कोपलें फिर फूट आईं–(प्रवचन–03)
शून्य शिखर पर सुख की सेज—( प्रवचन—तीसरा) दिनांक 2 अगस्त, 1986, 30 अपराहन, सुमिला, जुहू, बंबई। प्रश्नसार: 1—भगवान, वह कौन सी ऐसी अज्ञात शक्ति है, जो हमें आपकी तरफ खींच रही है? 2—बीस साल से आपके साथ...
View Articleकोपलें फिर फूट आईं–(प्रवचन–04)
अपने ज्ञान को ध्यान में बदलो—(प्रवचन—चौथा) दिनांक 3 अगस्त, 1986, 30 प्रातः सुमिला, जुहू, बंबई प्रश्नसार: 1—परसों ही आपने कहा कि अपने को जाने बिना अर्थी नहीं उठने देना। यह चुनौती तीर की तरह हृदय में...
View Articleकोपलें फिर फूट आईं–(प्रवचन–05)
अपार्थिव तत्व की पहचान—(प्रवचन—पांचवां) दिनांक: 3 अगस्त, 1986, 30 अपराहन, सुमिला, जुहू, बंबई प्रश्नसार: 1—जब कोई मुझसे छल और दगावाजी करता है या जब कोई मुझे वस्तु की तरह उपयोग करता है, ऐसी स्थिति...
View Articleकोपलें फिर फूट आईं–(प्रवचन–06)
परम ऐश्वर्य: साक्षीभाव—(प्रवचन—छठवां) दिनांक: 4 अगस्त, 1986, 7. 00 संध्या, सुमिला, जुहू, बंबई। प्रश्नसार: 1— भगवान, अध्ययन, चिंतन और श्रवण से बुद्धिगत समझ तो मिल जाती है, लेकिन मेरा जीवन तो अचेतन...
View Articleकोपलें फिर फूट आईं–(प्रवचन–07)
जीवित मंदिर मधुशाला है—(प्रवचन—सातवां) दिनांक : 5 अगस्त, 1976, 00 संध्या, सुमिला, जुहू, बंबई। प्रश्नसार: 1—हाथ हटता ही नहीं दिल से, हम तुम्हें किस तरह सलाम करें? 2—बहुत सी मधुशालाएं देखीं, पीने वालों...
View Articleकाहे होत अधीर–(संत पलटूदास)
काहे होत अधीर—(संत पलटूदास) ओशो ओशो द्वारा पूना में संत पलटूदास की वाणीपर दिए गये (11—09—1979 से 30—10—1979) उन्नीस अमृत प्रवचनों का संकलन।) संतों का सारा संदेश इस एक छोटी सी बात में समा जाता है कि...
View Articleकाहे होत अधीर–(प्रवचन–01)
पाती आई मोरे पीतम की—(प्रवचन—पहला) दिनांक 11 सितम्बर सन् 1979, ओशो आश्रम पूना। सूत्र: पूरन ब्रह्म रहै घट में, सठ, तीरथ कानन खोजन जाई। नैन दिए हरि—देखन को, पलटू सब में प्रभु देत दिखाई।। कीट पतंग रहे...
View Articleकहे होत अधीर–(प्रवचन–02)
अमृत में प्रवेश—(प्रवचन—दूसरा) दिनांक 12 सितम्बर सन् 1979; ओशो आश्रम पूना। प्रश्न-सार : 1—कोई तीस वर्ष पूर्व, जबलपुर में, किसी पंडित के मोक्ष आदि विषयों पर विवाद करने पर दद्दाजी ने कहा था कि शास्त्र...
View Articleकोपले फिर फूट आई–(प्रवचन–08)
सदगुरु शिष्य की मृत्यु है—(प्रवचन—आठवां) 6 अगस्त, 1986, 7. 00 संध्या, सुमिला जुहू, बंबई प्रश्नसार: 1— भगवान, एक शिष्य ने सदगुरु से पूछा, मैं आपसे एक प्रश्न करूं? सदगुरु ने उत्तर दिया, व्हाई यू वांट टू...
View Articleकहे होत अधीर–(प्रवचन–03)
साजन-देश को जाना—(प्रवचन—तीसरा) सारसूत्र: जेकरे अंगने नौरंगिया, सो कैसे सोवै हो। लहर-लहर बहु होय, सबद सुनि रोवै हो।। जेकर पिय परदेस, नींद नहिं आवै हो। चौंकि-चौंकि उठै जागि, सेज नहिं भावै हो।।...
