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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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प्रभु की पगडंडियां–(ध्‍यान–शिविर)–प्रवचन–3

मौन, उपेक्षा, करूणा और ध्‍यान—(प्रवचन—तीसरा) दिनांक 1 दिसम्‍बर, 1968, रात्री। ध्‍यान-शिविर, नारगोल। बहुत से प्रश्न पूछे गए हैं। एक मित्र ने पूछा है कि ओशो मौन का प्रयोग करते हैं तो आस— पास के वातावरण...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–3)–प्रवचन–39

यहीं मन बुद्ध है–(प्रवचन—उन्‍नतालीसवां) सूत्र: 61—जैसे जल से लहरें उठतीं है और अग्‍नि से लपटें,       वैसेही सर्वव्‍यापक हम से लहराता है। 62—जहां कहीं तुम्‍हारा मन भटकता है, भीतर या बाहर,       उसी...

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प्रभु की पगड़ंडियां–(प्रवचन–4)

प्रभु—मंदिरका दूसरा द्वार: मैत्री—(प्रवचन—चौथा) दिनांक 2 दिसम्‍बर, 1968; ध्‍यान—शिविर, नारगोल। मेरे प्रिय आत्मन्! प्रभु के मंदिर के दूसरे द्वार पर आज बात करनी है। वह दूसरा द्वार है मैत्री, फ्रेंडलीनेस।...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–3)–प्रवचन–40

ज्ञान क्रमिक नहीं, आकस्‍मिक घटता है—(प्रवचन—चालीसवां) प्रश्‍नसार: 1—अगर प्रामाणिक अनुभव आकस्‍मिक ही घटता है तो फिर यह क्रमिक विकास और दृष्‍टि की स्‍वच्‍छता क्‍या है, जो हमे अनुभव होती है। 2—जब कोई...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–16)

रसरूप भगवत्‍ता—(प्रवचन—सोहलवां) प्यारे ओशो! आपने उस दिन कहा कि ‘रसो वै सः’ —कि वह रस—रूप है। परमात्मा की यह परिभाषा मुझे सब से बढ़कर भाती है। तैत्तिरीय उपनिषद् का वह पूरा श्लोक इस प्रकार है : रसों वै...

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प्रभु की पगडंडियां–(प्रवचन–5)

हिंसा, अहंकार; प्रेम और ध्‍यान—(प्रवचन—पांचवां) दिनांक 2 दिसम्‍बर; 1968, रात्री ध्‍यान—शिविर, नारगोल। मेरे प्रिय आत्मन्! बहुत से प्रश्न पूछे गए हैं। एक मित्र ने पूछा है कि हम उन लोगों के प्रति तो...

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प्रभु की पगड़ंडियां–(प्रवचन–6)

प्रभु—मंदिर का तीसरा द्वार: मुदिता—(प्रवचन—छठवां) दिनांक 3 दिसम्‍बर; 1968, सुबह ध्‍यान—शिविर—नारगोल। मेरे प्रिय आत्मन्! प्रभु के मंदिर पर तीसरे द्वार पर आज बात करनी है। वह तीसरा द्वार है— उन दो द्वारों...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन-17)

तप, ब्रह्मचर्य और सम्‍यक् ज्ञान—(प्रवचन—सतहरवां) प्यारे ओशो! सत्येन लभ्यस्तपसा ह्मेष आत्मा सम्यग्ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यम्। अन्त: शरीरे ज्योतिर्मयो हि शुभ्रो। यं पश्यंति यतय: क्षीणदोषा। यह आत्‍मा...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–3) प्रवचन–41

तंत्र : शुभाशुभ के पार, द्वैत के पार—(प्रवचन—इक्‍तालीसवां) सूत्र: 64—छींक के आरंभ में, भय में, चिंता में, खाई—खड्ढ के कगार पर, युद्ध से भागने पर, अत्‍यंत कुतूहल में, भूख के आरंभ में और भूख के अंत में,...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–18)

संन्‍यास : बोध की अवस्‍था—(प्रवचन—अट्ठहरवां) प्‍यारे ओशो, यह श्‍लोक भी मंडकोपनिषद् में है:  वेदान्‍त विज्ञानसुनिश्‍चितार्था:सन्‍यास योगाद् यतय:शुद्ध—सत्‍वा:। ते ब्रह्मलोकेषु परन्‍तकाले परामृता:...

