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आनंद योग—(द बिलिव्‍ड)

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आनंद योग—(द बिलिव्‍ड)

(अंग्रेजी पुस्‍तक ‘’The Beloved Vol-2’’ बाउल संतो के क्रांति गीत का हिन्‍दी अनुवाद स्‍वामी ज्ञान भेद द्वारा)

रमात्‍मा तुम्‍हारे चारों और है,

और तुम हमेशा उससे चूक रहे हो,

परमात्‍मा के पास केवल एक ही काल है—

और वह है वर्तमान उसके लिए

भूतकाल और भविष्‍यकाल

का अस्‍तित्‍व ही नहीं है।

मनुष्‍य, वर्तमान न रहकर,

भूत या भविष्‍य में रहता है,

परमात्‍मा भूत और भविष्‍य

में न रहकर वर्तमान में रहता है,

इसलिए दोनों का मिलन कैसे हो?

हम भिन्‍न आयामों में जी रहे है।

या तो परमात्‍मा, भूत और भविष्‍य

में रहना शुरू कर दे तब यह मुलाकात हो जाती है,

लेकिन तब परमात्‍मा न रहेगा,

वह ठीक तुम्‍हारे जैसा एक सामान्‍य मनुष्‍य होगा;

अथवा तुम वर्तमान में जीना शुरू कर दो—

तभी होगा मिलन।

लेकिन तब तुम एक साधारण

मनुष्‍य नहीं रह जाओगे,

तुम दिव्‍य बन जाओगे।

केवल दिव्‍य का ही दिव्‍य के साथ

मिलन हो सकता है।

केवल समान ही समान के साथ

मिल सकता है।

—ओशो


Filed under: आनंद योग--(दि बिलिव्‍ड)--ओशो Tagged: अदविता नियति, ओशो, बोधि उन्‍मनी, मनसा, स्‍वामी आनंद प्रसाद, स्‍वामी ज्ञान भेद

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