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Channel: Osho Amrit/ओशो अमृत
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स्वर्णिम बचपन (सत्र–1) –ओशो

बहुत सुंदर सुबह है। सूरज रोज-रोज उगता है और वह सदा नया है। वह कभी पुराना होता ही नहीं। वैज्ञानिक कहते है कि यह लाखों साल पुराना है। व्‍यर्थ की बात है, मैं तो राज उसे देखता हूं। वह हमेशा नया है। परंतु...

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‘’जन्‍म का चुनाव’’–सत्र—2 (ओशो)

सब लोग अपने सुनहरे बचपन बात करते हैं, पर कभी-कभार ही यह सच होता है। अधिकतर तो यह झूठ ही होता है। लेकिन जब बहुत लोग एक ही झूठ बोल रहे हों तो किसी को पता नहीं चलता कि यह झूठ है। कवि भी अपने सुनहरे बचपन...

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ज्‍योतिषी की भविष्यवाणी–सत्र—3 (ओशो)

बार-बार सुबह का चमत्‍कार…..सूरज और पेड़ । संसार बर्फ के फूल की तरह हैं: इसको तुम अपने हाथ में लो और यह पिघल जाता है—कुछ भी नहीं बचता, सिर्फ गीले हाथ रह जाते है। लेकिन अगर तुम देखो, सिर्फ देखो, तो बर्फ...

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स्‍वर्णिम बचपन—(सत्र—4 ) ओशो

खजुराहो मैं तुमसे उस समय कि बात कर रहा था जब ज्‍योतिषी से मिला जो अब संन्‍यासी हो गया था। उस समय मैं चौदह वर्ष का था और अपने दादा के साथ था। मेरे नाना अब नहीं रहे थे। उस वृद्ध भिक्षु, भूतपूर्व‍...

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स्‍वर्णिम बचपन—(सत्र—5 ) ओशो

जब बचपन में मैं अपने नाना के पास रहता था तो यही मेरा तरीका था, और फिर भी मैं सज़ा से पूरी तरह सुरक्षित था। उन्‍होंने कभी नहीं कहा कि यह करो और वह मत करो। इसके विपरीत उन्‍होंने अपने सबसे आज्ञाकारी नौकर...

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स्वणिम बचपन–(सत्र—6 ) ओशो

नानी—नानी का प्रेम…. लेकिन दुर्भाग्‍य से ‘सैड’ शब्‍द से फिर उस जर्मन आदमी एकिड़ सैड कि याद आ गइ, है भगवान, उसे मैं जीवन में फिर कभी कुछ कहने वाला नहीं था। मैं उसकी पुस्‍तक से यह जानने की कोशिश कर रहा...

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स्‍वर्णिम बचपन–सत्र—7 (ओशो)

जैन मुनि से संवाद ओशो का जन्‍म स्‍थल कुछवाड़ा (मध्‍य प्रदेश) गुड़िया को मालूम है कि मैं नींद में बोलता हूं, लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि मैं किससे बोलता हूं। सिर्फ मैं जानता हूं यह। बेचारी गुड़िया, मैं...

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होश के वो दो कदम बस—(कविता)

होश के बस दो कदम--कविता मैं तो चल बस दो कदम। इस तिमिर अंधकार में भी, बंद आंखों के सहारे, किस डगर पर, किस सफर पर, दौड़ते सब चले जा रहे थे। किस तरफ ये कौन जाने, पर समझते थे बेचारे! पहुंचने को है किनारे।...

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गाड़रवाड़ा—एक परिक्रमा—

मुल्‍ला जी—(आनंद मोहम्‍मद)Click to view slideshow. मुल्‍ला जी, हां ये नाम सुन का आप भी जरूर थोड़ा चोंकोगे। मैं भी उसे देख कर थोड़ी दे के लिए अवाक सा रह गया। मन पर चल रहा विचारों का शोर थोड़ी देर के लिए...

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विद्रोह धर्म की बुनियाद (सत्र–8 ओशो)

दुनिया में केवल जैन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो आत्‍महत्‍या का आदर करता है। अब यह हैरान होने की तुम्‍हारी बारी है। निश्चित ही वे इसे आत्‍महत्‍या नहीं कहते। वे इसको सुंदर धार्मिक नाम देते है—संथारा।...

