पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–66
तुम यहां से वहां नहीं पहुंच सकते—(प्रवचन—छठवां) प्रश्नसार: 1—मैं हमेशा एक ही जैसे प्रश्न बार—बार क्यों पूछती हूं? मुझे आपके प्रवचनों में आज तक एक भी विरोधाभास नहीं मिला। क्या मुझमें कुछ गलत है?...
View Articleदीया तले अंधेरा–(झेन–कथा) प्रवचन–16
धर्म का मूल रहस्य स्वभाव में जीना है—(प्रवचन—सोलहवां) दिनांक 6 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! सेहेई के शिष्य सुईबी ने एक दिन अपने गुरु से पूछा, ‘गुरुदेव, धर्म का मूल रहस्य क्या है?’...
View Articleदीया तले अंधेरा–(सूफी–कथा) प्रवचन–17
अतियों से बचकर मध्य में जीना प्रज्ञा है—(प्रवचन—सत्रहवां) दिनांक 7 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान ! महान सुलतान महमूद एक दिन अपनी राजधानी गजनी की सड़कों पर घूम रहे थे। उन्होंने देखा कि एक...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–67
उदासीन ब्रह्मांड में—(प्रवचन—सातवां) योग—सूत्र: कमान्यत्वं परिणामन्यत्वे हेतु:।। 15।। आधारभूत प्रक्रिया में छिपी अनेकरूपता द्वारा रूपांतरण में कई रूपांतरण घटित होते हैं।...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–68
नहीं और हां के गहनतम तल—(प्रवचन—आठवां) प्रश्नसार: 1—क्या सार्त्र में झेन—चेतना है? 2–हरमन हेस के सिद्धार्थ ने बुद्ध से कहा : मुझे अपने ही ढंग से चलते जाना है—या मर जाना है। इस पर आप कुछ कहेंगे?...
View Articleदीया तले अंधेरा–(सूफी–कथा) प्रवचन–18
समर्पित हृदय में ही सत्य का अवतरण—(प्रवचन—अठारहवां) दिनांक 8 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! सूफी सत्य के खोजी माने जाते हैं–उस सत्य के जो विषयगत हकीकत ठइरमबजपअम तमंसपजल० का ज्ञान होता है।...
View Articleदीया तले अंधेरा–(झेन–कथा) प्रवचन–19
परिधि के विसर्जन से केंद्र में प्रवेश—(प्रवचन—उन्नीसवां) दिनांक 9 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! सदगुरु जोशु उस जगह पर गए जहां एक भिक्षु ध्यान कर रहा था। उन्होंने भिक्षु से पूछा, ‘जो है,...
View Articleदीया तले अंधेरा–(झेन–कथा) प्रवचन–20
‘मैं’ की मुक्ति नहीं, ‘मैं’ से मुक्ति—(प्रवचन—बीसवां) दिनांक 10 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! सदगुरु तोसोत्सु ने तीन रोधक (ईंततपमते) निर्मित किये। और उन्हें वे साधुओं से पार करवाते थे।...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–69
अनूठा अस्तित्व में—(प्रवचन—नौंवा) योग—सूत्र : प्रत्ययस्य परिचित्तज्ञानम्।। 19।। जो प्रतिछवि दूसरों के मन को घेरे रहती है, उसे संयम द्वारा जाना जा सकता है। न च तत्सालम्बनं तस्याविषयीभूतत्वात्।। 20।।...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग-4) प्रवचन–70
खतरे में जीओ—(प्रवचन—दसवां) प्रश्न—सार: 1—मेरी अधिक बैचेनी अपने महा— अहंकार को लेकर है, जो इस झूठे अहंकार पर इतने वर्षों तक निगाह रखता रहा है। 2—भगवान, मैं चाहता हूं कि आप एक—एक ही बार में सदा—सदा...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–61
मृत्यु और कर्म का रहस्य—(प्रवचन—ग्यारहवां) योग—सूत्र: सोपक्रमं निरूपक्रमं च कर्म तत्संयमादपरान्तज्ञानमरिष्टेभयो वा।। 23।। सक्रिय व निष्किय या लक्षणात्मक व विलक्षणात्मक—इन दो प्रकार के कर्मों पर...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–72
मैं एक पूर्ण झूठ हूं—(प्रवचन—बारहवां) प्रश्न—सार: 1—आपके शिष्य अचानक संबोधि को उपलब्ध होंगे, या चरण दर चरण विकास के द्वारा संबुद्ध होंगे? 2—क्या अज्ञान के कारण किए कर्मों के लिए भी व्यक्ति...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–73
अंतर—ब्रह्मांड के साक्षीहो जाओ—(प्रवचन—तेरहवां) योग—सूत्र: चंद्रे ताराव्यूहज्ञानम् ।। 28।। चंद्र पर संयम संपन्न करने से तारों—नक्षत्रों की समेग्र व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त होता है। धुवे...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–74
अहंकार अटकाने को खूँटा नहीं—(प्रवचन—चौदहवां) प्रश्न–सार: 1—क्या संबुद्ध होना और साथ ही संबोधि के प्रति चैतन्य होना संभव है? क्या संबुद्ध का विचार स्वय में अहंकार उत्पन्न नहीं कर देता है? 2—मैं...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–75
अंतर—ब्रह्मांड के साक्षी हो जाओ—(प्रवचन—पंद्रहवां) योग—सूत्र: मूर्धज्योतिषि सिद्धदर्शनम।। 33।। सिर के शीर्ष भाग के नीचे की ज्योति पर संयम केंद्रित करने से समस्त सिद्धों के अस्तित्व से जुड्ने की...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–76
धन्यवाद की कोई आवश्यकता नहीं—(प्रवचन—सौहलवां) प्रश्न—सार: क्या आप भी कभी किसी दुविधा में पड़े हैं? बुद्धि, अंतर्बोध और प्रतिभा के प्रासंगिक महत्व को समझाएं। इस शइक्त को,क्ष्मैं’j’....
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–77
परमात्मा की भेंट ही अंतिम भेंट—(प्रवचन—सतहरवां) योग—सूत्र: सत्वपुरूषयोरत्यन्तासंकीर्णयों: प्रत्यायविशेषो भोग: परार्थत्वात् स्वार्थसंयमात्पुरुषज्ञानम्।। 36।। पुरुष, सद चेतना और सत्व, सदबुद्धि के...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–78
जागरूकता की कोई विधि नहीं है—(प्रवचन—अट्ठारहवां) प्रश्न—सार: 1—कृपया समझाएं कि मन और शरीर के साथ तादात्म्य कैसे न बने? 2—मेरी स्वयं के साथ और आपके साथ एकात्मकता बनते ही मन अहंकार की यात्रा पर निकल...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–79
बंधन के कारण की शिथिलता—(प्रवचन—उन्नीसवां) योग—सत्र: बंधकारणशैथिल्यात्प्रचारसंवेदनाच्च चित्तस्य परिशरीरावेश:।। 39।। बंधन के कारण का शिथिल पड़ना और संवेदन—ऊर्जा भरी प्रवाहिनियों को जानना मन को...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन-80
जाना कहां है—(प्रवचन—बीसवां) प्रश्न–सार: मैं स्वयं को खोया—खोया महसूस करता हूं। पुराने जीवन में वापस लौटने के लिए कोई मार्ग नहीं बचा है और आगे भी कोई मार्ग दिखाई नहीं पड़ रहा है। पतंजलि ने यह सब...
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