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नाम सुमिर मन बावरा–(जगजीवन राम)–प्रवचन–5

बौरे, जामा पहिरि न जाना—(प्रवचन—पांचवां) दिनांक 5 अगस्‍त, 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना। सूत्र:  बौरे, जामा पहिरि न जाना। को तैं आसि कहां ते आइसि, समुझि न देखसि ज्ञाना।। घर वह कौन जहां रह बासा, तहां से...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–19)

अहिंसा नहीं,कोमलता—(प्रवचन—उन्‍नीसवां) प्यारे ओशो! आहारशुद्धौ सत्वशुद्धि)। सत्वशुद्धौ हवा स्मृति:। स्मृतिलाभै सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्ष।। आहार की शुद्धि होने पर सत्व की शुद्धि होती है, सत्य की शुद्धि...

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नाम सुमिर मन बावरे–(प्रवचन–6)

जीवन सृजन का अवसर है—(प्रवचन—छट्ठवां) दिनांक 6 अगस्‍त 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्नसार: 1—क्या भक्ति में डूबने के पूर्व जीवन की बहुत—सी समस्याएं सुलझाना आवश्यक नहीं है? 2—मनुष्य—जीवन का संघर्ष...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–20)

सतां हि सत्‍यम्—(प्रवचन—बीसवां) प्‍यारे ओशो। सत्‍येनन स्‍वर्गाल्‍लोकात् च्‍यवन्‍ते कदाचन। सतां हि सत्‍यम्। तस्‍मात्‍सत्‍ये रमन्‍ते।  अर्थात सत्‍य परम है, सर्वोत्‍कृत है, और जो परम है वह सत्‍य है। जो...

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नाम सुमिर मन बावरे-(जगजीवन)–प्रवचन–7

नाम बिनु नहिं कोउकै निस्तारा—(प्रवचन—सातवां)  दिनांक 7 अगस्‍त, 1978; श्री रजनीश आश्रम पूना। नाम सुमिर मन बावरे, कहा फिरत भुलाना हो।। मट्टी का बना पूतला, पानी संग साना हो। इक दिन हंसा चलि बसै, घर बार...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–21)

गुरु तीर्थ है—(प्रवचन—इक्‍कीसवां) प्यारे ओशो! ‘बलं वाव विज्ञानाद् भूय:; अपि ह शतं विज्ञानवतां एको बलवान आकम्पयते। स यदा बली भवति, अथोत्थाता भवति, उत्तिष्ठर परिचारिता भवति, परिचरर उपसत्ता भवति, उपसीदर...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–22)

दर्शन : एक आत्‍मिक संस्‍पर्श—(प्रवचन—बाईसवां) प्यारे ओशो! छांदोग्य उपनिषद् में एक सूत्र इस प्रकार है : न पश्यो मृत्यु पश्यति न रोग नोत दुखताम्। सर्वं ह पश्य: पश्यति सर्वमाभोति सर्वश इति।। अर्थात्...

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नाम सुमिर मन बावरे–(जगजीवन)–प्रवचन–8

संन्यास परम भोग है—(प्रवचन—आठवां) दिनांक 8 अगस्‍त 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्नसार: 1—अल्बेयर कामू की सत्य की परिभाषा और भगवान श्री की सत्य की परिभाषा में भिन्नता क्यों है? 2—वेदांतमार्गी...

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नाम सुमिर मन बावरं–(जगजीवन)–प्रवचन–9

तीरथ—ब्रत की तजि दे आसा—(प्रवचन—नौवां) दिनांक 9 अगस्‍त 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना। सारसूत्र: सुनु सुनु सखि री, चरनकमल तें लागि रहु री। नीचे तें चढ़ि ऊंचे पाउ मंदिल मगन मगन ह्वै गाउ।। दृढ़करि डोरि...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–23)

धर्म : मुक्‍ति का आरोहण—(प्रवचन—तैइसवां) प्यारे ओशो। यह सूत्र छान्दोग्य उपनिषद्में उपलब्ध है : ‘जो विशाल है, वही अमृत है। जो लघु है, वह मर्त्य है। जो विशाल है, वही सुख रूप है। अल्प में सुख नहीं रहता।...

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