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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–10)

स्वस्थ राजनीति के प्रतीकपुरुष कृष्ण—(प्रवचन—दसवां)  दिनांक 30 सितंबर, 1970; प्रात:, मनाली (कुलू)  “भगवान श्रीकृष्ण आध्यात्मिक पुरुष थे। साथ-ही-साथ उन्होंने राजनीति में भी भाग लिया। और राजनीतिज्ञ के रूप...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–11)

मानवीय पहलूयुक्त भगवत्ता के प्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—ग्‍यारहवां) दिनांक 30 सितंबर, 1970; संध्‍या, मनाली (कुलू) “भगवान श्री, कृष्णा अर्थात द्रौपदी के चरित्र को लोग बड़ी गर्हित दृष्टि से देखते हैं, तथा कृष्ण...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–90

अब तुम वाटरूलू पुल से छलांग लगा सकते हो—(प्रवचन—दसवां) प्रश्‍न—सार: 1—काम की समस्या उठ खडी हुई है, क्‍या किया जाए?  2—निष्क्रियता पूर्वक सजग कैसे हुआ जाए?  3—मेरा सामान रेलगाड़ी ले जाती है, मैं रह जाता...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–12

साधनारहित सिद्धि के परमप्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—बारहवां) दिनांक 1 अक्‍टूबर, 1970; प्रात:, मनाली (कुलू) “भगवान श्री, कृष्ण का व्यक्तित्व, कृष्ण की बांसुरी, कृष्ण की राधा, कृष्ण के रास से लेकर सुदर्शन चक्र...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग-5) प्रवचन–91

कृत्रिम मन का परित्‍याग—(प्रवचन—ग्‍यारहवां) योग—सूत्र: (कैवल्‍यापाद) जन्मौषधिमन्त्रतप समाषिजा: सिद्धंय:।। 1।। सिद्धियां जन्म के समय प्रकट होतीं हैं, इन्हें औषधियों से, मंत्रों के जाप से, तपश्चर्याओं से...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–13)

अचिंत्य-धारा के प्रतीकबिंदु कृष्ण—(प्रवचन—तेरहवां) दिनांक 2 अक्‍टूबर, 1970; प्रात:, मनाली (कुलू) “एक चर्चा में आपने कहा है कि श्रीकृष्ण की आत्मा का साक्षात्कार हो सकता है, क्योंकि कुछ मरता नहीं। तो...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–82

एकांत अंतिम उपलब्‍धि है—(प्रवचन—बारहवां) प्रश्‍नसार: 1—क्या शिष्य अपने सदगुरु से कुछ चुराता है?  2—क्या व्यक्ति जीवन का आनंद अकेले नहीं ले सकता है?  3—जीवन क्या है? काम— भोग में संलग्न होना, धन कमाना,...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–83

मौलिक मन पर लौटना—(प्रवचन—तैरहवां) योग—सूत्र: (कैवल्‍यपाद) तत्र ध्यानजमनाशयम्‍ ।। 6।। केवल ध्यान से जन्मा मौलिक मन ही इच्छाओं से मुक्त होता है। कंर्माशुल्काकृष्णं योगिनस्तिबिधमितरेषामू।। 7।। योगी के...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–14)

अकर्म के पूर्ण प्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—चौदहवां) दिनांक 2 अक्‍टूबर, 1970; प्रात:, मनाली (कुलू) “आपने कहा है कि श्रीकृष्ण के मार्ग में कोई साधना नहीं है। केवल “सेल्फ रिमेंबरिंग’, पुनरात्मस्मरण है। लेकिन, आप...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–94

सभी कुछ परस्‍पर निर्भर है—(प्रवचन—चौदहवां) प्रश्‍न—सार: 1—आप कहते हैं, ‘पूरब में हम’ कृपया इसका अभिप्राय समझाएं?  2—आप संसार में उपदेश देने क्यों नहीं जाते?  3—कपटी घड़ियाल की चेतना के बारे में कुछ...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–15)

