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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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ज्‍यों कि त्‍यों रख दीन्‍हीं चदरियां–(पंच महाव्रत)–प्रवचन–10

संन्यास—(प्रवचन—दसवां) दिनांक 14 नवंबर 1970, क्रास मैदान, बंबई  प्रश्नोत्तर : आचार्य श्री, पंच महाव्रत: अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, अकाम और अप्रमाद की साधना फलीभूत हो सके तथा व्यक्ति और समाज का सर्वांगीण...

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तंत्र–सूत्र (भाग–2)-प्रवचन–19

भक्‍ति मुक्‍त करती है—(प्रवचन—उन्‍नीसवां) सूत्र: 1—कलपना करो कि तुम धीरे—धीरे शक्‍ति या ज्ञान से वंचित किए जा रहे हो। वंचित किए जाने के क्षण अतिक्रमण करो। 2—भक्‍ति मुक्‍त करती है। तंत्र के लिए मनुष्य...

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ज्‍यों कि त्‍यों रख दीन्‍हीं चदरियां–(पंच महाव्रत)–प्रवचन–11

अकाम—(प्रवचन—ग्‍यारहवां)  दिनांक 15 नवंबर 1970, क्रास मैदान, बंबई  प्रश्नोत्तर: आचार्य श्री, मन की किन-किन स्थितियों के कारण यौन-ऊर्जा, सेक्स एनर्जी अधोगमित होती है, और मन की किन-किन स्थितियों के कारण...

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का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–8)

चित की आठ अवस्‍थाएं—(प्रवचन—आठवां) दिनांक 6 अप्रैल, 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना।  प्रश्‍नसार: 1—श्री यू० जी० कृष्णमूर्ति समझाते हैं कि समस्त तीर्थएं——योग, ध्यान, संन्यास, गुरु—शिष्य संबंध और...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–20

शरीर और तंत्र, आसक्‍ति और प्रेम—(प्रवचन—बीसवां) प्रश्‍न—सार: 1—क्‍या प्रेम में सातत्‍य जरूरी है? और प्रेम कब भक्‍ति बनता है? 2—तंत्र शरीर को इतना महत्‍व क्‍यों देता है? 3—कृपया हमें आसक्‍ति और...

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का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–9)

सत्‍संग की मधुशाला—(प्रवचन—नौवां) दिनांक 7 अप्रैल, 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना।  सूत्र: कहंवा से जीव आइल, कहंवा समाइल हो। कहंवा कइल मुकाम, कहां लपटाइल हो।। निरगुन से जिव आइल, सरगुन समाइल हो। कायागढ़...

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ज्‍यों कि त्‍यों रख दीन्‍हीं चदरियां–(पंच महाव्रत)–प्रवचन–13

अप्रमाद—(प्रवचन—तेरहवां) दिनांक 17 नवंबर 1970, क्रास मैदान, बंबई  प्रश्नोत्तर : आचार्य श्री, अचेतन, समष्टि अचेतन और ब्रह्म अचेतन में जागने की साधना से गुजरते समय साधक को क्या-क्या बाधाएं आ सकती हैं तथा...

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साधना–सूत्र–(मैबलकॉलिन्‍स)

साधना—सूत्र (मैबल कॉलिन्‍स) ओशो ध्‍यान साधना शिविर, माउंट आबू में मैबल कॉलिन्‍स की पुस्‍तक ‘लाइट आन दि पाथ’ पर ओशो द्वारा दिए गए सत्रह अमृत प्रवचनों का अनुपन संकलन)  अमुख— सत्य की खोज के लिए दो अध्याय...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–21

अंतर्यात्रा में आँख के उपयोग—(प्रवचन—इक्‍कीसवां)      सूत्र: 30—आंखें बंद करके अपने अंतरस्‍थ अस्‍तित्‍व को विस्‍तार से देखो। इस प्रकार अपने सच्‍चे स्‍वभाव को देखो। 31—किसी कटोरेकेो उसके पार्श्‍व—भाग या...

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का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–10)

अथक श्रम चाहिए—(प्रवचन—दसवां) दिनांक 9 अप्रैल, 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्‍नसार: 1—प्रवचन और दर्शन को छोड्कर आप सदा—सर्वदा अपने एकांत कमरे में रहते हैं। फिर भी आपको इतनी सारी सूचनाएं कहां से...

