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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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साधना–पथ–(प्रवचन–13)

साधक का पाथेय—(प्रवचन—तेरहवां) दिनांक, 7 जून, 1964; संध्‍या। मुछाला महावीर, राणकपुर। यह कहा गया है कि आप शास्त्रों में विश्वास करो, भगवान के वचनों में विश्वास करो, गुरुओं में विश्वास करो। मैं यह नहीं...

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भक्‍ति सूत्र–(प्रवचन–2)

स्‍वयं को मिटाने की कला है भक्‍ति (दूसरा प्रवचन) दिनाक 12 जनवरी, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्न सार: 1–”अथातो”– “अब का मोड़-बिंदु हम सामान्य सांसारिक जनों के जीवन में कब आ पाता है? भक्ति की यात्रा...

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भक्‍ति सूत्र–(प्रवचन–3)

बड़ी संवेदनशील है भक्ति– तीसरा प्रवचन दिनांक 13 जनवरी, 1976, श्री रजनीश आश्रम पूना सूत्र: सा न कामयमाना निरोधेरूपत्वात्।। निरोधस्तु लोकवेदव्यापारन्यास:।। तस्मिन्नन्यता तद्धिरोधिघूदासीनता च।।...

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भक्‍ति सूत्र–(प्रवचन–4)

सहजस्फूर्त अनुशासन है भक्ति– चौथा प्रवचन दिनांक 14 जनवरी, 1976, श्री रजनीश आश्रम, पूना प्रश्‍न-सार 1–जीवन की व्यर्थता का बोध ही क्या जीवन में अर्थवत्ता का प्रारंभ-बिंदु बन जाता है?  2–इस विराट अस्तित्व...

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भक्‍ति सूत्र–(प्रवचन–5)

कलाओं की कला है भक्ति– पांचवां प्रवचन 15, जनवरी 1976 श्री रजनीश आश्रम पूना। सूत्र : तल्लक्षणानि वाच्यन्ते नानामतभेदात्।। पूजादिष्वनुराग इति पाराशर्य:।। कथादिष्विति वर्ग:।। आत्मरत्यविरोधेनेति...

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साधना–पथ–(प्रवचन–14)

साधना और संकल्‍प—(प्रवचन—चौदहसवां) 8 जून, 1964; सुबह मुछाला महावीर, राणकपुर। मैं आज क्या कहूं? संध्या हम विदा होंगे और उस घड़ी के आगमन के विचार से ही आपके हृदय भारी हैं। इस निर्जन में अभी पांच दिवस...

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नाम सुमिर मन बावरे–(जगजीवन )

नाम सुमिर मन बावरे जगजीवन (वाणी) जगजीवन का जीवन प्रारंभ हुआ प्रकृति के साथ। कोयल के गीत सुने होंगे, पपीहे की पुकार सुनी होगी। चातक को टकटकी लगाये चांद को देखते होंगे। चमत्‍कार देखे होंगे कि वर्षा आती...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–8)

चखो, अमृत का स्‍वाद—(प्रवचन—आठवां) प्‍यारे ओशो।  मुंडकौपनिषद् में यह श्लोक आता है:  नयां आत्‍मा प्रवचनेन लभ्‍यो न मधया न बहुना श्रुतेन। यं एवैष वृणुते तेन लभ्‍यात् तस्‍यैष आत्‍मा विवृणुतै स्‍वाम्।।...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–3)

तंत्र—सूत्र—(भाग—3) ओशो भूमिका : तंत्र अनुभूति का जगत है। तंत्र कोई दर्शनशास्त्र नहीं है, कोई चिंतन—मनन की प्रक्रिया अथवा विचार—प्रणाली नहीं है। तंत्र शुद्धतम रूप में अनुभूति है। इसका पहला चरण है अपनी...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–3) प्रवचन–33

संभोग से ब्रह्मचर्य की यात्रा—(प्रवचन—तैतीसवां) सूत्र— 48—काम—आलिंगन के आरंभ में उसकी आरंभिक       अग्‍नि पर अवधान दो, और ऐसा करते हुए अंत में उसके अंगारे से बचो। 49—ऐसे काम—आलिंगन में जब तुम्‍हारी...