अनंत सागर-रूप चेतना के प्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—पंद्रहवां) दिनांक 2 अक्‍टूबर, 1970; सांध्‍या, मनाली (कुलू) “भगवान श्री, श्री अरविंद के कृष्ण-दर्शन के बारे में कुछ कहने को बाकी रह गया था। आपने अहमदाबाद में...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–16)

सीखने की सहजता के प्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—सोलहवां)  दिनांक 3 अक्‍टूबर, 1970; प्रात:, मनाली (कुलू) “अरविंद को कृष्ण-दर्शन हुए। वे योगी लेले के संपर्क में भी तो आए थे। और पांडिचेरी को प्रयोग का निर्णय क्या...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–95

यही है यह—(प्रवचन—पंद्रहवां) योग—सूत्र (कैवल्‍यपाद) हेतुफलाश्रयालम्बुत्रैं संगृहीत्‍त्‍वादेषमभावे तदभाक:।। 11।। प्रभाव के कारण पर अवलंबित होने से, कारणों के मिटते ही प्रभाव तिरोहित हो जाते हैं।...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–17)

स्वभाव की पूर्ण खिलावट के प्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—सत्रहवां) दिनांक 3 अक्‍टूबर, 1970; संध्‍या, मनाली (कुलू) “भगवान श्री, आपकी प्रवचन-धारा ज्यों-ज्यों बहने लगी है त्यों-त्यों आपके साथ, आपके वाक्-प्रवाह के...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–96

बिना तुम्‍हारे किसी निजी चुनाव के—(प्रवचन—सौलहवां) प्रश्‍नसार: 1—मैं आपके और रूडोल्फ स्टींनंरं के उपायों के बीच बंट गया हूं? 2—प्रकृति के सान्निध्य में ठीक लगता है, लोगों के साथ नहीं, यह विभाजन क्यों?...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–97

साक्षी स्‍वप्रकाशित है—(प्रवचन—सत्रहवां) योग—सूत्र (कैवल्‍यपाद) सदा ज्ञाताश्चित्तवृत्तयस्तह्मभो: पुरुषस्यपिम्णामित्वात्।। 18।। मन की वृत्तियों का ज्ञान सदैव इसके प्रभु, पुरुष, को शुद्ध चेतना के सातत्य...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–18)

अभिनय-से जीवन के प्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—अट्ठारहवां) दिनांक 4 अक्‍टूबर, 1970; प्रात:, मनाली (कुलू) “भगवान श्री, श्रीकृष्ण कहते हैं कि निष्कामता और अनासक्ति से बंधनों का नाश होता है और परमपद की प्राप्ति...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–98

श्रद्धा: किसी के प्रति नहीं होती—(प्रवचन—अट्ठारहवां) प्रश्‍न—सार: 1—आपके प्रति श्रद्धा रखने और स्वयं में श्रद्धा रखने में क्या विरोधाभास है? 2—बुद्ध को क्या प्रेरित करता है? 3—बच्चे पैदा करने का उचित...

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कृष्‍ण–स्‍मृति–(प्रवचन–19)

फलाकांक्षामुक्त कर्म के प्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—उन्‍नीसवां) दिनांक 4 अक्‍टूबर, 1970; सांध्‍या, मनाली (कुलू) “साधना-जगत में यज्ञों और “रिचुअल्स’ का बहुत उल्लेख है। यज्ञ की बहुत विधियां भी हैं। होमात्मक...

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पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–5) प्रवचन–99

कैवल्‍य–(प्रवचन—उन्‍नीसपवां) योग—सूत्र— (कैवल्‍यपाद) विशेषदर्शिन आत्मभावभाबनाविनिवृत्तिः।।25।। जब व्यक्ति विशेष को देख लेता है, तो उसकी आत्मभाव की भावना मिट जाती है।  तदा विवेकनिम्नं कैबल्यप्राग्भारं...

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