। जानें कि होगा ही। जैसे सूर्य निकला है, ऐसे ही भीतर भी प्रकाश...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–12)

नाटकीय जीवन के प्रति साक्षी चेतना का जागरण—(प्रवचन—बाहरवां) (रुक जाएं और एक क्षण को किसी भी क्षण को, जागने का क्षण बना लें और क्या हो रहा है। आप साक्षी रह जाए सिर्फ।) भगवान श्री मृत्यु में भी जागे रहने...

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