नाम सुमिर मन बावरे–(जगजीवन)–प्र्रवचन-10
प्रार्थना को गज़ल बनाओ—(प्रवचन—दसवां) दिनांक 10 अगस्त 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्नसार: 1—ध्यान, साधना, परमात्मा इत्यादि की जरूरत क्या है? 2—मैं जीवनभर से प्रार्थना कर रहा हूं लेकिन कोई फल नहीं...
View Articleकहै वाजिद पुकार—ओशो
(ओशो द्वारा वाजिद—वाणी पर दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अप्रतिम संकलन।) वाजिद—यह नाम मुझे सदा से प्यादा रहा है—एक सीधे—सादे आदमी का नाम,गैर—पढ़े—लिखेआदमी का नाम; लेकिन जिसकी वाणी में प्रेम ऐसा भरा...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–1)
पंछी एक संदेस कहो उस पीव सूं—(प्रवचन—पहला) सूत्र: अरध नाम पाषाण तिरे नर लोइ रे। तेरा नाम कह्यो कलि मांहिं न बूड़े कोइ रे।। कर्म सुक्रति इकवार विलै हो जाहिंगे। हरि हां, वाजिद, हस्ती के असवार न कूकर...
View Articleमेरा स्वर्णिम भारत–(प्रवचन–24)
अंत: करण का अतिक्रमण—(प्रवचन—चौबीसवां) प्यारे ओशो! यं यं लोकं मनसा संविभाति विशुद्धसत्व: कामयते यांश्च कामार। तं तं लोकं जयते तांश्च कामा— स्तस्मादात्मज्ञ ह्यर्चवेद भूतिकाम।। जिसका अंत: करण शुद्ध है,...
View Articleकहे वाजिद पुकार–(प्रवचन–2)
प्रार्थना के पंख—यात्रा शून्य शिखरों की—(प्रवचन—दूसरा) प्रश्नसार: 1—भगवान! दुनिया के कोने-कोने से सारे संवेदनशील लोग आपके पास खिंचे चले आ रहे हैं। पर आश्चर्य होता है कि कृष्णमूर्ति, विनोबा, जयप्रकाश...
View Articleमेरा स्वर्णिम भारत–(प्रवचन–25)
चिंतन नहीं—मौन अनुभूत—(प्रवचन—पच्चीसवां) प्यारे ओशो! उत्तमा तत्वचिन्तैव मध्यम शास्त्रचिन्तनम्। अधम? तंत्रचिन्ता च तीर्थभ्राज्यधमाधमा।। अनुभूति विना मूखो वृथा ब्रह्मणि मोदते।...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–3)
पीव बस्या परदेस—(प्रवचन—तीसरा) दिनांक 23 सितम्बर 1976, श्री ओशो आश्रम, पूना। सूत्र: पीव बस्या परदेस कि जोगन मैं भई। उनमनि मुद्रा धार फकीरी मैं लई।। ढूंढया सब संसार कि अलख जगाइया। हरि हां, वाजिद, वह...
View Articleमेरा स्वर्णिम भारत–(प्रवचन–26)
ह्रदय—गंथियों से मुक्ति–(प्रवचन—छब्बीसवां) प्यारे ओशो! मुंडकोपनिषद् का यह सूत्र कुछ अजीब लगता है। यह कहता है: श्लोक इस प्रकार है : स यो ह वै तत् परमंब्रह्मवेइ ब्रह्मैव भवति। नास्याब्रह्मवित् कुले...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–4)
सहज—सोपान मुक्ति-मंदिर का—(प्रवचन—चौथा) दिनांक 24 सितम्बर 1976; श्री ओशो आश्रम, पूना। प्रश्नसार: 1— भगवान! बाईस सितंबर के टाइम्स ऑफ इंडिया में, इंदौर से प्रसारित एक समाचार में लिखा है कि भारत के...
