अष्टावक्र: महागीता–(भाग–1) प्रवचन–15
जीवन की एक मात्र दीनता: वासना—प्रवचन—पंद्रहवां 25 सितंबर, 1976; ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क, पूना। अष्टावक्र उवाब। अविनाशिनमात्मानमेकं विज्ञाय तत्वत:। तवात्मज्ञस्य धीरस्य कथमर्थार्जने रति:...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–3) प्रवचन–57
आसन और प्राणायाम के आत्यंतिक रहस्य—(प्रवचन—स्त्रहवां) योग—सूत्र (साधनपाद) स्थिरसुखमासनम्।। 46।। स्थिर और सुखपूर्वक बैठना आसन है। प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम्।। 47।। प्रयत्न की शिथिलता और...
View Articleदीया तले अंधेरा–(झेन कथा) प्रवचन–7
कृत्य नहीं, भाव है महत्वपूर्ण—(प्रवचन—सातवां) दिनांक 27 सितंबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! सीरो विहार के सदगुरु होगेन, रात्रि-भोजन के पूर्व प्रवचन करने ही वाले थे कि उन्होंने देखा कि जो बांस की...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–3) प्रवचन–58
ध्यान : अज्ञात सागर का आमंत्रण—(प्रवचन—अट्ठहरवां) प्रश्न—सार: 1—कई बार आपके प्रवचनों के दौरान मैं ‘छ’ खुली नहीं रख पाता और एकाग्र नहीं हो पाता, और पता नहीं कहां चला जाता हूं, और एक झटके से वापस लौटता...
View Articleदीया तले अंधेरा–(बोध–कथा) प्रवचन–8
द्वैत के विसर्जन से एक-स्वरता का जन्म—(प्रवचन—आठवां) दिनांक 28 सितंबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! झेन सदगुरु बांकेई के विहार के पास ही एक अंधा आदमी रहता था। बांकेई की मृत्यु हुई, तब उस अंधे...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–3) प्रवचन–59
प्रत्याहार—स्त्रोत की और वापसी—(प्रवचन—उन्नीसवां) योग—सूत्र: (साधनापाद) तत: क्षीयते प्रकाशावरणम् ।। 52।। फिर उस आवरणप का विसर्जन हो जाता है, तो प्रकाश को ढके हुए है। धारणासु च योग्यता मनस:।। 53।।...
View Articleदीया तले अंधेरा–(सूफी–कथा) प्रवचन–9
सत्य और असत्य के बीच चार अंगुल का अंतर—(प्रवचन—नौवां) दिनांक 29 सितंबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! किसी समय एक शहर था, जिसमें दो समानांतर गलियां थीं। एक दरवेश किसी दिन एक गली से दूसरी गली में...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–3) प्रवचन–60
जीवन : अस्तित्व की एक लीली—(प्रवचन—बीसवां) प्रश्न—सार: 1—आपने कहा, मनुष्य एक सेतु है—पशु और परमात्मा के बीच। तो हम इस सेतु पर कहां हैं? 2—कभी आप कहते हैं कि गुरु और शिष्य का, प्रेम और प्रेयसी का...
View Articleदीया तले अंधेरा–(सूफी-कथा) प्रवचन–10
श्रद्धा की आंख से जीवित ज्योति की पहचान—(प्रवचन—दसवां) दिनांक 30 सितंबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! एक अंधेरी रात में किसी सुनसान सड़क पर दो आदमी मिले। पहले ने कहा: ‘मैं एक दूकान की खोज में हूं...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4)
पतंजलि: योग—सूत्र (भाग—4) (‘योग: दि अल्फा एंड दि ओमेगा’ शीर्षक से ओशो द्वारा अंग्रेजी में दिए गये सौ अमृत प्रवचनों में से चतुर्थ बीस प्रवचनों का हिंदी अनुवाद।) आज हम पतंजलि के योग — सूत्रों का तीसरा...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–61
प्रश्न पूछो स्व केंद्र के निकट का—(प्रवचन—एक) योग—सूत्र (अथ विभूतिपाद:) विभूतिपाद शबन्धश्चित्तस्या धारणा।। 1।।। जिस पर ध्यान किया जाता हो उसी में मन को एकाग्र और सीमित कर देना धारणा है। तत्र...
