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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–42)

संन्यास का निर्णय और ध्यान में छलांग—(प्रवचन—बयालीसवां) ‘नव—संन्यास क्या?': से संकलित प्रवचनांश गीता—ज्ञान—यज्ञ पूना। दिनांक 26 नवम्बर 1971 क्या संन्यास ध्यान की गति बढ़ाने में सहायक होता है? संन्यास का...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–176

समर्पण की छलांग—(प्रवचन—चौथा) अध्‍याय—15 सूत्र— उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुज्‍जानं वा गुणान्यितम्। विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचमुष:।। 10।। यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यज्यात्मन्यवस्थितम्।...

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मन ही पूजा मन ही धूप–(संत रैदास) प्रवचन–10

आओ और डूबो—(प्रवचन—दसवां) प्रश्न—सार: 1—ओशो, संन्‍यास लेने के बाद वह याद आती है— जू—जू दयारे—इश्‍क में बढ़ता गया। तोमतें मिलती गई, रूसवाइयां मिलती गई।  2—ओशो, आज तक दो प्रकार के खोजी हुए है। जो...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–177

एकाग्रता और ह्रदय—शुद्धि—(प्रवचन—पांचवां) अध्‍याय—15 सूत्र— यदादित्यगतं तेजो जगद्यासयतेऽखिलम्। यच्‍चन्द्रमलि यचाग्नौ तत्तेजो विद्धि मांक्कम्।। 12।। गामांविश्य च भूतानि धारयाथ्यमोजसा। पुष्णामि चौषधी:...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–178

पुरूषोत्‍तम की खोज—(प्रवचन—छठवां) अध्‍याय—15 सूत्र— द्वाविमौ पुरूषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च। क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्‍यते।। 16।। उत्तम: पुरूषस्‍त्‍वन्य: परमात्मेत्युदाह्वत:। यो...

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पोनी एक कुत्‍ते की आत्‍मकथा–(अध्‍याय–2)

मनुष्‍य का पहला स्‍पर्श मेरा जन्म दिल्ली कि अरावली पर्वत श्रृंखला के घने जंगल मैं हुआ, जो तड़पती दिल्ली के फेफडों ताजा हवा दे कर उसे जीवित रखे हुऐ है। कैसे आज भी अपने को पर्यावरण के उन भूखे भेडीयों से...

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पोनी एक कुत्‍ते की अात्‍मकथा–

इस कथा को लिखने के लिए अगर मुझे किसी ने प्रेरित किया तो वह था पोनी। जब वह अंतिम बिदाई ले रहा था, अपनी मृत्‍यु के कुछ ही मिनट पहले। तब उसने मेरे हाथ में अपना सर रख कर किसी अंजान सी ध्‍वनि में मुझसे कुछ...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–179

प्‍यास और धैर्य—(प्रवचन—सातवां) अध्‍याय—15 सूत्र— यो मामैवमसंमूढो जानति पुरुषोत्तमम्। स सर्वोविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।। 19।। इति गुह्यतमं शास्त्रीमदमुक्‍तं मयानघ। एतदबद्ध्वा...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–ओशो

मैं मृत्‍यु सिखाता हूं (ओशो) प्रसतावना: जीवन के गर्भ में क्‍या छुपा है उसकी शुन्‍य अंधेरी तलहेटी की जड़े किस स्‍त्रोत की और बह रही है…..कहां से और किन छुपे रहस्‍यों से उनको पोषण मिल रहा है….ये कुदरत का...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–1)

योजित मृत्यु अर्थात ध्यान और समाधि के प्रायोगिक रहस्य—(प्रवचन—पहला) यह शरीर एक बीज है और जीवन चेतना और आत्मा का एक अंकुर भीतर है। जब वह अंकुर फूटता है तो मनुष्य का बीज होना समाप्त होता है और मनुष्य...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–180