View Articleमेरा स्वर्णिम भारत–(प्रवचन–27)
समर्पण ही सत्संग है—(प्रवचन—सत्ताइसवां) प्यारे ओशो! दुर्लभ त्रैयमेवैवत् देवानुग्रह हेतुकम्। मुनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरूसंश्रय:।। मनुष्य देह, मुमुक्षा और महापुरुष का आश्रय ये तीनों अति...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–5)
साधां सेती नेह लगे तो लाइए—(प्रवचन—पांचवां) दिनांक 25 सितम्बर 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना सूत्र: साधां सेती नेह लगे तो लाइए। जे घर होवे हांण तहुं न छिटकाइए।। जे नर मूरख जान सो तो मन में डरै। हरि...
View Articleमेरा स्वर्णिम भारत–(प्रवचन–28)
गुरु स्वयं एक उपाय है—(प्रवचन—अट्ठाइसवां) प्यारे ओशो। शादयायनीय उपनिषद्स की महिमा इस प्रकार गाता है: गुरुरेव परौ धर्मो गुरूरेव परा गति:। एकाक्षर प्रदातमम् नाभिनन्दति। तस्य श्रुत तपो ज्ञानं...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–6)
उतर आए अग्निपंखी सत्संग—सर के तीर—(प्रवचन—छठवां) दिनांक 26 सितम्बर 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्नसार: 1—क्या आप संगीत, काव्य और सौंदर्य पर कुछ कहना चाहेंगे? अंततः सब कुछ परमात्मामय हो जाए, इसके...
View Articleमेरा स्वर्णिम भारत–(प्रवचन–29)
इस साधे सब सधै—(प्रवचन—उन्नतीसवां) प्यारे ओशो! योगवासिष्ठ में यह श्लोक है: न यथा यत्ने नित्यं यदभावयति तन्मय:। यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृभवति नान्यथा।। मनुष्य नित्य जैसा यत्न करता है तन्मय होकर जैसी...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–7)
हंसा जाय अकेला—(प्रवचन—सातवां) दिनांक 27 सितम्बर 1967; श्री रजनीश आश्रम, पूना। सूत्र: टेढ़ी पगड़ी बांध झरोखा झांकते। ताता तुरग पिलाण चहूंटे हांकते।। लारे चढ़ती फौज नगारा बाजते। वाजिद, ये नर गए विलाय सिंह...
View Articleमेरा स्वर्णिम भारत–(प्रवचन–30)
द्वैत भ्रांति है—(प्रवचन—तीसवां) प्यारे ओशो! कमत्यागान्न संन्यासौ न प्रैषोच्चारणेनतु। संधौ जीवात्मनौरैक्यं संन्यास: परिकीर्तित:।। कर्मों को छोड़ देना कुछ सन्यास नहीं है। इसी प्रकार मैं...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–8)
कुछ और ही मुकाम मेरी बंदगी का है—(प्रवचन—आठवां) दिनांक 28 सितम्बर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना प्रश्नसार: 1— आपने इतने ऊंचे, इतने अकल्पनीय शिखर दिखा दिए हैं कि उससे अपनी बौनी और लंगड़ी सामर्थ्य प्रगट...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–9)
सतगुरु शरणे आयक तामस त्यागिए—(प्रवचन—नौवां) दिनांक 29 सितम्बर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना सूत्र: खैर सरीखी और न दूजी वसत है। मेल्हे बासण मांहि कहां मुंह कसत है।। तूं जिन जाने जाय रहेगो ठाम रे। हरि...
View Articleकहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–10)
चांदनी को छू लिया है—(प्रवचन—दसवां) दिनांक 30 सितम्बर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना प्रश्नसार: 1— भगवान, जब मैं यहां आई तब बहुत अस्वस्थ थी। अब मैं जा रही हूं पूरी स्वस्थता पाकर। आपका प्रेम मुझ पर...
View Articleगुरु-परताप साध की संगति—(संत भीखादास)
(भीखा—वाणीपर भगवान श्री रजनीश के ग्याहरअमृत प्रवचन प्रश्नोत्तर प्रति दूसरे दिन और सूत्र पर समाप्ति दिनांक 21 मई से 31 मई, 1979 श्री रजनीश आश्रम पूना) एक झरोखा: अनंत-अनंत काल के बीत जाने पर कोई...
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