मेरा स्वर्णिम भारत–(प्रवचन–1)
चार महावाक्य—(प्रवचन—एक) ‘प्यारे ओशो। पैंगल उपनिषद्केअनुसार चार महावाक्य है। पहला: तत्वमसि, वह तू है; दूसरा: त्वं तदसि, तू वह है; तीसरा: त्वं ब्रह्मास्मि, तू ब्रह्म है; और चौथा : अहं...
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अप्राप्य की इच्छा—(प्रवचन—पांचवां) सूत्र: 7—जो तुम्हारे भीतर है, केवल उसी की इच्छा करो। क्योंकि तुम्हारे भीतर समस्त संसार का प्रकाश है, वही प्रकाश जो साधना—पथ को प्रकाशित कर सकता है। यदि तुम उसे अपने...
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साधना—पथ ओशो तीन साधना—शिविरों : (–मुछाला महावीर, रणकपुर (साधना पथ) –आजोल (अंतर्यात्रा) एवं नारगोल (प्रभु की पगडंडियां) में हुए प्रवचनों, प्रश्नोत्तरों एवं...
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साधना की भूमिका—(प्रवचन—पहला) दिनांक 1 जून, 1963; सन्ध्या मुछाला महावीर, रणकपुर चिदात्मन्! सबसे पहले मेरा प्रेम स्वीकार करें। इस पर्वतीय निर्जन में, मैं उससे ही आपका स्वागत कर सकता हूं। यूं इसके...
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स्वामित्व की अभीप्स–(प्रवचन—छठवां) सूत्र: 10—शक्ति की उत्कट अभीप्सा करो। और जिस शक्ति की कामना शिष्य करेगा, वह शक्ति ऐसी होगी जो उसे लोगों की दृष्टि में ना—कुछ जैसा बना देगी। 11—शांति की अदम्य...
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ध्यान में कैसे होना—(प्रवचन—दूसरा) दिनांक, 2 जून, 1968; सुबह मुछाला महावीर, राणकपुर। चिदात्मन्! मैं आपको देख कर अत्यंत आनंदित हूं। ईश्वर को, सत्य को, स्वयं को पाने को आप इस निर्जन में इकट्ठे हुए हैं।...
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धर्म और सद्गुरू—(प्रवचन—दूसरा) प्यारे ओशो! गुरु पूर्णिमा के इस पुनीत अवसर पर हम सभी शिष्यों के अत्यंत प्रेम व अहोभावपूर्वक दण्डवत् प्रणाम स्वीकार करें। साथ ही गुरु—प्रार्थना के निम्नलिखित श्लोक में...
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तंत्र: घाटी और शिखर की स्वीकृति—(प्रवचन—छब्बीसवां) प्रश्नसार: 1—क्या हम सचेतन रूप से वृत्तियों का नियमन और संयमन करें? 2—अराजक शोरगुल को विधायक ध्वनि में कैसे बदलें? पहला प्रश्न : कल रात...
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धर्म, संन्यास, अमूर्च्छा और ध्यान—(प्रवचन—तीसरा) दिनांक, 2 जून, 1964; संध्या, मुच्छाला महावीर, राणकपुर। प्रश्न : ओशो क्या धर्म और विज्ञान में विरोध है? नहीं। विज्ञान को जानना अधूरा ज्ञान है। वह...
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मार्ग की शोध—(प्रवचन—सातवां) सूत्र: 13—मार्ग की शोध करो। थोड़ा रुको और विचार करो। तुम मार्ग पाना चाहते हो, या तुम्हारे मन में ऊंची स्थिति प्राप्त करने, ऊंचे चढ़ने और एक विशाल भविष्य निर्माण करने के...
View Articleतंत्र–सूत्र–(भाग–2) प्रवचन-27
ध्वनि—संबंधी तीन विधियां—(प्रवचन—सत्ताइसवां) सूत्र: 39—ओम जैसी किसी ध्वनि का मंद—मंद उच्चारण करो। जैसे—जैसे ध्वनि पूर्णध्वनि में प्रवेश करती है। वैसे—वैसे तुम भी….। 40—किसी भी अक्षर के...
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मन का रूपांतरण—(प्रवचन—तीसरा) प्यारे ओशो! मन एव मनुष्यावां कारणं बंधमोक्षयों:। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्।। अर्थात मन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष...
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रूको, देखो और होओ—(प्रवचन—चौथा) दिनांक 3 जून, 1964; सुबह मुच्छाला महावीर, राणकपुर। सत्य को खोजें नहीं। खोजने में अहंकार, ईगो है। और अहंकार ही तो बाधा है। अपने को खो दें। मिट जाएं। जब ‘मैं’ शून्य होता...
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नीति नहीं, धर्म—साधना—(प्रवचन—पांचवां) दिनांक 3 जून, 1964; सध्या मुछाला महावीर, राणकपुर। चिदात्मन्! मैं आपकी जिज्ञासा और उत्सुकता को समझ रहा हूं। आप सत्य को जानने और समझने को उत्सुक हैं। जीवन के रहस्य...
View Articleसाधना–सूत्र–(प्रवचन–8)
मार्ग की प्राप्ति—(प्रवचन—आठवां) सूत्र: भयंकर आधी के पश्चात जो निस्तब्धता छा जाती है, उसी में फूल के खिलने की प्रतीक्षा करो, उससे पहले नहीं। जब तक आधी चलती रहेगी, जब तक युद्ध जारी रहेगा, तब तक वह...
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नीति, समाज और धर्म—(प्रवचन—छठवां) दिनांक, 4 जून, 1964; सुबह। मुछाला महावीर, राणकपुर। प्रश्न: ओशो क्या आप नैतिक होना बुरा समझते हैं? नहीं। नैतिक होना बुरा नहीं समझता हूं पर नैतिक होने के भ्रम को अवश्य...
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एकमात्र पथ—निर्देश—(प्रवचन—नौवां) सूत्र: नीरवता (साइलेंस) में से, जो स्वयं शांति है, एक गूंजती हुई वाणी प्रकट होगी। और वह वाणी कहेगी. ‘यह अच्छा नहीं है, काट तो तुम चुके, अब तुम्हें बोना चाहिए।’ यह वाणी...
View Articleतंत्र–सूत्र–(भाग–3) प्रवचन–28
ध्यान : दमन से मुक्ति—(प्रवचन—अट्ठाईसवां) प्रश्नसार: 1—दमन इतना सहज सा हो गया है कि हम कैसे जाने कि हममें असली क्या है? 2—कृपया मंत्र—दीक्षा की प्रक्रीया और उसे गुप्त रखने के कारणों पर प्रकाश...
View Articleसाधना–सूत्र–(प्रवचन–10)
जीवन—संग्राम में साक्षीभाव—(प्रवचन—दसवां) सूत्र: 1—भावी जीवन—संग्राम में साक्षीभाव रखो। और यद्यपि तुम युद्ध करोगे, पर तुम योद्धा मत बनना। वह तुम्हीं हो, फिर भी तुम सीमित हो और भूल कर सकते हो। वह शाश्वत...
View Articleसाधना–पथ–(प्रवचन–7)
‘स्व’ की अग्नि—परीक्षा—(प्रवचन—सातवां) दिनांक,4 जून, 1964; संघ्या। मुछाला महावीर, राणकपुर। मैं दूसरों की दृष्टि में क्या हूं यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि मैं अपनी स्वयं की दृष्टि में...
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