View Articleदीया तले अंधेरा–(झेन-कथा) प्रवचन–11
बुद्धि के अतिक्रमण से अद्वैत में प्रवेश—(प्रवचन—ग्यारहवां) दिनांक 1 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! सदगुरु शुजान ने अपना छोटा डंडा उठाया और कहा: ‘अगर तुम इसे छोटा डंडा कहते हो, तो तुम इसके...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–62
मन चालाक है—(प्रवचन—दूसरा) प्रश्नसार: 1—एक भिखारी के लिए मैं क्या कर सकता हूं? और आपने कहा है कि हमें विपरीत ध्रुवों को समाहित करना है। तो क्या मैं एक साथ क्रांतिकारी और संन्यासी हो सकता हूं?...
View Articleदीया तले अंधेरा–(झेन–कथा) प्रवचन–12
मन से मुक्त होना ही मुक्ति है—(प्रवचन—बारहवां) दिनांक 2 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! मात्सु साधना में था। वह अपने गुरु-आश्रम के एकांत झोपड़े में, अहर्निश मन को साधने का अभ्यास करता था। जो...
View Articleदीया तले अंधेरा–(बोध–कथा) प्रवचन–13
मृत्यु है जीवन का केंद्रीय तथ्य—(प्रवचन—तेरहवां) दिनांक 3 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! किसी समय एक आदमी के पास बहुत से पशु-पक्षी थे। उसने सुना कि हजरत मूसा पशु-पक्षियों की भाषा समझते...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–63
आंतरिकता का अंतरंग—(प्रवचन—तीसरा) योग—सत्र: तस्य भूमिष विनियोंग:।। 6।। संयम को चरण—दर—चरण संयोजित करना होता है। रयमन्तरडगं पूर्वेभ्य:।। 7।। धारणा, ध्यान और समाधि—ये तीनों चरण प्रारंभिक पांच चरणों की...
View Articleदीया तले अंधेरा–(सूफी–कथा) प्रवचन–14
प्रकृत और सहज होना ही परमात्मा के निकट होना—(प्रवचन—चौदहवां) दिनांक 4 अक्टूबर, 1074. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! एक लंबी और थकान भरी यात्रा में, तीन मुसाफिर साथ हो लिये। उन्होंने अपने पाथेय से लेकर...
View Articleपतंजलि: योगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–64
बीज हो जाओ—(प्रवचन—चौथा) प्रश्नसार: 1—एक बार पतंजलि और लाओत्सु एक नदी के किनारे पहुंचे। 2—पतंजलि के ध्यान और झाझेन में क्या अंतर है? 3—जब मैं अपने को अस्तित्व के हाथों में छोड़ दूंगा, तो क्या...
View Articleदीया तले अंधेरा–(सूफी–कथा) प्रवचन–15
संतत्व का लक्षण: सर्वत्र परमात्मा की प्रतीति—(प्रवचन—पंद्रहवां) दिनांक 5 अक्टूबर, 1974. श्री ओशो आश्रम, पूना। भगवान! संत रयोकान किसी पहाड़ की तलहटी में एक झोपड़े में रहते थे। अत्यंत ही सादा जीवन था...
View Articleपतंजलि: याेगसूत्र–(भाग–4) प्रवचन–65
अस्तित्व के शून्यों का एकात्रीकरण—(प्रवचन—पांचवां) योग—सत्र: सर्वार्थतैकाग्रतयो: क्षयोदयौ चित्तस्य समाधिपारिणाम:।। ।।।। समाधि परिणाम वह आंतरिक रूपांतरण है, जहां चित को तोड्ने वाली अशांत वृत्तियों...
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