समाधि के सप्त द्वार–(ब्लावट्स्की) प्रवचन–17
प्राणिमात्र के लिए शांति—प्रवचन—सत्रहवां ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; रात्रि, 17 फरवरी, 1973 इसके अतिरिक्त, उन पवित्र अभिलेखों का और क्या आशय, जो तुझसे यह कहलवाते हैंः “ॐ, मेरा विश्वास है कि सभी...
View Articleजिन सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–27
पंडितमरण सुमरण है—प्रवचन—सत्ताईसवां सूत्र: सरीमाहु नाव त्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो।। 146।। धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्समरियव्वं। तम्हा अवस्समरणे,...
View Articleजिन सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–28
रसमयता और एकाग्रता— प्रवचन—अट्ठाइसवां प्रश्नसार: 1—कुछ दिन ध्यान में जी लगता है, कुछ दिन भजन में; लेकिन एकाग्रता कहीं नहीं होती। 2—आकस्मिक रूप से भगवान से मिलना हुआ और संन्यास भी ले लिया, क्या यह...
View Articleजिन सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–29
त्रिगुप्ति और मुक्ति—प्रवचन—उनतीसवां सूत्र: जहा महातलायस्स सन्निरूद्धे जलागमे। उस्सिंचणाए तवणाए, कमेण सोसणा भवे।वे।। एवं तु संजयस्सावि पावकम्मनिरासवे। भवकोडीसंचियं कम्मं,तवसा निज्जारिज्जइ।।...
View Articleजिन सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–30
एक दीप से कोटि दीप हों—प्रवचन—तीसवां प्रश्नसार: 1—जिन—धारा अनेकांत—भाव और स्यातवाद से भरी है, फिर भी प्रेमशून्य क्यों हो गई? 2—जीसस अपने शिष्यों से कहते थे कि यदि मेरे साथ चलने से कोई तुम्हें...
View Articleजिन सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–31
याद घर बुलाने लगी—प्रवचन—इकतीसवां सूत्र: ण वि दुक्खं ण वि सुक्खं, ण वि पीडा णेव विज्जदे बाहा। णवि मरणं ण वि जणणं,तत्थेव य होई णिव्वाणं।। 156।। ण वि इंदिय उवसग्गा, तत्थेव य होइ णिव्वाणं। ण य...
View Articleगीता दर्शन (भाग–3) प्रवचन–17
वैराग्य और अभ्यास—(अध्याय—6) प्रवचन—सत्रहवां प्रश्न: भगवान श्री, सुबह के श्लोक में चंचल मन को शांत करने के लिए अभ्यास और वैराग्य पर गहन चर्चा चल रही थी, लेकिन समय आखिरी हो गया था, इसलिए पूरी बात नहीं...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–पहला
ध्यान—सूत्र (ओशो द्वारा दिये गये नौ अमृत प्रवचनों एवं ध्यान निर्देशों का अप्रतिम संकलन।) कोई परमात्मा या कोई सत्य हमारे बाहर हमें उपलब्ध नहीं होगा, उसके बीज हमारे भीतर हैं और वे विकसित होंगे। लेकिन...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–दूसरा
शरीर-शुद्धि के अंतरंग सूत्र—(प्रवचन—दूसरा) मेरे प्रिय आत्मन्, रात्रि को साधना की प्रारंभिक भूमिका कैसे बने, उस संबंध में थोड़ी-सी बातें आपसे कही हैं। साधना की जो दृष्टि मेरे मन में है, वह किन्हीं...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–3
चित्त-शघक्तयों का रूपांतरण—(प्रवचन—तीसरा) मेरे प्रिय आत्मन्, सबसे पहले एक प्रश्न पूछा है कि साधक को प्रकाश की किरण मिले, उसको सतत बनाए रखने के लिए क्या किया जाए? मैंने सुबह कहा, जो अनुभव हो आनंद का,...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–4
