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जिंदगी तुझे यूं हीगुजरने नहीं देंगे–कविता

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जिन्‍दगी तुझे यूं ही गुजरने नहीं देंगे—(कविता)

जिन्दगी तुझे यूँ ही नहीं गुजरने देंगे,

भर देंगे तेरी सुनी मांग में आनंद का सिंदूर,

और तुझे सज़ा-संवारकर बनाए फिर दुलहन,

करेंगे तेरा फिर वहीं सिंगार,

लोट आयेगा तुम्‍हारा वहीं पुराना रूप यौवन,

तेरे सूखे होठों पर ज़मीं उस हंसी को,

बना भागीरथी करेंगे गंगोतरी का उद्गम।

वो हंसी-खुशी बन कर गंगा के जल की तरह सीचेगी

उस उन शुष्‍क और मायूस ह्रदयो को,

जो भूल चूके उत्‍सव और अल्‍हाद,

कण-कण में भर देंगे अमन-मुस्कान,

और उन वीरान चमन फिर लोट आएगी फिर से बहार,

चाहे उसे हमे मांगना क्‍यों न पड़े उधार,

या कोई भी कीमत को देने को हम है तैयार।

और इंद्र धनुष के सब रंग को

हम भर उन्‍हें देंगे तेरे सपनों में।

जब तू फैली देखेगी चारों तरफ बहार।

तू छोड़ मायूसी को और बांध लेगी पैरो में मीरे के धुँघरू,

उन सुने पड़ें पथों पर

गुंज उठे गे फिर से मधुर गान,

जो उन थके मुसाफ़िरों में भर देंगे,

नया जीवन और की ताजगी,

सूखे प्राणों में फिर लोट आयेगा,

प्रेम सहसा और अहसास,

वो जड़वत हुए पैर

फिर थिरक उंठेंगे,

फिर चल पड़ेगे मदमस्‍त उसी मार्ग पर

जिसे वो थक हार कर छोड़ चुके थे…

ऐ जिन्दगी तुझे हम थकनें न देंगे,

यू रूकने नहीं देंगे।

तुझे यू हीं मिटने न देंगे

भर देंगे जरूर तुझ में कुछ तो नया पन……..

स्‍वामी आनंद प्रसाद ‘मानस’

 


Filed under: मेरी कविताएं-- Tagged: अदविता नियती, ओशो, मनसा, मनसा स्‍वामी आनंद प्रसाद

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