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का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–11)

मूल में ही विश्राम है—(प्रवचन—ग्‍यारहवां) दिनांक 10 अप्रैल,1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना। सूत्र: माया रंग कुसुम्म महा देखन को नीको।    मीठो दिन दुई चार, अंत लागत है फीको कोटिन जतन रह्यो नहीं, एक अंग निज...

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साधना–सूत्र–(प्रवचन–1)

महत्‍वाकांक्षा—(प्रवचन—पहला) सूत्र: ये नियम शिष्यों के लिए हैं। इन पर तुम ध्यान दो। इसके पहले कि तुम्‍हारे नेत्र देख सकें, उन्हें बहरे हो जाना चाहिए। और इसके पहले कि तुम सदगुरुओं की उपस्थिति में बोल...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–22

तीसरी आँख और सिद्धियां—(प्रवचन—बाईस्‍वां) प्रश्‍न सार: 1—देखने की विधियां तीसरी आँख को कैसे प्रभावित करती है?       2—सम्‍मोहन विद्याओं में लगे लोगों की आंखें             डरावनी क्‍यों होती है?...

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साधना–सूत्र–(प्रवचन–2)

जीवन की तृष्‍णा—(प्रवचन—दूसरा) सूत्र: 2—जीवन की तृष्‍णा को दूर करो।  3—सुख—प्राप्ति की इच्छा को दूर करो। किंतु जो महत्वाकांक्षी हैं, उन्हीं के समान परिश्रम करो। जिन्हें जीवन की तृष्णा है, उन्हीं के...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–23

शांति और मुक्‍ति के चार प्रयोग—(प्रवचन—तैइसवां) सूत्र: 33—बादलों के पार नीलाकाश को देखने मात्र से शांति को, सौम्‍यता को उपलब्‍ध होओ। 34—जब परम रहस्‍यमय उपदेश दिया जा रहा हो, उसे श्रवण करो। अविचल, अपलक...

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मेरा स्‍वर्णिम भारत–(विविध उपनिषाद)

मेरा स्वर्णिम भारत (ओशो) (उपनिषाद—सूत्रों, संस्‍कृत सुभाषितों एवं वेद व ऋषि—वाक्‍यों पर ओशो से प्रश्‍नोत्‍तर—प्रवचनांश) भारत केवल एक भूगोल या इतिहास का अंग ही नहीं है। यह सिर्फ एक देश, एक राष्‍ट्र, एक...

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साधना–सूत्र–( प्रवचन–3)

द्वैतभाव—(प्रवचन—तीसरा) सूत्र: 4—द्वैतभाव को समग्ररूप से दूर करो। यह न सोचो कि तुम बुरे मनुष्‍य से या मूर्ख मनुष्‍य ये दूर रह सकते हो वे तो तुम्‍हारे ही रूप है। यद्यपि तुम्‍हारे मित्र अथवा गुरूदेव से...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–24

संदेह और श्रद्धा, मृत्‍यु और जीवन—(प्रवचन—चौबीसवां) प्रश्‍नसार: 1—क्‍या मिश्रित ढंग के व्‍यक्‍ति को दो भिन्‍न—भिन्‍न विधि करनी चाहिए? 2—जीवन—स्‍वीकारकी दृष्‍टि रखने वाले तंत्र में मृत्‍यु—दर्शन का कैसे...

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साधना–सूत्र–(प्रवचन–4)

उत्‍तेजना एवं आकांक्षा—(प्रवचन—चौथा)       सूत्र: 5—उत्तेजना की इच्छा को दूर करो।  इंद्रियजन्य अनुभवों से शिक्षा लो और उसका निरीक्षण करो, क्योंकि आत्म—विद्या का पाठ इसी प्रकार आरंभ किया जा सकता है और...

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तंत्र–सूत्र–(भाग–2) प्रवचन–25

शब्‍द,ध्‍वनि और अनाहत—(प्रवचन—पच्‍चीसवां) सूत्र: 37—हे देवी, बोध के मधु—भरे दृष्‍टिपथ में संस्‍कृत वर्णमाला के अक्षरों की कल्‍पना करो—पहले अक्षरों की भांति, फिर सूक्ष्‍मतर ध्‍वनि की भांति और फिर...

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