विचार-शुद्धि के सूत्र—(प्रवचन—चौथा) मेरे प्रिय आत्मन् , पहले चरण की बात सुबह मैंने कही। शरीर की शुद्धि कैसे संभव है, उस पर थोड़ी-सी बातें आपको बतायीं। दूसरी पर्त मनुष्य के व्यक्तित्व की, उसके विचार की...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–5
भाव-शुद्धि की कीमिया—(प्रवचन—पांचवां) मेरे प्रिय आत्मन्, साधना की परिधि भूमिका के संबंध में हमने दो चरणों पर बातें की हैं, शरीर-शुद्धि और विचार-शुद्धि। शरीर और विचार से भी गहरा तल भाव का, भावनाओं का...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–6
सम्यक रूपांतरण के सूत्र—(प्रवचन—छठवां) मेरे प्रिय आत्मन्, कुछ प्रश्न हैं। प्रश्न तो बहुत-से हैं, उन सबका संयुक्त उत्तर ही देने का प्रयास करूंगा। कुछ हिस्सों में उनको बांट लिया है। पहला प्रश्न है,...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–7
शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित—(प्रवचन—सातवां) मेरे प्रिय आत्मन्, साधना की भूमिका के परिधि बिंदुओं पर हमने बात की है। अब हम उसके केंद्रीय स्वरूप पर भी विचार करें। शरीर, विचार और भाव, इनकी शुद्धि और...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–8
समाधि है द्वार—(प्रवचन—आठवां) मेरे प्रिय आत्मन्, सत्य क्या है? क्या उसकी प्राप्ति अंशतः संभव है? और यदि नहीं, तो मनुष्य उसकी प्राप्ति के लिए क्या कर सकता है? क्योंकि हरेक मनुष्य संत होना संभव नहीं है।...
View Articleध्यान–सूत्र (ओशो) प्रवचन–9
आमंत्रण–एक कदम चलने का—(प्रवचन—नौवां) मेरे प्रिय आत्मन्, इन तीन दिवसों में बहुत प्रेम की, और बहुत शांति की, आनंद की वर्षा हमारे हृदयों में रही। और मैं तो उन पक्षियों में से हूं, जिनका कोई नीड़ नहीं...
View Articleजिंदगी तुझे यूं हीगुजरने नहीं देंगे–कविता
जिन्दगी तुझे यूं ही गुजरने नहीं देंगे—(कविता) जिन्दगी तुझे यूँ ही नहीं गुजरने देंगे, भर देंगे तेरी सुनी मांग में आनंद का सिंदूर, और तुझे सज़ा-संवारकर बनाए फिर दुलहन, करेंगे तेरा फिर वहीं सिंगार, लोट...
View Articleहां मैं स्वार्थी हूं……कविता
हां मैं स्वार्थी हूं…. आपने सही सूना. क्योंकि मैं अपने होने को जानना चाहता हूं। और चल पडा हूं स्वार्थी हो के मार्ग पर, और हो रहा हूं धीरे से अग्रसर स्वार्थी होने की तरफ, हां शायद धीरे-धीरे में भी...
View Articleजीवन—दर्पण—(कविता)
जीवन—दर्पण—(कविता) जीवन के धुँधलें दर्पण में, परछाई जब रही सुकड़ कर। जरजर मिटटी होती काया को हम क्यों बैठे हे उसे पकड़ कर। लेकिन फिर भी कुछ जीवत है, सूखे होते ठूंठ वृक्ष पर पल्लवित वल्लरी चढ़ रही...
View Articleमहावीर वाणी (भाग–1) प्रवचन–4
धर्म : स्वभाव में होना—(प्रवचन—चौथा) दिनांक 21 अगस्त; 1971 प्रथम पर्युषण व्याख्यानमाला, पाटकर हाल बम्बई। धम्म-सूत्र धम्मो मंगलमुक्किट्ठं, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमंसन्ति, जस्स...
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