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पोनी–एक कुत्‍ते की आत्‍म कथा—(अध्‍याय—28)

मैंने भी प्रेम किया—मैंने भी प्रेम किया— अचानक एक दिन घर में गहमागहमी शुरू हो गई। मैं बहुत समझने की कोशिश कर रहा था परंतु मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। भैया-दीदी की स्‍कूल की छुटियां थी। दिसम्बर माह...

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पंतजलि: योगसूत्र–(भाग–1) प्रवचन–14

बीज ही फूल है–प्रवचन–चौदहवां दिनांक 4 जनवरी, 1976; श्री रजनीश आश्रम पूना। प्रश्‍न सार: 1—कृपया समझायें कि समय के अतराल के बिना एक बीज कैसे विकसित हो सकता है? 2—क्या ईश्वर को समर्पण करना और गुरु को...

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पंतजलि: योगसूत्र–(भाग–1) प्रवचन–15

गुरूओं का गुरु—प्रवचन—पंद्रहवां दिनांक 5 जनवरी, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। योगसूत्र: पूवेंषामपिगुरु कालेनानवच्छेदात्।। 26।। समय की सीमाओं के बाहर होने के कारण वह गुरुओं का गुरु है। तस्य वाचक:...

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पंतजलि: योगसूत्र–(भाग–1) प्रवचन–16

मैं एक नूतन पथ का प्रारंभ हूं—प्रवचन—सौलहवां दिनांक 6 जनवरी, 1975; श्री रजनीश आश्रम पूना। प्रश्‍नसार: 1—क्या आप किसी गुरुओं के गुरु द्वारा निर्देश ग्रहण करते हैं? 2—गुरुओं को किसी प्रधान गुरु द्वारा...

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अष्‍टावक्र: महागीता–(भाग–3) प्रवचन–13

प्रभु की प्रथम आहट—निस्‍तब्‍धता में—प्रवचन—तैहरवां दिनांक 23 नवंबर, 1976; रजनीश आश्रम, पूना। अष्‍टावक्र उवाच। यत्‍वं पश्यसि तत्रैकस्लमेव प्रतिभाससे। किं पृथक भासते स्वर्णात्कट कांगदनुपरम्।। 139।। अयं...

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पंतजलि: योगसूत्र–(भाग–1) प्रवचन–17

ध्‍यान की बाधाएं—प्रवचन—सत्रहवां दिनांक 7 जनवरी 1975; श्री रजनीश आश्रम, पूना। योगसूत्र: व्याधिख्यानसंशयप्रमादालस्थाविरति भ्रातिदर्शन अलब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तराया:।। 30।। रोग,...

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अष्‍टावक्र: महागीता–(भाग–3) प्रवचन–14

शूल है प्रतिपल मुझे आग बढ़ाते—प्रवचन—चौदहवां दिनांक 24 नवंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम पूना। पहला प्रश्न : आपके शिष्य वर्ग में जो अंतिम होगा, उसका क्या होगा? ईसा ने कहा है. जो अंतिम होंगे, वे मेरे प्रभु...

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पंतजलि: योगसूत्र–(भाग–1) प्रवचन–18

ओम् के साथ विसंगीत से संगीत तक—प्रवचन—अठारह दिनांक 8 जनवरी 1975; श्री रजनीश आश्रम पूना। प्रश्‍नसार: 1—यह मार्ग तो शांति और जागरूकता का मार्ग है, फिर आपके आस—पास का हर व्यक्ति और हर इतनी अव्यवस्था में...

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पंतजलि: योगसूत्र–(भाग–1) प्रवचन–19

समुचित मनोवृतियों का संवर्धन—प्रवचन—उन्‍नीसवां दिनांक 9 जनवरी, 1975; श्री रजनीश आश्रम, पूना। योगसूत्र: मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम्।। 33।। आनंदित व्यक्ति...

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अष्‍टावक्र: महागीता–(भाग–3) प्रवचन–15

धर्म एक आग है—प्रवचन—पंद्रहवां दिनांक 25 नवंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। आचक्ष्‍व श्रृणु वा तात नानाशास्त्रोण्यनेकश:। तथापि न तव स्वास्थ्यं सर्वविस्मरणाद्वते।। 146।। भोगं कर्म समाधिं वा कुरु विज्ञ...

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