दैवी संपदा का अर्जन—(प्रवचन—पहला) अध्‍याय—16 सूत्र— (श्रीमद्भगवद्गीता)  श्रीभगवानवाच: अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति:। दानं दमश्च यज्ञश्‍च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।। 1।। उसके उपरांत श्रीकृष्‍ण...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–2)

आध्यात्मिक विश्व आंदोलन—ताकि कुछ व्‍यक्‍ति प्रबुद्ध हो सकें—(प्रवचन—दूसरा) जिनके भीतर भी पुकार है उनके ऊपर एक बड़ा दायित्व है आज जगत के लिए। आज तो जगत के कोने— कोने में जाकर कहने की यह बात है कि कुछ...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–181

दैवीय लक्षण—(प्रवचन—दूसरा) अध्‍याय—16 सूत्र— अहिंसा सत्‍यमक्रोधस्‍त्‍याग: शान्‍तिरपैशुनम्। दया भूतेष्‍वलोलुप्‍त्‍वं मार्दवं ह्ररिचापलम्।। 2।। तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहोनातिमानिता । भवन्ति संपदं...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–3)

जीवन के मंदिर में द्वार है मृत्‍यु का—(प्रवचन—तीसरा)  मृत्‍यु से न तो मुक्‍त होना है और न मृत्‍यु को जीतना है। मृत्‍यु को जानना है। जानना ही मुक्‍ति बन जाता है। जानना ही जीत जाता है। मरने से हम इतने...

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गीता दर्शन-(भाग–7) प्रवचन–182

आसुरी संपदा—(प्रवचन—तीसरा) अध्‍याय—16 सूत्र: दम्भो दयोंऽभिमानश्च क्रोध: पारूष्‍यमेव च। अज्ञानं चाभिजातस्म पार्थ संपदमासुशँम्।। 4।। दैवी संयद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता। मा शुचः संपदं दैवीमीभजातोऽसि...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–4)

सजग मृत्‍यु और जाति—स्‍मरण के रहस्‍यहों में प्रवेश—(प्रवचन—चौथा) जितनी घनी अंधेरी रात हो, तारे उतने ही चमकते दिखाई पड़ते है। और जितने काले बादल हों, बिजली की चमक चाँदी बन जाती है। जब मृत्‍यु पूरी तरह...

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मैं मृत्‍यु सिखाता हूं–(प्रवचन–5)

स्‍व है द्वार—सर्व का—(प्रवचन—पांचवां)  जो अपने भीतर प्रवेश करता हे, वह भीतर पहुंचते ही पाता है कि वह सबके भीतर पहुंच गया है। क्‍योंकि बाहर से हम सब भिन्‍न–भिन्‍न नहीं है। मेरे प्रिय आत्मन्।  एक मित्र...

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गीता दर्शन–(भाग–7)–प्रवचन–183

आसुरी व्‍यक्‍ति की रूग्‍णताएं—(प्रवचन—चौथा) अध्‍याय—16 सूत्र— प्रवृत्तिं च निवृत्ति च जना न विदरासरा:। न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।। 7।। असत्यमप्रितष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्। अपरस्थरसंभूतं...

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गीता दर्शन–(भाग–7) प्रवचन–184

शोषण या साधना—(प्रवचन—पांचवां) अध्‍याय—16 सूत्र—184 काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विता:। मोहाङ्गाहींत्त्वीसद्ग्राहागर्क्तन्‍तेउशुचिव्रता:।। 10।। चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुयश्रिता:। कामोयभोगपरमा...

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मैं कहता हूं आंखन देखी–(प्रवचन–6)

निद्रा, स्‍वप्‍न, सम्‍मोहन और मूर्च्‍छा से जागृति की और—(प्रवचन—छठवां) निद्रा में भी हम वहीं पहुंचते हैं जहां ध्यान में पहुंचते हैं लेकिन फर्क इतना ही है कि निद्रा में हम बेहोश होते हैं और ध्यान में हम...

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