View Articleकहे होत अधीर–(प्रवचन–04)
मौलिक धर्म—(प्रवचन—चौथा) प्रश्न-सार : 1—बुनियादी रूप से आप धर्म के प्रस्तोता हैं–वह भी मौलिक धर्म के। आप स्वयं धर्म ही मालूम पड़ते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि अभी आपका सबसे ज्यादा विरोध धर्म-समाज...
View Articleकोपले फिर फूट आईं–(प्रवचन–09)
ध्यान तंत्र के बिना लोकतंत्र असंभव—(प्रवचन—नौवां) दिनांक :7 अगस्त, 1986, 7. 00 संध्या, सुमिला, जुहू, बंबई प्रश्नसार— 1—भगवान, विचार अभिव्यक्ति और वाणी-स्वतंत्रता लोकतंत्र का मूल आधार है। आपकी बातों से...
View Articleकहे होत अधीर–(प्रवचन–05)
बैराग कठिन है—(प्रवचन—पांचवां) सारसूत्र : जनि कोई होवै बैरागी हो, बैराग कठिन है।। जग की आसा करै न कबहूं, पानी पिवै न मांगी हो। भूख पियास छुटै जब निंद्रा, जियत मरै तन त्यागी हो।। जाके धर पर सीस न...
View Articleकोपलें फिर फूट आईं–(प्रवचन–10)
वर्तमान संस्कृति का कैंसर: महत्वाकांक्षा—(प्रवचन—दसवां) दिनांक : 8 अगस्त, 1986, 00 संध्या, सुमिला, जुहू, बंबई। प्रश्नसार: 1— भगवान, आज सारी दुनिया में आतंकवाद (टेरेरिज्म) छाया हुआ है। मनुष्य की इस...
View Articleकोपलें फिर फूट अाई–(प्रवचन–11)
प्रेम का जादू सिर चढ़कर बोले—( प्रवचन—ग्यारहवां) दिनांक: 9 अगस्त, 1986, 00 संध्या, सुमिला, जुहू, बंबई प्रश्नसार: 1— भगवान, हमें जो आपमें दिखाई पड़ता है, वह दूसरों को दिखाई नहीं पड़ता। ऐसा क्यों है भगवान?...
View Articleकहे होत अधीर–(प्रवचन–06)
क्रांति की आधारशिलाएं—(प्रवचन—छठवां) प्रश्न-सार: 1—मेरा खयाल है कि आपके विचारों में, आपके दर्शन में वह सामर्थ्य है, जो इस देश को उसकी प्राचीन जड़ता और रूढ़ि से मुक्त करा कर उसे प्रगति के पथ पर आरूढ़ करा...
View Articleकोपलें फिर फूट आईं–(प्रवचन–12)
कोंपलें फिर फूट आई शाख पर—(प्रवचन—बारहवां) दिनांक: 15 अगस्त, 1986, सुमिला, जुहू, बंबई प्रश्नसार— 1—इस देश में ध्यान को गौरी शंकर की ऊँचाई मिली। शिव, पतंजलि,महावीर, बुद्ध, गोरख जैसी...
View Articleकहे होत अधीर–(प्रवचन–07)
साहिब से परदा न कीजै—(प्रवचन—सातवां) सारसूत्र : बनत बनत बनि जाई, पड़ा रहै संत के द्वारे।। तन मन धन सब अरपन कै कै, धका धनी के खाय। मुरदा होय टरै नहिं टारै, लाख कहै समुझाय। स्वान-बिरति पावै सोई खावै,...
View Articleकहे होत अधीर–(प्रवचन–08)
प्रेम एकमात्र नाव है—(प्रवचन—आठवां) प्रश्न-सार : 1—आपने कहा कि गणित या ज्ञान से उपजा वैराग्य झूठा है; प्रेमजनित वैराग्य ही वैराग्य है। लेकिन प्रेम तो राग लाता है; उससे वैराग्य कैसे फलित होगा? 2—आप...
View Articleकहे होत अधीर–(प्रवचन–09)
चलहु सखि वहि देस—(प्रवचन—नौवां) सारसूत्र: चलहु सखी वहि देस, जहवां दिवस न रजनी।। पाप पुन्न नहिं चांद सुरज नहिं, नहीं सजन नहीं सजनी।। धरती आग पवन नहिं पानी, नहिं सूतै नहिं जगनी।। लोक बेद जंगल नहिं...
View Article