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अंतर्यात्रा–ध्‍यान–शिविर–(प्रवचन–1)

अंतर्यात्रा (ओशो) (साधना—शिविर, आजोल में हुए 8 प्रवचनों, प्रश्‍नोत्‍तरोएवं ध्‍यान—सूत्रों का अपूर्व संकलन।)  साधना की पहली सीढ़ी: शरीर–(प्रवचन–पहला) ( दिनांक 3 फरवरी, 1968; सुबह, आजोल) मेरे प्रिय...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–9)

ऋत् है स्‍वभाव में जीना—(प्रवचन—नौंवां) प्यारे ओशो! ऋतस्‍य यथा प्रेत। अर्थात् प्राकृत नियमों के अनुसार जीओ। यह सूत्र ऋग्वेद का है। प्यारे ओशो! हमें इसका अभिप्रेत अर्थ समझाने की कृपा करें। आनंद मैत्रेय!...

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अंतर्यात्रा-ध्‍यान शिविर–(प्रवचन–2)

मस्‍तिष्‍क से ह्रदय, ह्रदय से नाभि की और—(प्रवचन—दूसरा) दिनांक 3 फरवरी, 1968, दोपहर साधना—शिविर–आजोल। सुबह की बैठक में शरीर का वास्तविक केंद्र क्या है, इस संबंध में हमने थोड़ी सी बातें कीं। न तो...

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नाम सुमिर मन बावरा-(जगजीवन)–(प्रवचन–2)

तुमसों मन लागो है मोर—(प्रवचन—पहला) दिनांक,। अगस्‍त,।978; श्री रजनीश आश्रम पूना। सूत्र— तुमसों मन लागो हे मोरा। हम तुम बैठे रही अटरिया, भला बना है जोरा।। सत की सेज बिछाय सूति रहि, सुख आनन्द धनेरा। करता...

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तंत्र-सूत्र–(भाग–3)–(प्रवचन–34)

तांत्रिक संभोग और समाधि—(प्रवचन—चौतीसवां) प्रश्‍नसार: 1—क्‍या आप भोग सिखाते है? 2—ध्‍यान में सहयोग की दृष्‍टि से संभोग में       कितनी बार उतरना चाहिए? 3—क्‍या आर्गाज्‍म से ध्‍यान की ऊर्जा क्षीण नहीं...

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अंतर्यात्रा–(ध्‍यान शिविर)–प्रवचन–3

नाभि—यात्रा : सम्‍यक आहार—श्रम—निंद्रा—(प्रवचन—तीसरा) दिनांक, 3 फरवरी; 1968; रात्रि। साधना—शिविर—आजोल। मनुष्य का जीवन कैसे आत्म—केंद्रित हो, कैसे वह स्वयं का अनुभव कर सके, कैसे आत्म—उपलब्धि हो सके, इस...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–3)–प्रवचन–35

स्‍वप्‍न नहीं,स्‍वप्‍नदर्शी सच है—(प्रवचन—पैंतीसवां) सूत्र: 53—हे कमलाक्षी, हे सुभगे, गाते हुए, देखते हुए, स्‍वाद लेते हुए या बोध बना रहे कि मैं हूं। और शाश्‍वत आविर्भूत होता है। 54—जहां—जहां, जिस किसी...

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अंतर्यात्रा–(ध्‍यान-शिविर)–प्रवचन–4

मन—साक्षात्‍कार के सूत्र—(प्रवचन—चौथा) दिनांक 4 फरवरी, 1968; सुबह। ध्‍यान साधना शिविर, आजोल। मेरे प्रिय आत्मन्! मनुष्य का मन, उसका मस्तिष्क एक रुग्ण घाव की तरह निर्मित हो गया है। वह एक स्वस्थ केंद्र...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(प्रवचन–10)

शील मुक्‍ति है, चरित्र—बंधन—(प्रवचन—दसवां) प्यारे ओशो! संस्कृत में एक सुभाषित है कि यदि शील अर्थात शुद्ध चरित्र न हो तो मनुष्य के सत्य, तप, जप, ज्ञान, सर्व विद्या और  कला सब निष्फल होते हैं— सत्यं तपो...

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नाम सुमिर मन बावरे-(जगजीवन)–प्रवचन–2

कीचड़ में खिले कमल—(प्रवचन—दूसरा) दिनांक 2 अगस्‍त,1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्नसार: 1—संन्यास लेने पर गहरे ध्यान में प्रवेश और लोगों—द्वारा पागल समझा जाना। 2—विरह की असह्य पीड़ा से साधक की तड़पन।...

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